हर सुबह जब वह घर से निकलती तो फैसला कर के निकलती थी

 


दिसम्बर की कड़क ठंड अपने पूरे चरम पर थी। इस ठंड के समय जब आधे से अधिक संसार अपनी-अपनी रज़ाई तानें जीवन के स्वर्णिम स्वप्न का आनंद ले रहा होता हैं उस समय नीलम अपनी नरम बिस्तर के गर्माहट को छोड़ एक नई जंग के लिए जाग जाती हैं। आज का दिन उसके लिए इस पर या उस पार जाने के फैसले का दिन था। पिछले 2 महीने उसके लिए बहुत मुश्किल भरे थे जिसमे न जाने कितनी बार वह अपने दिल और दिमाग के लड़ाई मे खुद को हारा हुआ महसूस करती थी। हर सुबह जब वह घर से निकलती तो फैसला कर के निकलती थी कि आज वह रवि के साये से भी दूर रहेगी और अगर ऑफिस में किसी ने भी उनदोनों के बारे मे कुछ भी उल्टा-पुल्टा कहा तो वहीं सबके सामने उसे अपने चप्पलों का माप उसके गालों पर दिखा देगी परंतु जैसे ही वह बस स्टॉप पर रवि से मिलती तो न जाने किस मोहपाश मे बंध कर उसके करीब चली जाती और फिर बस स्टॉप से लेकर ऑफिस तक दोनों साथ-ही-साथ नजर आते। रवि के साथ उसकी बढ़ती नज़दीकियाँ ऑफिस में भी एक चर्चा का विषय बन गई थी। सामने तो किसी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती परंतु उनदोनों के पीठ पीछे न जाने कितनी तरह की बातें होते रहती थी।

साभार:- प्रतिलिपि

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