निर्दोष को दोषी साबित करने के लिए पुलिस ने बदल दिया था सेंपल

         भ्रष्ट पुलिस वालों की करतूत से सड़कों पर आ गया करोड़पति


बस्ती। क्या किसी करोड़पति बिजनेसमैन को किराया ना देने वाले सिपाही को घर से निकालने की सजा 20 साल की मिल सकती है।

सुनकर हैरानी अवश्य हो रही होगी मगर यह एक ऐसा सच है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

इस पूरे मामले में जिस तरह तत्कालीन सीओ सिटी अनिल सिंह, एसओ पुरानी बस्ती लालजी यादव और एसआई नर्मदेश्वर शुक्ल ने किराया न देने पर घर से निकाले गए खुर्शीद नाम के एक सिपाही के साथ मिलकर एक निर्दोष को फंसाने की साजिश रची, उसे पुलिस के इतिहास में काला अध्याय के रूप में याद किया जाएगा।


भ्रष्ट पुलिस वालों की करतूत से सड़कों पर आ गया करोड़पति


इन लोगों की साजिश का परिणाम यह हुआ कि जो व्यक्ति कई करोड़ों में खेलता था उसे पुलिस की करतूतों ने भिखारी बना दिया. अब्दुल्ला अय्यूब को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए 20 साल लग गए. इस बीच उसका करोड़ों का पूरा कारोबार तबाह हो गया, तनाव में मां की मृत्यु हो गई, अय्यूब को कई महीने जेल में रहकर गुजारने पड़े, समाज में मान सम्मान इज्जत सब चला गया। पुलिस ने इस व्यक्ति को फर्जी दोषी साबित करने के लिए नमूना तक बदल दिया।


न्यायाधीश विजय कुमार कटियार ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

पुलिस ने खुले बाजार में बिकने वाले पाउडर को हेरोइन बता दिया और करोड़ों रुपए की हेरोइन बरामदगी का आरोप लगाकर अय्यूब को जेल में डाल दिया. अय्यूब को शायद कभी भी न्याय नहीं मिलता अगर अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम विजय कुमार कटियार केस की सुनवाई नहीं करते. पुलिस इस केस को पिछले 20 सालों से न जाने कितने न्यायालयों में घुमाती रही लेकिन जज विजय ने एक ही झटके में मामले को निस्तारित कर दिया. इसके लिए उनके निर्णय की चारों तरफ सराहना हो रही है. माननीय न्यायाधीश ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसे सुनने के लिए कई माननीय न्यायाधीश को सालों लग गए फिर भी निर्णय नहीं दिया।


माननीय न्यायाधीश विजय कुमार कटियार ने पुलिस के इस पक्ष को पूरी तरह दरकिनार कर दिया जिसमें अय्यूब के पास से एक करोड़ की हेरोइन बरामद का दावा किया गया था. अभियोजन पक्ष की बचाव पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व एडीजी प्रेम प्रकाश श्रीवास्तव के सामने एक ना चली. न्यायालय को न्याय देने के लिए लखनऊ से 2 वैज्ञानिक तक को तलब करना पड़ा, जिन्होंने यह बताया कि जिस हेरोइन का नमूना दिल्ली जांच के लिए भेजा गया था उस नमूने में हेराफेरी की गई इसलिए नमूना सही बताया, वैज्ञानिकों ने न्यायालय को यह भी बताया कि हेरोइन का कलर कभी भी नहीं बदलता, दिल्ली की जांच में भूरा हीरोइन बदलकर भेजा गया।


14 मार्च 2003 का है मामला


इसलिए न्यायालय ने भी माना कि पुलिस ने इस पूरे मामले को गलत ढंग से पेश किया. अभियोजन पक्ष ने भी कोर्ट का समय बर्बाद किया. खास बात यह रही कि जब पुलिस ने हड़िया के पास से 14 मार्च 2003 को अय्यूब से एक करोड़ की लागत वाली 25 ग्राम हेरोइन बरामद की थी, उस वक्त अय्यूब के पास एक भी रुपया नहीं मिला था, जरा अंदाजा लगाइए कि जो एक करोड़ का हेरोइन लेकर जा रहा हो और उसके पास घर तक पहुंचने या फिर गंतव्य तक जाने के लिए एक भी रुपया ना हो, ऐसा कैसे संभव है. इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका पूरी तरह संदेहात्मक रही है। अभियोजन की ओर से 4 गवाह पेश किए गए, लखनऊ में जांच के लिए 5 ग्राम कथित हेरोइन को लखनऊ लैब भेजा गया, जो पुलिस ने सील हेरोइन में से न भेजकर कहीं बाहर से अरेंज कर के भेजी थी।

निर्दोष को दोषी साबित करने के लिए पुलिस ने बदल दिया था सेंपल


अभियोजन की ओर से एक बार फिर से न्यायालय के द्वारा हेरोइन को जांच के लिए दिल्ली भेजा गया. दिल्ली से आई रिपोर्ट में कहा गया जो हेरोइन भेजा गया उसका रंग भूरा है. इसके बाद जब न्यायालय ने माल खाने से मंगवाकर सील की गई हेरोइन को देखा तो वह सफेद रंग का पाउडर निकला. पुलिस ने जानबूझकर दिल्ली जांच के लिए भूरा रंग का नमूना भेजा था, रंग बदलने के मामले में अभियोजन पक्ष ने जलवायु में परिवर्तन होना बताया लेकिन जब दोनों वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया कि हेरोइन का रंग कभी नहीं बदल सकता, तब कोर्ट को लगा कि पुलिस और अभियोजन झूठ बोल रहे हैं. इस पर माननीय न्यायाधीश ने अय्यूब को दोष मुक्त करने का निर्णय सुनाया. अय्यूब को कोर्ट से न्याय मिल गया वरना पुलिस ने तो जिंदगी भर उन्हें जेल में सड़ाने की योजना बनाई रखी थी।

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