बेशक देश में साक्षरता दर बढ़ी है, लड़कियों को पढ़ा-लिखा कर सशक्त बनाने पर जोर है, इसका असर भी काफी देखा जा रहा


                            

बाल विवाह । बरसों से जागरूकता अभियानों, विज्ञापनों, लेखों आदि के जरिए बाल विवाह की वजह से जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में बताया जा रहा है। सरकारों ने इसके खिलाफ कड़े कानून बना रखे हैं। प्रशासन ऐसी शादियों पर नजर रखने का प्रयास करता है ताकि निर्धारित उम्र से पहले बच्चों का गठबंधन न होने पाए। मगर इन तमाम कोशिशों के बावजूद बहुत कम उम्र में बच्चों की शादी कर देने का चलन बंद नहीं हुआ है।


असम सरकार लगातार 'बाल विवाह' के खिलाफ सख्त कदम उठा रही है. असम सरकार का साफ मानना है कि बाल विवाह कानून का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।


अब ऐसी शादियों के खिलाफ असम सरकार ने व्यापक अभियान शुरू किया है। असम पुलिस का कहना है कि उसने ऐसे आठ हजार लोगों को चिह्नित किया है, जिन्होंने कम उम्र में शादी की या कराई। उनमें विवाह कराने वाले पंडित और मौलवी भी शामिल हैं।


वहां की पुलिस ने इस मामले में दो हजार चौवालीस लोगों को गिरफ्तार भी किया है। राज्य सरकार का कहना है कि ऐसे विवाहों को अवैध करार दिया जाएगा।

चौदह साल से कम उम्र की लड़की के साथ विवाह करने वालों के खिलाफ पाक्सो अधिनियम के तहत और चौदह से अठारह बरस के बीच की लड़कियों से विवाह करने वालों के खिलाफ बाल विवाह रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज होगा। हालांकि असम सरकार की इस सख्ती से वहां के प्रभावित लोगों में नाराजगी देखी जा रही है, मगर सामाजिक बदलाव के लिए उठाए गए सरकारों के ऐसे कदम को अनुचित नहीं कहा जा सकता।

बेशक देश में साक्षरता दर बढ़ी है, लड़कियों को पढ़ा-लिखा कर सशक्त बनाने पर जोर है, इसका असर भी काफी देखा जा रहा है, मगर हकीकत यह भी है कि बहुत सारे वर्गों, खासकर निम्न वर्ग में विवाह की उम्र आदि को लेकर जागरूकता का अभाव है। कई समुदायों में आज भी यह मान्यता बनी हुई है कि कन्या के रजस्वला होते ही उसका विवाह कर देना चाहिए। कई समाजों में तो लड़के और लड़कियों का बचपन में ही विवाह कर दिया जाता है, फिर उनके योग्य होने के बाद गौना किया जाता यानी उन्हें साथ रहने दिया जाता है।

कई समुदायों में लड़कियों की सुरक्षा के लिहाज से भी जल्दी विवाह कर दिया जाता है। वहां माना जाता है कि विवाह के बाद लड़की की अस्मिता पर प्रहार बंद हो जाता है। इन्हीं सब मान्यताओं और धारणाओं के चलते आज भी कम उम्र में विवाह का सिलसिला नहीं रुक पा रहा है। मध्यप्रदेश में तमाम कड़ाई के बावजूद हर साल अखा तीज के दिन बहुत सारे नाबालिगों की शादियां कर दी जाती हैं।

मगर वैज्ञानिक तथ्य यह है कि कम उम्र में लड़कियों का विवाह कर देने और फिर उनके मां बन जाने का सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। वे जीवन भर शारीरिक रूप से कमजोर और बीमारियों से घिरी रहती हैं। वे स्वस्थ बच्चों को जन्म नहीं दे पातीं। कम उम्र में ही उनकी मौत हो जाती है। शिशु और मातृ मृत्यु दर पर काबू पाना इसी वजह से चुनौती बना हुआ है।

ऐसे में असम सरकार का बाल विवाह के विरुद्ध अभियान उचित ही है। मगर इस कड़ाई में उसे यह देखने की जरूरत होगी कि जिन परिवारों के एकमात्र कमाऊ सदस्य इस अभियान में गिरफ्तार होंगे, उनके परिवार का भरण-पोषण कैसे चलेगा। राज्य सरकार को विरोध भी इसी वजह से झेलना पड़ रहा है। पर इससे न सिर्फ वहां, बल्कि दूसरे राज्यों के लोगों को भी एक सबक तो मिलेगा कि कम उम्र में विवाह करने या कराने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं।


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