भारतीय मुस्लिमों की नागरिकता खतरे में है या नहीं, इससे लेना-देना नहीं है। शाहीन बाग सीएए के खिलाफ नहीं, बल्कि वो मुस्लिम घुसपैठियों को सीएए में नहीं शामिल करने की लड़ाई लड़ रहा है।

नई दिल्ली /  पिछले एक महीने से राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है। सीएए को मुस्लिम विरोधी बताने और सीएए को वापस लेने की मांग पर शाहीन बाग में जुटी भीड़ एक हाथ में तिरंगा और दूसरे हाथ में संविधान निर्माता डा. भीमराव अम्बेडकर की तस्वीर दिखाकर संविधान बचाने की दुहाई दे रहा है। दिल्ली के मुस्लिम बहुसंख्यक शाहीन बाग में पिछले एक महीने से चल रहे धरना-प्रदर्शन के कारण पूरी दिल्ली हलकान है, लेकिन सरकार हस्तक्षेप नहीं कर पा रही है।

दिलचस्प बात यह है कि शाहीन बाग धरना प्रदर्शन स्थल पर केवल चुनिंदा मीडिया संस्थानों को जाने की छूट है और बाकियों को धरना-स्थल पर जाने की मनाही है और बिना इजाजत घुसने वालों के साथ लोकतांत्रिक धरने के हिमायती अराजक होने में देर नहीं लगाते हैं। ऐसे कई उदाहरण देखे जा चुके हैं।
तुर्रा यह है कि वहीं लोग लोकतंत्र और संविधान खतरे की बात कह रहे हैं जो न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्मित कानून का विरोध कर रहे हैं बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की तिलांजलि देकर धरना-प्रदर्शन के नाम पर रास्ते पर बैठकर दिल्ली में नाकेबंदी कर रखी है, जिससे पिछले एक महीने से पूरी दिल्ली परेशान है और परिवहन ठप पड़ा हुआ है।
सवाल यह है कि मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी वाले शाहीन बाग में धरना दे रहे मुस्लिम प्रदर्शनकारी नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध आखिर क्यों कर रहे हैं। जवाब नहीं मिलेगा, क्योंकि उन्मादी भीड़ सवाल-जवाबों से दूर भागती है। भीड़ में मौजूद कोई भी शख्स नागरिकता संशोधन कानून को नहीं समझना चाहता है, क्योंकि उनका मकदस दूसरा है। उन्हें सीएए से भारतीय मुस्लिमों की नागरिकता खतरे में है या नहीं, इससे लेना-देना नहीं है। शाहीन बाग सीएए के खिलाफ नहीं, बल्कि वो मुस्लिम घुसपैठियों को सीएए में नहीं शामिल करने की लड़ाई लड़ रहा है।
गौरतलब है दिल्ली के शाहीन बाग शैली वाले धरने में जुटी और जुटाई गई भीड़ की विशेषता यह है कि वह वन वे बातचीत को अधिक पसंद करती हैं, जिसमें मीडिया को भी सवाल पूछने की आजादी नहीं दी जाती है। सवाल पूछा जाता है कि सीएए के खिलाफ धरना क्यों अथवा सीएए में उन्हें बिंदू से शिकायत है तो इधर-इधर घूमने के बाद संविधान खतरे हैं और उसके बाद नारे लगाते हुए गो बैक मीडिया के नारे उछाल देते हैं।
चिंता की बात यह है कि शाहीन बाग शैली वाले धरने पूरे देश में आयोजित किए जा रहे हैं और धरना स्थलों का चुनाव ऐसी जगहों पर किया जा रहा हैं, जो सीधा आम लोगों के संपर्क मार्ग से जुड़ा हो। यह बिहार, उत्तर प्रदेश, मुंबई और मध्य प्रदेश में हो रहे धऱना स्थलों से समझा जा सकता है। ताकि सड़कें जाम हों और मांगों पर जल्दी असर हो।
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सीएए पर सरकार को झुकाने पर अमादा है दिल्ली का शाहीन बाग

सीएए पर सरकार को झुकाने पर अमादा भीड़ का एक मात्र फंडा है कि किसी भी तरह से सीएए को वापस लेना होगा। भले ही उस कानून में भारतीय मुस्लिमों की नागरिकता पर कोई खतरा हो या न हो। सरकार या दूसरी किसी एजेंसी द्वारा सीएए पर स्पष्टीकरण के बाद भी उन्मादी भीड़ कुछ सुनने को तैयार नहीं है।

प्रताड़ित हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसियों के लिए हैं CAA

यह जवाब बार-बार मीडिया और सरकार द्वारा दोहराया जा चुका है कि सीएए का किसी भी भारतीय नागरिक से लेना-देना नहीं है, यह उन प्रताड़ित हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसियों के लिए हैं, जो सीएए में चिन्हित तीन इस्लामिक देश क्रमशः पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में भागकर और हिंदुस्तान में आकर एक शरणार्थी का जीवन बिता रहे हैं।

CAA पर भ्रांतियों को खत्म करने के लिए खुद सड़क पर उतरे गृह मंत्री

केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने सीएए के खिलाफ फैलाई गईं भ्रांतियों को खत्म करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर लोगों से मिले और कानून की प्रतियां भी बांटी। यही नहीं, गत 5 जनवरी से पूरे देश में बीजेपी सांसदों और विधायकों को अपने-अपने इलाकों के लोगों को सीएए से संबंधित सवालों का जवाब देने के लिए लगा दिया। पूरी मशीनरी लोगों को सीएए के बारे में समझा-समझा कर थक चुकी है, लेकिन तेजी से पूरे भारत में फैल रहे शाहीन बाग टाइप धरने में जुट रही कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। उनकी मांग है कि सीएए में मुस्लिम को भी शामिल किया जाए वरना कानून वापस लिया जाए।

