लड़ाई दो देशों के बीच होती है, मगर इसका बेहद तकलीफदेह खमियाजा बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं को उठाना पड़ता है...



जंग। अतीत से लेकर अब तक के सभी युद्ध बच्चों और महिलाओं के लिए त्रासद अमानवीय हालात ही पैदा करते रहे हैं। इसमें लड़ाई दो देशों के बीच होती है, मगर इसका बेहद तकलीफदेह खमियाजा बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं को उठाना पड़ता है। करीब एक महीने पहले हमास के हमले के बाद शुरू हुए युद्ध में इजराइल की बमबारी से व्यापक तबाही हो चुकी है.


अब तक करीब दस हजार लोग मारे जा चुके हैं। सबसे त्रासद है कि इसमें जान गंवाने वाले बच्चों की संख्या चार हजार से ज्यादा हो चुकी है। ये वे बच्चे थे, जिनकी युद्ध और हिंसा के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं थी, लेकिन उन्हें भी निशाना बनाने में कोई संकोच नहीं दिखाया गया। इसमें कोई दो राय नहीं कि इजराइली सीमा में हमास का अचानक हमला और उसमें चौदह सौ लोगों की हत्या बर्बरता का एक उदाहरण है.

इजराइल की ओर से उसकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी, लेकिन इससे फिलिस्तीन में इतनी बड़ी तादाद में आम लोगों और बच्चों के मारे जाने को उचित नहीं माना जा सकता.


इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी जारी की कि गाजा में चल रहा युद्ध बच्चों के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है। फिर भी युद्ध विराम जैसी किसी मांग पर विचार तक करने की जरूरत नहीं समझी जा रही। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इजराइली हवाई हमलों में आम रिहाइशी इलाकों, अस्पतालों और राहत शिविरों को भी नहीं बख्शा जा रहा है.


ऐसी जगहों पर शरण लेने वाले बच्चों और महिलाओं का मारा जाना बताता है कि न तो अब युद्ध के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय कानून की परवाह करने की जरूरत समझी जा रही है और न मानवीयता और उसके नैतिक तकाजों के लिए कोई जगह रह गई है। हमास ने जिस तरह आम लोगों के खिलाफ बर्बरता की, उसका बचाव नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके बाद इजराइल ने जो रुख अख्तियार किया हुआ है, वह उसे हमास की ही श्रेणी में खड़ा कर देता है। उसके हमले में पनाहगाह बने अस्पताल और स्कूल जैसी जगहों को बख्श देने का कोई नैतिक तकाजा नहीं बचा दिखता है.


हालत यह है कि संयुक्त राष्ट्र की ओर जताई गई चिंता और उसके मुताबिक इजराइल को अपनी आक्रामकता पर पुनर्विचार करने की कोई जरूरत महसूस नहीं हो रही। नतीजतन, उसके हमले के सबसे त्रासद शिकार महिलाएं और बच्चे हो रहे हैं। सवाल है कि जिन मासूमों का सामूहिक कत्लेआम किया जा रहा है, युद्ध को शुरू करने में उनकी क्या भूमिका थी? हर युद्ध के दौरान महिलाएं और बच्चे बस शांति का इंतजार कर रहे होते हैं.


यह ध्यान रखने की जरूरत है कि युद्ध में शिकार केवल दोनों पक्षों के मोर्चे पर मौजूद सैनिक नहीं होते। खासकर आधुनिक युद्ध का जो तकनीकी स्वरूप हो गया है, उसमें सैनिक कम और आम लोग ज्यादा मारे जाते हैं। इस दौर में नई तकनीकों और विज्ञान के औजारों के बूते दुश्मन देश में भी चप्पे-चप्पे के बारे में जानकारी निकाल ली जाती है, उसमें चुन कर ठीक निशाने पर हमले किए जा रहे हैं.


मगर इतनी बड़ी तादाद में बच्चों का मारा जाना यह बताता है कि इजराइल के लिए अब युद्ध की नैतिकता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खयाल रखना बिना महत्त्व के मसले हैं। सवाल है कि युद्ध की यह आग कितने और बच्चों की जान लेगी और उसे भविष्य में कैसे सही ठहराया जा सकेगा?


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