लखनऊ / आइएएस तथा आइपीएस अफसर के बाद अब उत्तर प्रदेश में निचले स्तर पर भ्रष्टाचार से निपटने की मुहिम छेड़ी गई है। पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए डीजीपी ओपी सिंह ने एक और अहम कदम उठाया है।
डीजीपी ने शासन को पत्र लिखकर इंस्पेक्टर से सिपाही तक के अराजपत्रित पुलिस अधिकारियों व कर्मियों के लिए प्रति वर्ष अपनी चल-अचल संपत्ति का ब्योरा अनिवार्य रूप से देने का नियम लागू करने की सिफारिश की है। इसके साथ ही पीपीएस संवर्ग के अधिकारियों के लिए पांच सालों के बजाए अब हर साल चल-अचल संपत्ति का ब्योरा देने की अनिवार्यता लागू करने की बात कही है।
अब तक अराजपत्रित पुलिस अधिकारियों व कर्मियों को अपनी संपत्ति का कोई ब्योरा नहीं देना होता था। माना जा रहा है कि डीजीपी के पत्र पर शासन इस व्यवस्था को लागू करने का निर्णय जल्द ले सकता है।
लखनऊ नगर व गौतमबुद्धनगर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद इस वर्ष पुलिस महकमे के लिए यह दूसरी बड़ी खबर है। उल्लेखनीय है कि बीते दिनों गौतमबुद्धनगर के तत्कालीन एसएसपी वैभव कृष्ण ने गोपनीय पत्र लिखकर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले को उठाया था। पांच आइपीएस अधिकारी भी आरोपों से घिरे हैं। थानों पर भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले भी उजागर हो चुके हैं। ऐसे में पुलिस अधिकारियों व कर्मियों के लिए हर साल अपनी चल-अचल संपत्ति का पूरा ब्योरा उजागर करने की सिफारिश बेहद अहम मानी जा रही है। डीजीपी ने मंगलवार को शासन को भेजे गए अपने पत्र में कहा है कि उप्र पुलिस में संपूर्ण सुचिता व पादर्शिता लाने के लिए चल-अचल संपत्ति का विवरण नियमित रूप से दिए जाने के लिए नियमावली को और मजबूत बनाने की जरूरत है। आइपीएस अधिकारियों के लिए चल-अचल संपत्ति का विवरण प्रत्येक वर्ष 15 जनवरी तक दिया जाना अनिवार्य है। उप्र पुलिस में पीपीएस संवर्ग व अराजपत्रित कर्मचारियों के लिए नियमावली के अनुसार ऐसा विवरण पांच साल की अवधि में दिया जाना है। डीजीपी ने इसे प्रति वर्ष अनिवार्य किए जाने के साथ ही अराजपत्रित पुलिस अधिकारियों व कर्मियों से भी सालाना चल-अचल संपत्ति का ब्योरा लिए जाने की सिफारिश की है l कॉपी : - tp.Jagran.com
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