पाकिस्तान ने अफगान शरणार्थियों को चंद दिनों की ही मोहलत दी...

 


शरणार्थी । लाखों मुसलमानों को अपना घर-बार छोड़कर सैकड़ों किमी दूर एक ऐसे स्थान पर जाना पड़ रहा है, जहां वे जाने के इच्छुक नहीं। वे जबरन निष्कासन का सामना करने से पहले जहां रह रहे थे, वहां रहने न पाएं, इसके लिए उनके घरों को बुलडोजरों से तोड़ा जा रहा है.

बच्चों, महिलाओं, बीमार लोगों और बुजुर्गों को भी पलायन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जो जाने में आनाकानी कर रहे हैं, उन्हें बलपूर्वक भेजा जा रहा है। क्या यह सब गाजा में हो रहा है और क्या यह गंभीर मानवीय संकट इजरायल के कारण पैदा हुआ है? नहीं-नहीं। यह सब कुछ तो खुद को इस्लाम का किला और दुनिया भर के मुसलमानों की चिंता में दुबले होते रहने का नाटक करने वाले पाकिस्तान में हो रहा है.


पाकिस्तान की कार्यवाहक सरकार ने अक्टूबर के पहले सप्ताह में अपने यहां रह रहे लाखों अफगानी नागरिकों को यह अल्टीमेटम दिया कि वे 31 अक्टूबर तक स्वेच्छा से अफगानिस्तान चले जाएं, नहीं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। फिलहाल यह अल्टीमेटम उन अफगानी नागरिकों को दिया गया है, जिनकी संख्या 17 लाख है। ये वे अफगानी हैं, जिनके पास शरणार्थी होने का कोई दस्तावेज नहीं। इनमें से तमाम ऐसे हैं, जो लगभग चार दशक पहले अफगानिस्तान से भागकर पाकिस्तान आए थे। एक बड़ी संख्या में ऐसे अफगानी हैं, जिन्होंने अफगानिस्तान देखा ही नहीं.


जबरन भेजे जा रहे अफगानियों में करीब छह लाख वे हैं, जो 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज होने के समय पाकिस्तान भाग आए थे। उन्हें भय था कि कट्टर तालिबानी शासन में उनकी जिंदगी तबाह हो जाएगी। अब उन्हें न चाहते हुए भी तालिबान शासन वाले अफगानिस्तान लौटना पड़ रहा है, जहां कठोर शरिया कानून लागू है और उसके चलते लड़कियों को पढ़ने एवं महिलाओं को घर के बाहर किसी तरह का काम करने की इजाजत नहीं। अफगानिस्तान जाने को मजबूर अफगानियों में तालिबान की आलोचना करने वाले पत्रकार एवं अशरफ गनी सरकार के समय के सिपाही भी हैं। वहां उनकी जान को खतरा हो सकता है, लेकिन जो पाकिस्तान कल तक अफगानियों को बिरादर भाई बताता था, वही अब उनके साथ घोर अमानवीय व्यवहार कर रहा है.


चूंकि पाकिस्तान ने अफगान शरणार्थियों को चंद दिनों की ही मोहलत दी, इसलिए वे अपनी संपत्ति भी नहीं बेच सके हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि पाकिस्तान ने यह तय कर दिया है कि कोई भी अफगानी 50 हजार रुपये से अधिक अपने साथ नहीं ले जा सकता। उन्हें अपने पशु ले जाने की भी अनुमति नहीं है। पाकिस्तान में करीब 40 लाख अफगानी रह रहे थे। चूंकि वे शरणार्थी के रूप में थे इसलिए पाकिस्तान को दुनिया भर से करोड़ों डालर की आर्थिक मदद मिल रही थी। अकेले अमेरिका से उसे 27.3 करोड़ डालर मिले थे.


पाकिस्तान इस बहाने अफगानियों को निकाल रहा है कि वे आतंकी गतिविधियों में लिप्त थे। कोई यह पूछने वाला नहीं कि क्या 17 लाख अफगानी आतंकी गतिविधियों में लिप्त थे? लाखों अफगानी नागरिकों को एक ऐसे समय पाकिस्तान से अफगानिस्तान ठेला जा रहा है, जब वहां कड़ाके की ठंड पड़नी शुरू हो गई है। इनमें से अधिकतर के पास अफगानिस्तान में न तो रहने का कोई ठौर-ठिकाना है और न ही काम-धंधे का। फिलहाल उन्हें शिविरों में और कुछ को तो खुले आसमान तले रहने को मजबूर होना पड़ रहा है.


चूंकि एक इस्लामी देश यानी पाकिस्तान ही दूसरे इस्लामी देश अर्थात अफगानिस्तान के लाखों मुसलमानों को अपने यहां से भगा रहा है, इसलिए इस्लामी जगत में सन्नाटा छाया है। यदि यही काम कोई गैर इस्लामी देश कर रहा होता तो इस्लामी जगत और विशेष रूप से अरब देश एवं ओआइसी सरीखा इस्लामी देशों का संगठन तो आपे से बाहर होता ही, दुनिया भर और विशेष रूप से यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि में रह रहे मुस्लिम भी सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन कर रहे होते, जैसा कि वे इन दिनों इजरायल के खिलाफ कर रहे हैं। तय मानिए कि यही काम भारत में भी कई इस्लामी संगठन और वामपंथी सोच वाले समूह कर रहे होते, लेकिन अब उनके मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही है। यह ध्यान रहे कि इन्हीं तत्वों ने तब आसमान सिर पर उठा लिया था, जब नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए पारित हुआ था.


सीएए किसी को भी भारत से बाहर करने के लिए नहीं, बल्कि पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने यानी उन्हें राहत देने के लिए लाया गया था। इस कानून का भारत के किसी नागरिक, चाहे वह किसी भी पंथ-समुदाय का हो, से कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन इसके बाद भी अनेक विरोधी दलों, इस्लामी संगठनों और फर्जी किस्म के मौकापरस्त लिबरल-सेक्युलर-कम्युनिस्ट तत्वों ने यह माहौल बना दिया था कि इस कानून के जरिये मुसलमानों की नागरिकता छीनने का काम किया जाएगा.


इसी विषाक्त माहौल के कारण देश के कई शहरों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में सैकड़ों लोग एक मुख्य सड़क घेर कर तब तक बैठे रहे, जब तक कोरोना की दहशत तारी नहीं हो गई। यह भी सनद रहे कि शाहीन बाग के इसी अराजक धरने के कारण दिल्ली में भीषण दंगे हुए, जिनमें 50 से अधिक लोग मारे गए। यह भी याद रखें कि भारत सरकार जब कभी बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों (न कि शरणाथियों) को बाहर करने की कोई पहल करती है तो किस तरह लिबरल-इस्लामिस्ट तत्व विरोध करने के लिए आगे आ जाते है और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाते हैं.









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