महात्मा गांधी ने देश की स्वतंत्रता से आगे बढ़कर यह सपना देखा था कि प्रत्येक भारतीय वैचारिक मतभेद के लिये स्वतंत्र हो और किसी के साथ कोई जबरदस्ती न की जाये : राज मोहन गांधी


 अलीगढ़ । प्रख्यात इतिहासकार और दार्शनिक तथा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पौत्र तथा इलिनोय यूनिवर्सिटी अमेरिका में रिसर्च प्रोफेसर राज मोहन गांधी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष के अंतर्गत सर सैयद अकादमी द्वारा आयोजित आनलाइन व्याख्यान देते हुए कहा कि  महात्मा गांधी ने देश की स्वतंत्रता से आगे बढ़कर यह सपना देखा था कि प्रत्येक भारतीय वैचारिक मतभेद के लिये स्वतंत्र हो और किसी के साथ कोई जबरदस्ती न की जाये।

प्रोफेसर राजमोहन गांधी ने यह आन लाइन व्याख्यान “क्या इतिहास का पहिया न्याय की ओर घूमता हैः कुछ प्रभाव“ विषय पर दिया। व्याख्यान की अध्यक्षता कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने की।
प्रोफेसर राजमोहन गांधी ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में राजनीतिक हिंसा और हत्याओं का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी के बलिदानों के साथ, हमें भारतीय नागरिकों के लिए सोचने, बोलने और अपनी आस्थाओं को बरकरार रखने की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए भी उनके बलिदान को याद रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगस्त 1942 में, गांधीजी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा पर बड़ी संख्या में लोगों ने उनकी आवाज में आवाज मिलाई, केवल उन 13 लोगों को छोड़कर जिन्होंने विधानसभा में उनके आंदोलन के प्रस्ताव का विरोध किया। मुंबई विधानसभा को संबोधित करते हुए, गांधीजी ने उनकी असहमति के अधिकार का सम्मान किया और कहा कि मैं उन तेरह लोगों को बधाई देता हूं जिन्होंने प्रस्ताव का विरोध किया है।