अवैध रूप से देश में रह रहे घुसपैठियों की वकालत में जुटा शाहीन बाग

कुछ बुद्धिजीवी टाइप के लोग सीएए को आइडिया ऑफ इंडिया के खिलाफ बता रहे हैं। उनका मानना है कि सीएए कानून से हिंदुस्तान के संविधान का अपमान हुआ है। उनके तर्क अजीबोगरीब हैं। आइडिया ऑफ इंडिया की बात करने वाले बुद्धिजीवी अपनी बात भी खुलकर नहीं कह रहे हैं, क्योंकि शाहीन में जुटी भीड़ उन घुसपैठियों की वकालत कर रही है, जो पूरे देश में अवैध रूप से रह रहे हैं। शाहीन बाग को आयोजक बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए उन मुस्लिम घुसपैठियों की भारत में नागरिकता की वकालत कर रहे हैं, जो हिंदुस्तान में आए और यही रह गए हैं। इसलिए वह चाहते हैं कि सीएए में मुस्लिम को भी शामिल किए जाए, भले ही अपने देश में प्रताड़ित हों अथवा नहीं।

आइडिया ऑफ इंडिया और सेक्युलरिज्म की दुहाई दे रहे हैं प्रदर्शनकारी

आइडिया ऑफ इंडिया और सेक्युलरिज्म की दुहाई देने वाले ऐसे बुद्धिजीवियों के मुताबिक सीएए में आइडिया ऑफ इंडिया के साथ खिलवाड़ किया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान आइडिया और इंडिया के खिलाफ जाकर धार्मिक आधार पर हिंदुस्तान और पाकिस्तान बनाया गया था। एक बार फिर उसी आइडिया ऑफ इंडिया के दुहाई देकर अवैध पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुस्लिमों को देश में बसाने की वकालत की जा रही है। सरकारी आकंड़ों के मुताबिक हिंदुस्तान में इस समय 4 करोड़ से अधिक अवैध घुसपैठिए मौजूद हैं और शाहीन बाग का धरना उन्हीं लोगों को बचाने की कवायद के तहत किया जा रहा है।

तो पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों का जन्म ही नहीं हुआ होता

अगर आइडिया ऑफ इंडिया की वकालत वर्ष भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान भी की जाती तो पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों का जन्म ही नहीं हुआ होता और न ही भारत सरकार को इस्लामिक राष्ट्र में तब्दील हो चुके ऐसे देशों में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी को नागरिकता देने के लिए सीएए का प्रावधान करना पड़ता। आइडिया ऑफ इंडिया में हर समुदाय और वर्ग के लोग पहले भी शामिल थे और सभी ने मिलकर ब्रिट्रिश हुकूमत के खिलाफ लड़कर भारत की आजादी हासिल की, लेकिन जब आजादी का दिन तय हुआ तो कुछ चुनिंदा भारतीय मुस्लिमों ने आइडिया ऑफ इंडिया छोड़कर पाकिस्तान का राग का अलाप दिया और आज शाहीन बाग में फिर वही राग अलापा जा रहा है।

घुसपैठियों को नागरिकता दिलाने की कोशिश कर रहा है शाहीन बाग

शाहीन बाग में सीएए के विरोध में धरना-प्रदर्शन नहीं हो रहा है बल्कि शाहीन बाग शैली वाले धऱनों के जरिए मुस्लिमों का हुजूम भारत में मौजूद उन मुस्लिम घुसपैठियों को नागरिकता दिलाने की जबरन कोशिश में लगा है, जो देश में छिपकर बैठे हुए हैं। अगर भारत सरकार उनकी मांगों के आगे झुक गई तो उन्हें लगता है कि हिंदुस्तान में अवैध रूप से रह रहे मुस्लिम घुसपैठियों को नागरिकता मिल जाएगी, लेकिन वह भूल गए हैं कि सीएए में धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का कानून है और मुस्लिम चाहे बांग्लादेशी से हों या पाकिस्तान या अफगानिस्तान से आए हों, उन्हें सीएए के तहत नागरिकता मिलना नामुमकिन है।

इस्लामिक राष्ट्र में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार नहीं हो सकते हैं मुस्लिम

ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश तीनों इस्लामिक राष्ट्र है और मुस्लिम घुसपैठिए किसी भी मानदंड से इस्लामिक राष्ट्र में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार नहीं हो सकते हैं। शाहीन बाग में धऱने के जरिए सीएए में मुस्लिम घुसपैठियों को शामिल करने की मांग ठीक उसी तरह से की जा रही है, जैसे सीएए के खिलाफ विभिन्न राज्यों द्वारा प्रस्ताव पास किया गया है, जो कि गैर-संवैधानिक है। यह एक तरह का भेड़चाल रहा है। पहले केरल ने प्रस्ताव पास किया, फिर पंजाब ने भी पास करवा दिया। उसके बाद राजस्थान भी सीएए के खिलाफ प्रस्ताव ले आई और अब पश्चिम बंगाल की ममत बनर्जी सरकार भी प्रस्ताव ले आई हैं, जहां की लगभग 100 विधानसभा सीटों पर घुसपैठियो का प्रभुत्व हैं। न्यूज सोर्स :- one india.com

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