फिरोजाबाद में भाजपा प्रत्याशी नहीं, बल्कि शिवपाल सिंह को जीत मिली



फिरोजाबाद की चुनावी लड़ाई में कामयाब हुए शिवपाल यादव
लखनऊ. चौंकाने वाली खबर है। शिवपाल सिंह यादव की हार नहीं हुई है। उन्हें फिरोजाबाद की चुनावी लड़ाई में जीत नसीब हुई है। लोकसभा चुनावों की मतगणना के दिन खबर आई थी कि फिरोजाबाद में शिवपाल सिंह हार गए हैं और भाजपा उम्मीदवार ने मैदान मार लिया है। दूसरे स्थान पर मौजूदा सांसद और सैफई परिवार के सदस्य अक्षय यादव हैं। चुनाव परिणामों के विश्लेषण के बाद स्पष्ट हुआ है कि फिरोजाबाद में भाजपा प्रत्याशी नहीं, बल्कि शिवपाल सिंह को जीत मिली है। यही सच है। यह दावा है किया है प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की एनालिसिस टीम ने। टीम के मुताबिक, फिरोजाबाद में चुनाव जीतने से बड़ा मकसद सैफई परिवार में कलह कराने के लिए जिम्मेदार प्रोफेसर रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को हराना था। इस लड़ाई में प्रोफेसर के खेमे ने तमाम जतन किए, लेकिन शिवपाल सिंह यादव अपनी असल लड़ाई जीतने में कामयाब रहे।

अक्षय को हराने के लिए फिरोजाबाद चुना
बड़ी लड़ाई जीतने के लिए छोटी लड़ाई हारना पड़ता है। फिल्म बाजीगर के इसी डायलॉग की तर्ज पर शिवपाल सिंह यादव प्रत्यक्ष तौर पर फिरोजाबाद के चुनावी अखाड़े में बुरी तरह पराजित हुए हैं, लेकिन असल लड़ाई में उन्होंने विरोधी खेमे को धोबी पछाड़ लगाते हुए चित कर दिया है। शिवपाल सिंह यादव का मकसद अपने चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव की राजनीतिक साख पर बट्टा लगाना था। साथ ही यह साबित करना चाहते थे कि बसपा से गठबंधन करना आत्मघाती होगा। गौरतलब है कि रामगोपाल ही सपा-बसपा गठबंधन के सबसे बड़े हिमायती थे, जबकि मुलायम सिंह यादव ने भी गठबंधन से तौबा करने को कहा था, लेकिन सपा के सुल्तान ने अनसुना कर दिया था। बीते दिनों पत्रिका.कॉम से चुनावी चर्चा के दौरान शिवपाल सिंह यादव ने स्वीकार किया था कि फिरोजाबाद से चुनाव लडऩे का मुख्य मकसद प्रोफेसर रामगोपाल को सबक सिखाना था। शिवपाल के मुताबिक, सैफई के कुनबे में कलह की असली जड़ रामगोपाल हैं, ऐसे में उन्हें राजनीति से दूर किए बगैर पारिवारिक एकता मुमकिन नहीं है। शिवपाल का आरोप है कि फिरोजाबाद का रण जीतने के लिए प्रोफेसर के खेमे ने पैसा-शराब बांटा, लेकिन वोटों में सेंधमारी के कारण कुछ हजार वोटों से पराजय का सामना करना पड़ा। फिरोजाबाद में शिवपाल सिंह के चुनाव संयोजक मंडल के सदस्य और शिवपाल सिंह यादव फैंस एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष चौबे कहते हैं कि मतदान से पहले ही नतीजों की आहट स्पष्ट थी, लेकिन मकसद चुनाव जीतना नहीं, बल्कि परिवार के खलनायक को हराना था।

चाचा के वोटों ने अक्षय यादव को हराया
परिवार की लड़ाई में शिवपाल ने वाकई रामगोपाल को करारी चोट पहुंचाई है। फिरोजाबाद में विजयी भाजपा प्रत्याशी चंद्रसेन जादौन को 4,95,819 वोट मिले हैं, जबकि महागठबंधन उम्मीदवार अक्षय यादव को 4,67,038 वोट। ऐसे में तीसरे स्थान पर आए शिवपाल सिंह यादव को मिले 91,869 वोट ही अक्षय की हार का सीधा कारण हैं। राजनीतिक विश्लेषक अशोक पाण्डेय कहते हैं कि शिवपाल सिंह यादव मैदान में नहीं होते तो निश्चय तौर पर उन्हें मिले वोटों का नब्बे फीसदी हिस्सा अक्षय के हिस्से में होता। इस तरह अठ्ठारह हजार वोटों की हार को जीत में बदलन मुमकिन था।

बदायूं, कन्नौज और आजमगढ़ में जंग से परहेज
शिवपाल सिंह यादव के करीबी और सैफई निवासी जगदेव सिंह यादव कहते हैं कि शिवपाल आज भी परिवार की एकता के पक्षधर हैं। इसी कारण भतीजे अखिलेश से मुन-मुटाव के बावजूद चुनावी लड़ाई में नुकसान पहुंचाने से परहेज किया। जगदेव की बात में दम है। मुलायम सिंह यादव के प्रति श्रद्धाभाव के कारण मैनपुरी में प्रत्याशी नहीं उतारने के साथ-साथ शिवपाल ने भतीजे अखिलेश के खिलाफ आजमगढ़, बहू डिंपल के खिलाफ कन्नौज और सगे भतीजे धर्मेंद्र यादव के खिलाफ बदायूं में उम्मीदवार नहीं उतारा था। इस विषय में शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि परिवार की एकता कौन नहीं चाहता है, इसी कारण दो साल तक अपमान बर्दाश्त करने के बावजूद नई पार्टी नहीं बनाई थी, लेकिन अंत में परिवार के खलनायकों को एक्सपोज करने के लिए नए निशान के साथ मैदान में उतरना जरूरी था। अलबत्ता उन्होंने यह भी कहाकि किसी के प्रति सॉफ्ट-कार्नर जैसा कुछ नहीं है, सिर्फ भाजपा की बी-टीम होने के आरोपों को खारिज करने के लिए सैफई के संबंधियों के खिलाफ लड़ाई से परहेज किया है। साभार 

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