अपराधी मानसिकता वाले लोग कानून की परवाह नहीं कर रहे


 राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर के बारे में आम धारणा यही है कि इसमें शामिल इलाकों में कानून-व्यवस्था की स्थिति देश के बाकी क्षेत्रों के मुकाबले बेहतर होगी। मगर आए दिन की खबरों से यही लगता कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को पुलिस या कानून का खौफ नहीं है और इस मामले में एनसीआर कोई अपवाद नहीं है।

गाज़ियाबाद, नोएडा तथा दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एक मेट्रो स्टेशन के पास जिस तरह खून से लथपथ शव पड़ा मिला, उससे साफ है कि तकनीकी और व्यवस्थागत दृष्टि से उच्च मानकों वाला शहर माने जाने के बावजूद वहां भी अपराधी मानसिकता वाले लोग कानून की परवाह नहीं कर रहे।

पुलिस को चुनौती देते मादक पदार्थों की बिक्री करने वाले तथा सट्टे की खाईबाड़ी करने वाले गौतमबौद्धनगर में मेले के नाम पर खुलेआम चरखी जुआ की खबरें भी मिलती हैं प्रवासी मजदूरों की गाढ़ी कमाई पर गोरखधंधे करने वालों की नज़र रहती है मेले में होने वाले गोरखधंधों पर अंकुश नहीं लग पा रहा हैं।

यों अब पुलिस अन्य स्रोतों के साथ-साथ सीसीटीवी फुटेज के जरिए हत्यारे का पता लगाने की कोशिश कर रही है, मगर इस संदर्भ में आई खबरों के मुताबिक मृतक के बेटे ने आरोप लगाया है कि मजदूरी के पैसे को लेकर उसके पिता का एक ठेकेदार से झगड़ा हुआ था और इस हत्या के पीछे उसी का हाथ है।


किसी भी आपराधिक घटना के संदर्भ में पुलिस पहले प्राथमिक आशंकाओं और स्रोतों के आधार पर काम करती है। लेकिन इस मामले में किसी आरोपी को पकड़ने में पुलिस को अब तक कोई कामयाबी नहीं मिली है। सवाल है कि एक सुव्यवस्थित और उच्च तकनीकी शहर की पहचान रखने वाले गुरुग्राम में कानून-व्यवस्था की स्थिति ऐसी क्यों है कि किसी मजदूर की पीट-पीट कर हत्या करके कहीं फेंक दिया जाता है और पुलिस को उसका सुराग तलाशने में भी पूछताछ जैसे स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है!

आए दिन सरकार की ओर से दावे किए जाते हैं कि अपराधों को रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरों से लेकर सभी उच्च तकनीकी सुविधाओं का सहारा लिया जाएगा। हकीकत यह है कि अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिनमें किसी जघन्य अपराध को अंजाम देने के बाद अपराधी फरार हो जाता है और उसे खोज निकालना पुलिस के सामने एक बड़ी चुनौती होती है।

अगर मेहनताने के सवाल पर किसी मजदूर को पीट-पीट कर मार डालने का आरोप सही पाया जाता है तो इससे यह भी पता चलता है कि आपराधिक मनमानी और अपराध के हालात पर पुलिस का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक होगा कि मजदूरी मांगने पर ऐसा अपराध करने की हिम्मत किसी में कहां से आती है!

कहने को गुरुग्राम में भी दिल्ली पुलिस की तर्ज पर अपराधों को कम करने के लिए विशेष दस्ते का गठन किया गया है। लेकिन वहां से आए दिन आपराधिक घटनाओं की जैसी खबरें आती रहती हैं, वे वहां की कानून-व्यवस्था की स्थिति को एक तरह से आईना दिखाती हैं।

आखिर क्या वजह है कि सिर्फ मजदूरी के सवाल पर देश के दूरदराज से रोजी-रोटी की आस में आए किसी मजदूर की पीट कर हत्या कर देने का मामला सामने आता है और कानून-व्यवस्था लाचार दिखती है। ज्यादा दिन नहीं हुए, जब गुरुग्राम के ही जल विहार इलाके में लाठी-डंडों से लैस नकाबपोश अपराधियों ने एक युवक की सरेआम पीट-पीट कर हत्या कर दी थी।

करीब साढ़े तीन साल पहले के आंकड़ों के मुताबिक गुरुग्राम हरियाणा में सबसे ज्यादा अपराध वाले शहरों में शुमार था। संभव है कि अपराधों पर काबू करने के लिए प्रयास किए जाते हों। लेकिन इस तरह के प्रयासों की सार्थकता इस बात पर निर्भर है कि हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने के बारे में सोचने वालों के भीतर कानून-व्यवस्था और पुलिस का खौफ हो।












Post a Comment

0 Comments