पूरी ज़िंदगी किसी से ना हारने वाला पहलवान ग़ुलाम मोहम्मद बख़्श उर्फ "गामा पहलवान" आज ही के दिन 23 मई को 1960 को ज़िंदगी से जंग हार गया।

                                      Photo :- फाइल चित्र

कहानी / गामा पहलवान पुश्तैनी पहलवान थे बहुत कम उम्र में बड़ी शोहरत हासिल कर लिया था। सिर्फ 15 साल की उम्र में जोधपुर की कुश्ती में 450 पहलवानों को हराते टॉप 10 में जगह बनाई थी गामा सबसे कम उम्र के थे इसिलए खिताब उन्हें दिया गया।

गामा पहलवान उस वक़्त सबसे ज़्यादा चर्चा में आये जब उन्होंने हिंदुस्तान के सबसे बड़े पहलवान रुस्तम ए हिन्द रहीम बख्श सुल्तानी को इलाहाबाद की कुश्ती में हराया और "रुस्तम ए हिन्द" का खिताब अपने नाम कर लिया। हालांकि रहीम बख़्श उस वक़्त उम्रदराज हो चुके थे।

गामा पहलवान का हिंदुस्तान के बाहर भी एक बड़ा नाम था। लन्दन की कुश्ती में गामा पहलवान फ़ाइनल में पहुचे फाइनल में उनका मुक़ाबला वर्ल्ड चैंपियन ज़िबिस्को से हुआ पहला मुक़ाबला टाई होने के बाद दूसरे मुक़ाबले में हार के डर से ज़िबिस्को मैदान में ही नही आए बिना लड़े गामा को 7 सितंबर 1910 को वर्ल्ड चैंपियन घोषित कर दिया गया।

बिना एक भी कुश्ती हारे गामा दुनिया सारे बड़े पहलवानों को हरा चुके थे। कई साल तक उनके बराबरी का कोई पहलवान नही मिला। गामा की उम्र 60 साल के क़रीब हो चुकी थी पहलवानी कम कर दी थी लेकिन 1940 हैदराबाद निज़ाम के बुलावे पर कुश्ती के लिए हैदराबाद गए। उस उम्र में भी गामा ने एक एक कर के निज़ाम के सारे पहलवानों को हरा दिया आखिर में निज़ाम ने अपना सबसे बेहतरीन युवा पहलवान हीरामन यादव को भेजा। हीरामन यादव का हैदराबाद में बड़ा नाम था वो भी अभी अजेय थे। दोनो की बीच मुक़ाबला काफी देर तक चला कोई नतीजा नही निकला मुक़ाबला बराबरी पर छूटा। गामा पहलवान की ये आखरी बड़ी कुश्ती थी।

गामा का जितना बड़ा जिस्म था उससे बड़ा दिल था। 1947 में बंटवारे के वक़्त गामा ने अपने मुहल्ले में एक भी दंगाइयों को घुसने नही दिया वहां सभी हिंदू भाइयों की हिफाज़त की और सही सलामत भारत भेजा उनके पास जो पैसा अनाज कपड़ा था जाते वक़्त दे दिया था / haji yaseen qureshi ki :- facebook se liya gaya

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