सड़क पर वाहन चलाते हुए एक व्यक्ति ऐसे अहं से कैसे और क्यों भर जाता है

 


सड़क सुरक्षा। हत्या अपने आप में एक जघन्य अपराध है और ऐसी वारदात के बाद जांच के क्रम में इसके कारणों की खोज को सबसे अहम पहलू माना जाता है। लेकिन इससे त्रासद और क्या होगा कि राह चलते बिल्कुल साधारण बातों पर भी कुछ लोग किसी पर जानलेवा हमला या फिर पीट-पीट कर उसकी हत्या तक कर देते हैं।खासकर शहरों-महानगरों में आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आने लगी हैं, जिनमें वाहन चलाते हुए बेहद मामूली बात पर भी लोग आपस में भिड़ जाते हैं और उसमें हुई मारपीट के क्रम में कई बार किसी की जान चली जाती है।

गौरतलब है कि दिल्ली के रणजीतनगर इलाके में शनिवार को देर रात सामान पहुंचाने वाले एक स्कूटी सवार युवक की दो अन्य युवकों ने पीट-पीट कर हत्या कर दी, क्योंकि उसके वाहन को रास्ता देने को लेकर कहा-सुनी हो गई थी।

क्या यह कोई ऐसा कारण हो सकता है कि इतने भर के लिए हत्या जैसी घटना हो जाए? बल्कि होना यह चाहिए कि राह चलते आमने-सामने होने पर एक-दूसरे के साथ सद्भाव से पेश आया जाए तो रास्ता देना कोई मसला बनेगा ही नहीं।


मगर आज हालत यह हो चुकी है कि अनदेखी करने वाली किसी बात पर भी कोई इस तरह आक्रामक हो उठता है, जिसके बाद विवाद की शक्ल बिगड़ने लगती है और सड़क पर बेलगाम मारपीट शुरू हो जाती है। यानी जिस बात पर सिर्फ चंद पल धीरज रख लिया जाए, तो किसी की गलती होने पर भी आसान-सा हल निकल आएगा, उसमें नाहक ही किसी की जान चली जाती है, तो दूसरा हत्यारा बन कर कानून के कठघरे में खड़ा होता है।


अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिसमें सड़क पर सफर करते हुए कोई वाहन हल्का-सा किसी अन्य से छू जाए, रास्ता बाधित हो जाए, तो दोनों पक्ष दूसरे को गलत साबित करना और वहीं उस पर हमला करना प्राथमिक और अंतिम उपाय मान लेते हैं। ऐसा लगता है कि झगड़े के वक्त आक्रोश में व्यक्ति होश और अपने ऊपर लगाम खो देता है और उसके बाद सही-गलत या उचित-अनुचित पर विचार तक नहीं कर पाता। मानो किसी दौरे का शिकार होकर वह सिर्फ अपने सामने वाले पर हमला करता है और उसे ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है।


सवाल है कि सड़क पर वाहन चलाते हुए एक व्यक्ति ऐसे अहं से कैसे और क्यों भर जाता है कि बेहद मामूली बात का सद्भावपूर्ण का हल निकालने में अक्षम हो जाता है। इतनी कुंठा उसके भीतर कहां से भर जाती है, जो किसी नाजुक मौके पर बेलगाम होकर बाहर निकलती है और किसी निर्दोष की भी जान चली जाती है। इस स्तर तक विवेक के क्षरण की स्थिति में व्यक्ति न केवल दूसरों के लिए, बल्कि कई बार खुद के लिए भी घातक हो जाता है।


सभ्य बर्ताव, विवेक और धीरज का उपयोग करने की जरूरत को समझना क्या इतना मुश्किल है कि कोई व्यक्ति राह चलते नाहक ही या तो किसी पर जानलेवा हमला कर देता है या फिर खुद अपनी जान को खतरे में डाल लेता है? जबकि सड़क पर यातायात नियमों के मुताबिक वाहन चलाते हुए सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की होती है कि मन को शांत और धीरज बनाए रखा जाए। सिर्फ इतने भर से दूसरों के साथ-साथ अपने लिए भी सुरक्षित सफर सुनिश्चित किया जा सकता है।




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