हिंदू धर्म की दो प्रमुख धाराओं शैव और वैष्णव को समर्पित ये चार धाम उसके प्रमुख आधार

 


आस्था का संबंध मनुष्य की जीवनशैली, आध्यात्मिक और धार्मिक विश्वास से है। इसी क्रम में तीर्थ स्थान आते हैं, जिनमें ऐसे दुर्गम स्थल भी हैं, जहां तक पहुंचना हंसी-खेल नहीं, बल्कि एक चुनौती है। किसी समय तो इन स्थानों पर जाने से पहले व्यक्ति अपने परिवार से अंतिम विदाई लेकर जाता था अर्थात यात्रा के बीच ही मृत्यु होने की आशंका रहती थी। चार धाम अर्थात यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा भी इसी श्रेणी में आती थी। वर्तमान समय में सुविधाएं तो बढ़ी हैं लेकिन अभी भी बहुत दुखदायी और कष्टकारी है, जबकि यात्रा मनोरम, आनंददायक, सुखकारी व यादगार हो सकती है। केंद्र और राज्य सरकारों के पर्यटन विभाग अगर चाहें तो ये स्थल देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए जबरदस्त आकर्षण का केंद्र हो सकते हैं।  .


अमानवीय व्यवस्था : मई के महीने में चारधाम यात्रा करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सबसे अधिक प्रचार किया जाता है और यात्रियों के लिए भी मौसम के सुहावने होने की उम्मीद रहती है।



अधिक उम्र के व्यक्ति यानी 80 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले भी इन्हीं दिनों जाना चाहते हैं। मैं भी 80 पार कर चुका हूं, तो अपनी भतीजी पूजा और उसके पति गोल्डी नागदेव, जो 40 के दशक में हैं, के सुझाव पर कार्यक्रम बना लिया। 


देहरादून तक की यात्रा कार से हुई और वहां से अगले दिन सुबह हैलीकॉप्टर से जाना था, जो आयोजकों ने थंबी हैली सॢवस से तय की, जिन्होंने शरीर का औसत वजन 75 किलो और सामान का 5 किलो तय किया था। मशीन के तोलने पर वजन कुछ ज्यादा निकला तो कुछ सामान कम करना पड़ा, जिसमें मौसम के मुताबिक रखे कपड़े भी छोडऩे पड़े। हैलीकॉप्टर सॢवस की कमी उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत अपराध है, जो हमारे साथ यहीं से होना शुरू हो गया। समय पर न उडऩा और यात्रियों को तनाव में रखना उसका काम हो गया। चार दिन की यात्रा में तीन दिन बहसबाजी और झगड़े में निकल गए। सुबह निर्धारित समय की बजाय 5 से 8 घंटे की देरी से उड़ता और तब तक इन तीर्थों की अनुपम छटा, प्राकृतिक सौंदर्य देखने और धाम दर्शन का उत्साह कम होता जाता। 


यमुनोत्री मंदिर तक जाने के लिए जो रास्ता है, वह इतना टूटा-फूटा, गड्ढों और फिसलन से भरा है कि राज्य सरकार और प्रशासन की लापरवाही सामने आने लगी। पैदल चलना संभव न था तो एक पालकी कर ली। यह लकड़ी के एक पिंजरे जैसी होती है, जिसमें एक तरह से फंसा दिया जाता है। उसे उठाने के लिए मजदूर ज्यादातर नेपाल से रोजी-रोटी की तलाश में यहां भारी तादाद में आते हैं। ये लोग चारों धाम में मिलेंगे। पालकी के अलावा कुर्सी जैसी डोली भी मिलती है। खच्चर घोड़े भी जाने के साधन हैं। 


इंसानियत को मानने वालों और ह्यूमन राइट्स कमीशन तथा पशुओं के प्रति अत्याचार रोकने के लिए बनी संस्थाओं की अब तक इस अमानवीय व्यवस्था पर नजर क्यों नहीं पड़ी, यह आश्वर्य और खेद का विषय है। इसमें सरकार की भागीदारी भी है क्योंकि जो राशि इन मजदूरों को यात्रियों द्वारा दी जाती है, उसमें सरकार का भी हिस्सा है। इसके अलावा एक माफिया भी हिस्सेदार है जो इनसे वसूली और ड्रग तथा अल्कोहल के कारोबार में लिप्त है। 


