जिस आलम में नौजवान गुजर रहे हैं मां-बाप उस हिसाब से नहीं सोच पा रहे

 


                                 Photo: थर्ड पार्टी 

नशा। जैसे- जैसे समाज ने तरक्की की सीढिय़ां चढ़ी हैं नई व्यवस्थाओं का आगमन हुआ है। इसके साथ ही कुछ बुरी चीजों का भी रुझान बढ़ा है। ऐसे ही एक रुझान की बात करें तो वह है नशे की समस्या। 26 जून अंतर्राष्ट्रीय नशा विरोध दिन के लिए रखा गया है ताकि जागरूकता और कार्रवाई पर साल भर पहरा लगाया जा सके और आपसी सहयोग के साथ नशे को खत्म  किया जा सके। नशा करने से नुक्सान सिर्फ सेवन करने वाले का ही नहीं बल्कि पूरे समाज का ही है क्योंकि नशा कई प्रकार की बुराइयों को जन्म देता है, जैसे लूटपाट, चोरियां, घरेलू हिंसा आदि। 


अकेली बेरोजगारी ही नशे का मुख्य कारण नहीं नशे की दलदल में तो कई बड़े घरों के बच्चे भी फंसे हुए हैं।




सोचने वाली बात यह है कि नशा मुक्ति केंद्रों, दवाइयों और डाक्टरों की भी कोई कमी नहीं है परन्तु यह बीमारी फिर भी बढ़ रही है क्योंकि माहौल बड़ा तनावपूर्ण और उकसाने वाला है और नशे की लत मन से जुड़ी होती है। हर व्यक्ति अपने कामकाज या उलझनों में फंसा हुआ है। अपनी भावनाएं किसी से शेयर करना चाहता है पर मोबाइल युग में उसे सामाजिक तौर पर समय न मिलना उसके जीवन को बेरंग कर रहा है। 


जिस आलम में नौजवान गुजर रहे हैं मां-बाप उस हिसाब से नहीं सोच पा रहे क्योंकि बहुत से मां-बाप को सोशल मीडिया का अनुभव नहीं है। कैसा माहौल हावी हो रहा है इस बात को गहराई से जानने के लिए सरकारें मनोवैज्ञानिकों की कमेटी गठित करें ताकि रिपोर्ट में पता चले कि कौन-सी बातें या माहौल नौजवान के मन में नशे का विचार लाता है। क्या नौजवान वर्ग नशे को स्टेटस सिंबल मान रहे हैं या फिर तनाव के कारण नशे में फंसे हुए हैं या कोई और बात है। फिर उसी प्रकार की रणनीति तैयार हो। 


एक और अहम बात कि जनता और सियासतदान इसे सामाजिक लड़ाई लेकर चलें और सारे सियासतदान चाहे किसी भी पार्टी-दल से संबंधित हों, की इस गंभीर मुद्दे पर एक राय हो। नशा अमरीका, कनाडा में भी बहुत है पर वहां लोग जागरूक हैं और वे ‘जिन्दाबाद’, ‘मुर्दाबाद’ में नहीं बल्कि नशे को कम करने में प्रयासरत रहते हैं।

Post a Comment

0 Comments