नशे के कारण अन्य समस्याओं के साथ-साथ, कई देशों की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा आज खतरे में


नशा। हाल ही में हमने अंतर्राष्ट्रीय नशा उन्मूलन दिवस मनाया है। हर वर्ष 20 लाख से ज्यादा जिन्दगी निगल लेने वाले इस काले सच ने पूरे विश्व को अपनी गिरफ्त में ले लिया। तभी आज पूरा विश्व इस विषय पर इतना संवेदनशील है। नशे के कारण अन्य समस्याओं के साथ-साथ, कई देशों की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा आज खतरे में है। पूरी दुनिया के देशों ने इस के उन्मूलन के लिए अभियान चला रखा है। 


भारत में इसकी स्थिति पर आज चर्चा करेंगे। देश में सदियों से नशे का किसी न किसी रूप में प्रचलन रहा है। यह पदार्थ कुदरती रूप में प्रकृति द्वारा उपलब्ध होते थे। आज उन कुदरती पदार्थों की जगह सिंथैटिक और रासायनिक पदार्थों ने ले ली।




जोकि खतरनाक, जान लेवा रसायनों से, कृत्रिम रूप में प्रयोशालाओं में बनाए जाते हैं। 


मेरे विचार से भारत को कुदरती पदार्थों से, सिंथैटिक और रासायनिक पदार्थों को ओर मोडऩा, एक सोची समझी अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है। जिसका मकसद देश की युवा पीढ़ी को मानसिक और शारीरिक, समाज को विघटित तथा देश को आर्थिक और आंतरिक सुरक्षा के तौर पर कमजोर करना है। इन पदार्थों का सेवन करने वाले की जिन्दगी का सफर, ज्यादातर सिर्फ और सिर्फ मौत तक जाकर ही समाप्त होता है। ऐसा नशा करने वाले व्यक्ति के लिए कत्ल, बलात्कार, लूटपाट, चोरी, डकैती जैसे अपराध करना आम बात है। 


ऐसे भी उदाहरण हैं कि नशे में या उसकी आपूर्ति के लिए, व्यक्ति ने अपनी मां, बहन, बाप, भाई आदि के साथ घिनौने से घिनौना अपराध किया है। रिश्तों की मर्यादा को भंग किया है। जिसका  जिक्र भी कष्टदायक है। नशा करने वाला शख्स जहां नपुंसकता, अंग हीनता जैसी शारीरिक यातनाओं को सहता है वहां उसका परिवार मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, आदि समस्याओं से जूझता है। इस के दुष्परिणाम लगभग देश के हर कोने में देखने को मिल रहे हैं। 


पुराने भारत में नशे के इतिहास की बात करें, तो हम पाएंगे कि समाज में नशे का प्रचलन हमेशा रहा है। सोमरस आदि का जिक्र भारतीय इतिहास में आता है। परन्तु रासायनिक पदार्थों के आगमन के बाद, जो भयावह तथा गंभीर स्थिति बनी है, वह एक पीढ़ी ही नहीं देश की आॢथक, सामाजिक और सुरक्षा को भी गंभीर खतरा है। पुराने समय में नशे में प्रयोग होने वाले पदार्थ प्राकृतिक तथा पेड़ पौधों से बनाए जाते थे। हमारे देश पर कुदरत की ऐसी कृपा है, कि लगभग हर प्रदेश में अच्छी जलवायु होने के कारण यहां हजारों तरह के फल-फूल सब्जियां तथा लाखों तरह की जड़ी-बूटियां पैदा होती हैं और ये सभी औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं, जो हमारे जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी रही हैं। इन जड़ी बूटियों को हमारे विद्वान और चिकित्सक सदियों से दवाइयां बना कर गंभीर से गंभीर बीमारियों का उपचार करते रहे हैं। इनमें से कुछ ऐसी चीजें, जैसे अफीम, तम्बाकू, डोडे, भुक्की  आदि ऐसे पदार्थ हैं, जिन को भारतीय चिकित्सक औषधि के तौर पर, परन्तु समाज का एक वर्ग इसे नशे के तौर पर भी प्रयोग करता रहा है। 


कुदरती चीजों जैसे अंगूर या गुड़ आदि से शराब, तम्बाकू को बीड़ी तथा हुक्का में प्रयोग, मेहनत मजदूरी करने वाले लोग ज्यादा काम कर सकें,  इसकेे लिए अफीम, भुक्की, डोडे आदि का सेवन करना, हमारे समाज में आम बात थी। ये सब वस्तुएं कुदरती तौर पर प्रकृति की देन थीं। जिनके अति सेवन करने से निश्चित तौर पर नुक्सान थे, कभी-कभार बहुत ज्यादा और लम्बे समय तक खाने से गंभीर बीमारी की खबरें भी आती थीं। परन्तु इतने भयानक और डरावने परिणाम कभी नहीं रहे, जितने इस सिंथैटिक नशे के कारण हो रहे हैं।

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