प्रोफेसर राजमोहन गांधी ने कहा कि मुंबई में फरवरी 1946 में जब उत्साही देशभक्तों ने लोगों से जय हिन्द का नारा बुलंद करने का आग्रह किया, तो गांधीजी को जैसे ही इसके बारे में पता चला तो उन्होंने किसी भी प्रकार की जबरदस्ती करने से मना किया। गांधीजी ने कहा कि किसी एक व्यक्ति पर भी अगर जय हिंद या किसी अन्य नारे का दबाव डाला गया तो वह स्वराज के ताबूत में एक कील साबित होगा।
अमेरिकी गृह युद्ध का उल्लेख करते हुए, प्रोफेसर गांधी ने कहा कि न्याय के लिए संघर्ष करने वाले एक महान सेनानी थियोडोर पार्कर ने 19 वीं शताब्दी में मेक्सिको के साथ अमेरिकी युद्ध का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने गुलामी के उन्मूलन का आह्वान किया और कहा कि वह सांसारिक मतभेद को समझने का दावा नहीं करते लेकिन उनकी अंतरात्मा यह कहती है कि इतिहास का पहिया वास्तव में न्याय की ओर घूमता है। प्रोफेसर गांधी के अनुसार, पार्कर अपने तरीके से कह रहे थे कि ईश्वर के घर देर है, अंधेर नहीं है। इसी टिप्पणी को लगभग एक शताब्दी पश्चात डा0 मार्टिन लूथरकिंग जूनियर ने दोहराया कि धीरे ही सही मानवीयता की सूई न्याय के पास आकर रहती है।
नाइजीरिया, लेबनान और अफगानिस्तान के उदाहरण पेश करते हुए, प्रोफेसर गांधी ने कहा कि इन देशों के लोगों ने बहुत उत्पीड़न सहन किया है और बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए हैं। राजनीतिक व्यवस्था हो या अर्थव्यवस्था, हर क्षेत्र में दुर्दशा, भ्रष्टाचार और समस्यायें हैं। लोग उस सुबह का उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं जब शांति शासन का शासन स्थापित होगा। उन्होंने कहा कि 2013 में फ्रीडम हाउस इंस्टीट्यूट द्वारा लेबनान को आंशिक रूप से स्वतंत्र देश घोषित किया गया था। पिछले साल अगस्त में बेरूत में हुए भीषण बम विस्फोट में कई लोगों की जान चली गई थी।
सरहदी गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान की चर्चा करते हुए प्रोफेसर राजमोहन गांधी ने कहा, “मैंने दस साल की उम्र में पहली बार सरहदी गांधी को देखा था जब वह दिल्ली में मेरे घर अपने भाई के साथ ठहरे थे। महात्मा गांधी के पुत्र और मेरे पिता देवदास गांधी 1930 से सरहदी गांधी को जानते थे। वह  लाहौर के पास गुजरात की जेल में सरहदी गांधी के साथ रहे थे।
प्रोफेसर राजमोहन गांधी ने कहा,  1987 में मुंबई के राजभवन में सरहदी गांधी से मेरी भेंट हुई थी। तब उन्होंने कहा था कि पवित्र कुरान में धैर्य का बार-बार निर्देश दिया गया है और धैर्य तथा अहिंसा के बीच आपस में गहरा संबंध है। उन्होंने कहा कि सरहदी गांधी का अधिकांश जीवन जेलों में बीता। वह भारत का विभाजन नहीं चाहते थे और अपने जीवन के अंत तक वे सभी मनुष्यों का सम्मान करते थे। उन्होंने हर मुश्किल घड़ी में कहा कि जो भगवान को पसंद है वह मुझे पसंद है। उनका मानना था कि एक दिन न्याय अवश्य मिलेगा। प्रोफेसर राजमोहन गांधी ने कहा कि गांधीजी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास रखते थे और उन्हें ऐसे गीत प्रिय थे जो इस बात की आशा जताते थे कि इतिहास एक दिन न्याय के साथ खड़ा होगा।
प्रोफेसर गांधी ने कहा कि पिछले एक या दो दशकों में दुनिया बहुत बदल गई है। पहले मनुष्य की स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर बहुत जोर दिया जाता था और समाज तथा देश के लिए यह अच्छे मूल्य थे और देश के संविधान में भी यह शामिल थे। हालाँकि, अब कुछ और बातों पर जोर दिया जा रहा है।
प्रोफेसर राज मोहन गांधी ने महात्मा गांधी की भारतीयता की विचारधारा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधीजी का मानना था कि भारतीय भारतीय हैं, इसलिए नहीं कि उनका एक धर्म या उनका रक्त एक है, बल्कि इसलिए कि वे एक-दूसरे से संबन्ध रखते है, वे एक ही पानी पीते हैं। वे एक ही हवा में सांस लेते हैं, वे एक ही धरती से पैदा होन वाला अनाज खाते हैं, और एक ही स्थान पर एक साथ रहते हैं।
हाल के अमेरिकी चुनावों का उल्लेख करते हुए, प्रोफेसर गांधी ने कहा कि अमेरिका को वहां के निर्वाचित राष्ट्रपति बांध कर नहीं रखते हैं। न ही सर्वोच्च न्यायालय और अमेरिकी कांग्रेस या राजनीतिक दल और वहाॅ का संविधान अमेरिका को जीवित रखते हैं बल्कि अमेरिकी नागरिक इस देश के लोकतंत्र को अच्छी तरह से रखते हैं और अपने नेताओं को नियंत्रित करते हैं। इस संबंध में, प्रोफेसर गांधी ने कई उदाहरण भी दिए।
आधुनिक समय में सर सैयद अहमद खान की प्रासंगिकता की चर्चा करते हुए प्रोफेसर राजमोहन गांधी ने कहा कि यह एएमयू का गौरव है कि यहाॅ दुनिया भर के छात्र अध्ययन के लिए आते हैं। सर सैयद का आज से लगभग 123 वर्ष पहले निधन हो गया था, लेकिन वह न केवल अलीगढ़ में, बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों में भी जीवित हैं, जहाँ जहाॅ भी अमुवि के छात्र रहते हैं।
एएमयू के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए कहा कि किसी भी सभ्यता में शांति, समृद्धि और विकास के लिए शिक्षा और न्याय आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ईश्वर भी यही कहता है कि हमें अपने मामलों में अच्छा और ईमानदार होना चाहिए। कुलपति ने कहा कि हम अपनी मातृ संस्था के जनक सर सैयद अहमद खान के आभारी हैं जिन्होंने आधुनिक विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने पर बल दिया तथा वैज्ञानिक शिक्षा की वकालत की। उन्होंने प्रोफेसर राजमोहन गांधी के उत्कृष्ट व्याख्यान के लिए बधाई दी। प्रोफेसर मंसूर ने आगे कहा कि यूरोपीय संघ एक अच्छा मॉडल साबित हुआ है जहां दो बड़े युद्धों के बाद आज शांति और खुशहाली देखी जा सकती है।
इससे पहले, सर सैयद अकादमी के निदेशक प्रो अली मुहम्मद नकवी ने अतिथि वक्ता का स्वागत किया और विषय के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि चाहे वह हिंदू धर्म हो या ईसाई धर्म या इस्लाम, सभी में न्याय की सर्वोच्चता की बात की गई है। उन्होंने कहा कि कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर के नेतृत्व में सर सैयद अकादमी को नया जीवन मिला है और शताब्दी समारोह के तहत, अकादमी ने सफलतापूर्वक अनेक महत्वपूर्ण हस्तियांे के व्याख्यानों का आयोजन किया है।
सर सैयद अकादमी के उप निदेशक डॉक्टर मुुहम्मद शाहिद ने अंत में आभार व्यक्त किया। डा0 सैयद हुसैन हैदर ने कार्यक्रम का संचालन किया। इस अवसर पर सहकुलपति प्रोफेसर जहीरुद्दीन और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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