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पत्रकारिता – जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाती है, उसका मूल उद्देश्य जनता तक निष्पक्ष, सटीक और निर्भीक जानकारी पहुँचाना है। लेकिन क्या हो जब इसी स्तंभ को कमजोर करने की कोशिश की जाए? उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से लगातार ऐसी घटनाएँ सामने आ रही हैं, जहाँ पत्रकारों के स्वतंत्र समाचार संकलन पर प्रशासनिक रोक लगाई जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि पत्रकारों को स्वयं खबरें जुटाने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि जिला सूचना अधिकारी या मीडिया सेल के माध्यम से ‘निर्धारित समाचार’ उपलब्ध कराए जाएंगे।
क्या इससे निष्पक्ष पत्रकारिता संभव है? यदि पत्रकारों को स्वतंत्र रिपोर्टिंग से रोका जाता है, तो केवल वही खबरें जनता तक पहुँचेंगी जो प्रशासन चाहेगा। इसका सीधा असर लोकतांत्रिक मूल्यों पर पड़ेगा, क्योंकि प्रशासन की कमियों और जनहित से जुड़े गंभीर मुद्दों पर पर्दा डालने का प्रयास किया जा सकता है।
प्रशासन की ‘ऊपर से आदेश’ नीति – पारदर्शिता पर सवाल
सूत्रों के अनुसार, प्रशासन चुनिंदा समाचार पत्रों को ही सरकारी नीतियों और घटनाओं से संबंधित समाचार उपलब्ध कराता है, जबकि कई दैनिक, साप्ताहिक और मासिक समाचार पत्रों को इससे वंचित रखा जाता है। यही नहीं, कई मामलों में पत्रकारों को घटनास्थल पर जाने से रोका जा रहा है, जिससे केवल प्रशासन द्वारा नियंत्रित और संपादित जानकारी ही जनता तक पहुँचती है।
क्या पत्रकारों को काम करने से रोकना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं?
अगर पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग करने का अधिकार नहीं दिया जाता, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर होगी। प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना सिर्फ पत्रकारों की नहीं, बल्कि हर जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है। सरकार को इस मामले पर तत्काल संज्ञान लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी पत्रकारों को निष्पक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करने की पूर्ण स्वतंत्रता मिले।
पत्रकारिता पर किसी भी प्रकार की पाबंदी लोकतंत्र के लिए खतरा है। अब समय आ गया है कि हम सभी इस विषय पर अपनी आवाज बुलंद करें – क्योंकि जब तक कलम स्वतंत्र है, तब तक लोकतंत्र मजबूत है!
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