आक्रामकता के कारण चीन दुनिया में सिर्फ उत्तर कोरिया और पाकिस्तान जैसे देश का मित्र बनकर सिमट गया

 


चिंता । चीन इन दिनों अमरीका की टक्कर में आने की जोर-शोर से तैयारी कर रहा है। इसके लिए चीन ने पहले अमरीका के विरोध में आक्रामक डिप्लोमेसी का सहारा लिया लेकिन इस वजह से चीन का डिप्लोमेसी में जो स्थान था वह पिछले कुछ वर्षों में ही टूटकर चकनाचूर हो गया। इसी आक्रामकता के कारण चीन दुनिया में सिर्फ उत्तर कोरिया और पाकिस्तान जैसे देश का मित्र बनकर सिमट गया था, वैश्विक स्तर पर चीन को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ा जिससे अंतर्राष्ट्रीय पटल पर उसकी स्वीकार्यता बढ़े। 


इसके लिए चीन ने एक बार फिर अमरीका के जूतों में अपना पैर डालने की कोशिश की लेकिन इस बारे में रणनीतिक जानकारों का कहना है कि चीन की डिप्लोमेसी अभी इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह अमरीका  के बराबर खड़ा हो सके।




ऐसा करने के दौरान यह जरूर हो सकता है कि दुनिया चीन को पूरी तरह नकार दे। 


इसके लिए चीन ने ईरान और सऊदी अरब के बीच एक समझौता कराने की शुरूआत की जिसका कुछ असर भी हुआ और दोनों देशों ने वर्षों बाद आपसी राजनयिक संबंधों की एक बार फिर से शुरूआत करने की घोषणा की जिसने दुनिया को आश्चर्य में जरूर डाल दिया है। वह दोनों देशों में सुलह कराने की कोशिश को खुद को अमरीका के विकल्प के तौर पर पेश किया और दुनिया को यह दिखाने की कोशिश भी की है कि वुल्फ वॉरियर वाली छवि अब चीन बदलना चाहता है और पूरी दुनिया में शांति और स्थायित्व लाना चाहता है। इस बारे में कुछ लोगों का मानना है कि चीन द्वारा किया गया यह एक महत्वपूर्ण काम है, इससे पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र में अमरीका को अपनी पकड़ बनाने के लिए फिर से काम करना पड़ेगा। 


ईरान और सऊदी अरब में यह समझौता होने के बाद न तो दोनों देश दुश्मन से दोस्त बनेंगे और न ही बहुध्रुवीय मध्य-पूर्व के देशों में कोई रणनीतिक बदलाव आने की उम्मीद है। दरअसल चीन का उठाया गया यह कदम दुनिया को चौंकाता भी नहीं है, असल में पिछले कुछ वर्षों से चीन अपनी आक्रामक छवि बनने से परेशान था, हालांकि यह छवि उसने किसी के दबाव में नहीं बल्कि चीन के तानाशाह शी जिनपिंग के कहने पर बनाई थी लेकिन आक्रामक छवि या वुल्फ वॉरियर वाली छवि से चीन अब बाहर निकलना चाहता था क्योंकि पूरी दुनिया में चीन की एक आक्रामक छवि बन चुकी थी। 


चीन अब खुद को एक ऐसे देश के रूप में दुनिया के सामने पेश करना चाहता था इसलिए उसने सकारात्मक डिप्लोमेसी का सहारा लिया, न सिर्फ मध्य-पूर्व में बल्कि दुनिया में अपनी ऐसी छवि बनाने की शुरूआत की। रणनीतिक मामलों में जानकार कहते हैं कि चीन चाहे किसी भी तरह से अपनी छवि बदलने की कोशिश कर ले लेकिन अंतत: चीन अपने असली रूप में दुनिया के सामने आएगा और उसका असल चेहरा आक्रामक ही है। 


असल में चीन शांति समझौता कराने वाले देश के तौर पर दुनिया में अमरीका की जगह नहीं लेना चाहता बल्कि चीन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिल रहे अवसरों को पकड़ कर दूसरों द्वारा किए गए कामों का फल खुद ही खाना चाहता है। वैसे भी इस समय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थायित्व से चीन की अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा लाभ मिलने वाला है, इसके साथ ही चीन के लिए वैश्विक स्तर पर अपनी छवि को सुधारना भी बहुत जरूरी है। हाल ही में चीन ने यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध में मध्यस्थता करने की कोशिश की लेकिन चीन का यह प्रस्ताव साफ नहीं था और शी जिनपिंग की मॉस्को यात्रा को वैधता प्रदान करने जैसा था, चीन इस यात्रा से खुद को एक संतुलित और जिम्मेदार शक्ति सम्पन्न देश के रूप में पेश करना चाहता था। 


वहीं दूसरी तरफ चीन ने अरब देशों में एक-दूसरे के धुर विरोधी इसराईल और फिलस्तीन के बीच भी समझौता कराने की पहल की लेकिन चीन ने इसके लिए कोई नई योजना नहीं बनाई बल्कि पुरानी योजनाओं में से एक को कार्यान्वित करने की कोशिश की, जैसा पहले भी कई देश कर चुके हैं और उन्हें भी इस पहल में शून्य सफलता मिली थी।

साभार: कॉपी लिंक 






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