पुलिस विभाग में एक कहावत है कि "पुलिस की मार के आगे, गूंगा भी बोलने लगता है", लेकिन यह कहावत कभी-कभी ठीक सिद्ध नहीं होती है।

    लेख:- अरविंद कुमार upcop के फ़ेसबुक पेज से लिया गया - आभार


उत्तर प्रदेश सरकार ने हाथरस कांड में सच्चाई सामने लाने के लिए नार्को टेस्ट की अनुमति दे दिया है। अब पुलिसवालों, आरोपियों और पीड़ित परिवार का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी हो रही है तो हमें यह जानना भी जरुरी है कि नार्को टेस्ट क्या है?


पुलिस विभाग में एक कहावत है कि "पुलिस की मार के आगे, गूंगा भी बोलने लगता है", लेकिन यह कहावत कभी-कभी ठीक सिद्ध नहीं होती है। ऐसी परिस्थिति में पुलिस अन्य तरीकों का सहारा लेती है। इसी एक तरीके में शामिल है नार्को टेस्ट. आइये इस लेख में जानते हैं कि नार्को टेस्ट क्या होता है और कैसे किया जाता है?


नार्को टेस्ट क्या होता है?

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इस टेस्ट को अपराधी या आरोपी व्यक्ति से सच उगलवाने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट को फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक आदि की मौजूदगी में किया जाता है। नार्को टेस्ट  (Narco Test) के अंतर्गत अपराधी को कुछ दवाइयां दी जाती है जिससे उसका सचेत दिमाग सुस्त अवस्था में चला जाता है और अर्थात व्यक्ति को लॉजिकल स्किल थोड़ी कम पड़ जाती है। कुछ अवस्थाओं में व्यक्ति अपराधी या आरोपी बेहोशी की अवस्था में भी पहुँच जाता है। जिसके कारण सच का पता नहीं चल पाता है।


नार्को टेस्ट करने से पहले व्यक्ति का परीक्षण :-

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किसी भी अपराधी/आरोपी का नार्को टेस्ट करने से पहले उसका शारीरिक परीक्षण किया जाता है जिसमें यह चेक किया जाता है कि क्या व्यक्ति की हालात इस टेस्ट के लायक है या नहीं। यदि व्यक्ति; बीमार, अधिक उम्र या शारीरिक और दिमागी रूप से कमजोर होता है तो इस टेस्ट का परीक्षण नहीं किया जाता है।


व्यक्ति की सेहत, उम्र और जेंडर के आधार पर उसको नार्को टेस्ट की दवाइयां दी जाती है। कई बार दवाई के अधिक डोज के कारण यह टेस्ट फ़ैल भी हो जाता है इसलिए इस टेस्ट को करने से पहले कई जरुरी सावधानियां बरतनी पड़तीं हैं। कई केस में इस टेस्ट के दौरान दवाई के अधिक डोज के कारण व्यक्ति कोमा में जा सकता है या फिर उसकी मौत भी हो सकती है इस वजह से इस टेस्ट को काफी सोच विचार करने के बाद किया जाता है।

नार्को टेस्ट कैसे किया जाता है?

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इस टेस्ट में अपराधी या किसी व्यक्ति को "ट्रुथ ड्रग" नाम की एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है या फिर " सोडियम पेंटोथल या सोडियम अमाइटल" का इंजेक्शन लगाया जाता है। इस दवा का असर होते ही व्यक्ति ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है। जहां व्यक्ति पूरी तरह से बेहोश भी नहीं होता और पूरी तरह से होश में भी नहीं रहता है। अर्थात व्यक्ति की तार्किक सामर्थ्य कमजोर कर दी जाती है जिसमें व्यक्ति बहुत ज्यादा और तेजी से नहीं बोल पाता है। इन दवाइयों के असर से कुछ समय के लिए व्यक्ति के सोचने समझने की छमता खत्म हो जाती है।

इस स्थिति में उस व्यक्ति से किसी केस से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। चूंकि इस टेस्ट को करने के लिये व्यक्ति के दिमाग की तार्किक रूप से या घुमा फिराकर सोचने की क्षमता ख़त्म हो जाती है इसलिए इस बात की संभावना बढ़ जाती कि इस अवस्था में व्यक्ति जो भी बोलेगा सच ही बोलेगा।

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