आतंकियों तक पहुंचने के साथ उनके समर्थकों और उनके आकाओं पर भी शिकंजा कसा जाना चाहिए

 


साभार: नेहा सांवरिया। अब जब यह स्पष्ट हो गया है कि पुंछ में सेना के वाहन पर किया गया हमला आतंकियों की करतूत है, तब फिर आवश्यक केवल यह नहीं है कि उसकी जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए करे, बल्कि यह भी जरूरी है कि हमला करने वाले आतंकियों तक पहुंचा जाए। इन आतंकियों तक पहुंचने के साथ उनके समर्थकों और उनके आकाओं पर भी शिकंजा कसा जाना चाहिए। 

आम तौर पर ऐसे हमले तभी होते हैं, जब आतंकियों को स्थानीय स्तर पर सहयोग और समर्थन मिलता है। यह चिंताजनक है कि आतंकी संगठन कश्मीर के बाद जम्मू क्षेत्र में भी अपनी सक्रियता बढ़ा रहे हैं। पिछले कुछ समय में वे जम्मू संभाग में कई घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं।

स्पष्ट है कि जैसे कश्मीर घाटी में आतंकियों के सफाए के लिए अभियान चलाया जा रहा है, वैसे ही जम्मू संभाग में भी चलाया जाए।

ऐसे किसी अभियान को सफलता तब मिलेगी, जब आतंकियों को शरण देने और उनकी मदद करने वालों के खिलाफ भी कठोर कार्रवाई की जाएगी। चूंकि पुंछ में हुए हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान आधारित आतंकी सगंठन से जुड़े एक आतंकवादी गुट ने ली है, इसलिए इसमें संदेह नहीं रह जाता कि पाकिस्तान अभी भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है।


पाकिस्तान की हरकतों को देखते हुए इसका कोई औचित्य नहीं कि शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने भारत आ रहे पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो की आवभगत की जाए या फिर उनसे द्विपक्षीय संबंधों को लेकर बातचीत की जाए। भारत को अपने इस रुख पर कायम रहना चाहिए कि पाकिस्तान जब तक आतंकी संगठनों को पालने-पोसने से बाज नहीं आता, तब तक उससे कोई बातचीत नहीं हो सकती। 


वैसे भी पाकिस्तान इस समय जिस दयनीय दशा से दो-चार है, उसमें उसे तो भारत की आवश्यकता है, लेकिन भारत को उसकी कहीं कोई जरूरत नहीं। पाकिस्तान जब तक शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता रहता है, तब तक उसके प्रति कहीं कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। इसके बजाय यह देखा जाना चाहिए कि उसे सबक कैसे सिखाया जाए?


पाकिस्तान भले ही बदहाली से ग्रस्त हो, लेकिन वह कश्मीर को अशांत रखने से बाज नहीं आ रहा है। वह तब तक बाज आने वाला भी नहीं, जब तक वह उस आतंकी ढांचे को पोषित करने की कीमत नहीं चुकाता जो जम्मू-कश्मीर में भारतीय हितों पर चोट करता रहता है। चूंकि पाकिस्तान में आतंकी ढांचा पहले की तरह कायम है इसलिए सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ की कोशिश होती ही रहती है। हैरानी नहीं कि पुंछ में हमला करने वाले आतंकी सीमा पार से ही आए हों। पुंछ में हुए जिस आतंकी हमले में हमारे पांच जवानों को बलिदान देना पड़ा, उससे सेना को यह सबक सीखने की भी आवश्यकता है कि सैनिकों की सुरक्षा में किसी भी तरह की लापरवाही घातक हो सकती है।

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