पालकी या डोली में बैठकर चढ़ाई करना आसान नहीं। लगता है कि शरीर के सभी अंग हिलडुल गए हों। नीचे खाई में लुढ़कने का डर बना रहता है। ये मजदूर सधे हाथों से ऊबड़-खाबड़ रास्ते से बिना नीचे गिराए हुए ले जाते हैं। फिर भी दुर्घटनाएं होती रहती हैं और हर साल 3-4 सौ लोग काल के ग्रास में समा जाते हैं। इनकी मृत्यु पर किसी का ध्यान नहीं जाता क्योंकि प्रतिदिन 7-8 से 40 हजार तक यात्री आते-जाते हैं। स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाएं न के बराबर हैं। अगर कुछ हो जाए, तबीयत बिगड़ जाए तो ईष्ट देवता ही रक्षा करेंगे, ऐसा अनुभव हो रहा था। 


चार धाम का अलौकिक अनुभव : चार धाम यात्रा का पश्चिम से पूर्व की ओर जाने का अपना पैटर्न है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर ये स्थल अपने विलक्षण और नैसॢगक स्वरूप में ऐसे हैं, जिनकी तुलना विश्व के किसी स्थल से नहीं की जा सकती।  यहां जो कलकल करती हमारी पवित्र और जीवनदायिनी नदियों यमुना और गंगा के प्रवाहित होने का स्वर और ध्वनि है, साथ में बर्फ से ढके विभिन्न रंगों और आकार की पर्वत शिलाएं और शृंखलाएं हैं, अपने आकर्षण में बांधने के लिए काफी हैं। स्वच्छ और प्रदूषण रहित वायु और कुदरती जल स्रोतों का मीठा पानी थकान हर लेता है। 


यमुना और गंगा के उद्गम स्थल और विशाल प्रदेश से गुजरते हुए प्रयागराज में संगम स्थल पर सरस्वती का मिलन रोमांचकारी है। हालांकि प्रकृति का प्रकोप झेलने के लिए अभिशप्त यह प्रदेश अक्सर अनेक दुर्घटनाओं का साक्षी रहा है और सन् 2013 की त्रासदी के लक्षण अभी भी दिखाई पड़ते हैं, पर इससे यात्रियों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। 


यमुनोत्री और गंगोत्री यमुना और गंगा के कारण और भगवान शिव का साक्षात रूप में केदारनाथ और भगवान विष्णु का बद्रीनाथ में दर्शन किया जा सकता है। अलकनंदा नदी के भी दर्शन यहां हो जाते हैं। हिंदू धर्म की दो प्रमुख धाराओं शैव और वैष्णव को समर्पित ये चार धाम उसके प्रमुख आधार हैं। इस यात्रा को मोक्ष अर्थात जन्म-मरण के बंधन से मुक्त करने वाली कहा गया है। इसका संबंध महाभारत से भी है। महर्षि व्यास ने यहीं बैठकर हिंदू धर्म ग्रंथों की रचना की, राजा बलि, सगर से लेकर पाण्डु पुत्रों के स्वर्ग जाने के स्थल भी यहीं हैं। 


गंगोत्री तक सड़क मार्ग से जाना सुगम है, लेकिन बाकी तीनों स्थानों पर जाने के लिए बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। यदि सरकार चाहे तो इसे भी आसान बना सकती है। एक विशाल परियोजना के जरिए रोप-वे और अन्य सुविधाओं का जाल बिछाकर यह क्षेत्र सुंदर, सुविधाजनक, आरामदायक बन सकता है, प्रकृति तथा प्राचीन इतिहास के दर्शन करा सकता है। यही नहीं, दुनिया के ऐसे दर्शनीय स्थलों के बीच प्रमुख स्थान पा सकता है कि हर कोई यहां आना अपना लक्ष्य बना ले।


सौजन्य से: साभार




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