गाँधी केवल राजनेता ही नहीं हैं बल्कि वे राजनीती में धार्मिकता को नैतिक मूल्यों को स्थापित करना चाहते थे, क्योकि वे सत्य की स्थापना करना चाहते हैं और उसका एकमात्र साधन अहिंसा है।

अलीगढ़ /  गांधी का व्यक्तित्व बहुत व्यापक था! उनके विश्वव्यापी व्यक्तित्व का प्रभाव मार्टिन लूथर किंग से लेकर नेल्शन मंडेला तक पर पड़ा!’ यह बात महात्मा गांधी के 150 वें जयंती वर्ष में अमुवि के हिंदी विभाग द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में कुलपति प्रो. तारिक मंसूर ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कही! अमुवि के हिंदी विभाग द्वारा हिंदी भाषा  पर महात्मा गाँधी का प्रभाव विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम मुख्यतः चार सत्रों में विभाजित था। प्रो. शम्भुनाथ तिवारी ने सत्र के संचालन का दायित्व उठाते हुए ,इस सत्र की रूपरेखा से सबको अवगत कराया। हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो. अब्दुल अलीम ने कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न विद्वानों सहित सभागार में उपस्थित शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों का स्वागत किया।उद्घाटन भाषण के लिए नई दिल्ली के गाँधी भवन के निदेशक प्रो. रमेश भारद्वाज को आमंत्रित किया गया था। वे गांधीवादी विचारों से प्रभावित रहे हैं और उन्होंने मौजूदा दौर में गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता से सभी को रूबरू कराया। उन्होंने मौजूदा साम्प्रदायिकता को ध्यान में रखते हुए कहा  इस सत्र के बीज वक्तव्य के लिए भारतीय भाषा केंद्र (जेएनयू) के पूर्व अध्यक्ष और हिंदी भाषा एवं साहित्य के विद्वान प्रो गंगाप्रसाद विमल उपस्थित हुए।
उन्होंने गांधीजी को मानवतावाद का समर्थक बताते हुए कहा गाँधी ने हमें हमारा भारत फिर से लौटाया, और वो भारत बहुत विलक्षण चीज है। उस भारत का बुनियादी आधार साफ है कि यहाँ विभिन्न धर्म,जाति के लोग आये और यहाँ की संस्कृति में समाहित हो गए।  उन्होंने कहा कि गाँधी के हिंदी या हिंदुस्तानी भाषा का समर्थन करने की मुख्य वजह वर्ण लिपि थी। हिंदी की वर्ण लिपि भारत में बोली जाने वाली अनेक बोलियों भाषाओँ की लिपि है।इस सत्र के संचालक प्रो शम्भुनाथ ने भी बताया कि गांधीजी का योगदान इतिहास में अद्वितीय है, यही वजह है कि गांधी के विचारों का अनुसरण अमेरिका के मार्टिन लूथर से लेकर अफ्रीका के नेल्सन मंडेला तक ने किया। इसके पश्चात् सत्र के अध्यक्ष प्रो तारिक मंसूर ने अध्यक्ष भाषण देते हुए , गाँधी और भारतीय भाषाओ के महत्व को रेखांकित किया।
हिंदी विभाग की प्रो रेशमा बेगम ने धन्यवाद ज्ञापन किया।इसके बाद कार्यक्रम का पहला सत्र आरम्भ हुआ। इस सत्र में विशिष्ट व्याख्यान हेतु भारतीय भाषा केंद्र (जेएनयू) के पूर्व प्रोफेसर और हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल को आमंत्रित किया गया था। इस सत्र का विषय गांधी दर्शन की प्रासंगिकता और हिंदी साहित्य था।  इस सत्र की अध्यक्षता प्रो गंगाप्रसाद विमल द्वारा और संचालन हिंदी विभाग के प्रो कमलानंद झा ने किया। इस सत्र के मुख्य वक्ता प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल ने बताया कि हिंदुस्तान के ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहरी क्षेत्र और अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे दलित समुदाय से लेकर स्त्री समुदाय,आदिवासी समुदाय तक साहित्य की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने लोक में प्रचलित कहावत मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी से व्याख्यान की शुरुआत की और कहा कि जो मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी को मानते हैं, वे असल में अचेत हैं। उन्होंने कहा मजबूरी नहीं बल्कि मजबूती का नाम महात्मा गाँधी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने गाँधी और हिंदी साहित्य के सम्बन्ध में कई रोचक बातों से लोगों का परिचय कराया और कहा की गांधीजी से यदि आप कुछ सीख सकते हैं तो वो यह की नीरवता की आवाज कैसे बना जाय। उनके व्याख्यान के पश्चात् इस सत्र के अध्यक्ष प्रो गंगाप्रसाद विमल ने अध्यक्ष भाषण दिया। हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो अब्दुल अलीम ने धन्यवाद ज्ञापन किया और इस सत्र के समापन की घोषणा की।

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