सीसा शरीर के प्रत्येक भाग को प्रभावित करता है लेकिन इसका सर्वाधिक प्रभाव किडनी और मस्तिस्क पर पड़ता:प्रो. तारिक मंसूर

अलीगढ़ / अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलिज के बायोकैमिस्ट्री विभाग द्वारा इंडियन एकाडमी ऑफ बायोमेडिकल साइंसेज (आई.एबी.एस.) तथा इंडियन सोसाइटी फॉर लेड अवेयरनेस एण्ड रिसर्च के सहयोग से जैव चिकित्सा, यूनानी तथा आयुर्वेद में वर्तमान में हुए विकास तथा सीसा आधारित उत्पादों के बड़े पैमाने पर उपयोग का नकारात्मक पक्ष विषय पर राष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसका उद्घाटन मुख्य अतिथि कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर द्वारा किया गया।उद्घाटन भाषण देते हुए कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि  है। उन्होंने कहा कि बढ़ते प्रदूषण के कारण जैविक समस्यायों में भी बढ़ोतरी हुई है और इससे कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ भी बढ़ी है। कुलपति ने कहा कि ऐसे में चिकित्सकों का दायित्व है कि वह लोगों में जागरूकता पैदा करें।कुलपति ने परम्परागत चिकित्सा पद्वति का उल्लेख करते हुए कहा कि यूनानी, आयुर्वेद तथा ऐलोपैथिक को मिलकर साथ कार्य करना चाहिए ताकि लोगों का दुष्प्रभाव सहित दवायें उपलब्ध हो सकें। उन्होंने कहा कि परम्परागत दवाओं का प्रचलन बढ़ रहा है और अनेक रोगों में यह दवायें कारगर साबित भी हो रही है। उन्होंने विभाग के कार्यो एवं प्रगति की भी प्रशंसा की।नेशनल रिफ्रेल सेंटर फॉर लेड प्रोजेक्टस इन इंडिया बंग्लुरू के प्रमुख वैज्ञानिक एवं लेड मैन ऑफ इंडिया प्रोफेसर थुप्पिल वेंकटेश ने कहा कि लेड सबसे अधिक बच्चों पर असर अंदाज हो रहा है जिसके कारण उनमें किडनी व मास्तिष्क के रोग सामने आ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि 19वीं सदी में लेड का दुष्प्रभाव सामने आने के बाद से इसकी रोकथाम पर निरन्तर रूप से कार्य चल रहा है। प्रो0 वेकेंटेश ने कहा  कि 22वीं सदी तक वैज्ञानिक बीमारी रहित समाज पर कार्य में क्या सफल हो सकेंगें।उन्होंने कहा कि परम्परागत चिकित्सा पद्वति में लगभग दौ सौ दवायें ऐसी है जिसकी मदद से लेड के दुष्प्रभाव का उपचार संभव है। ऐसे में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों की साथ मिलकर कार्य करना होगा।इरा यूनिवर्सिटी लखनऊ के कुलपति प्रोफेसर अब्बास अली महदी ने कहा कि लेड तथा अन्य विषैले पद्धार्थो के द्वष्प्रभाव के बारे में लोगों को जागरूक किये जाने की आवश्यकता है उन्होंने लेड से तालाब व नदियां प्रदूषित हो रही है
और उनका जल प्रयोग में लाने वाले पशु भी इससे प्रभावित हो रहे है। उन्होंने कहा कि लेड के शरीर में प्रवेश से हृदय रोग, उच्चरक्तचाप और मस्तिष्क की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने विभिन्न उत्पादों को लेड की मात्रा की जांच के बाद ही बाज़ार  में भेजे जाने की मांग की।कार्यशाला के आयोजन सचिव प्रोफेसर खुरशाद आलम ने उपस्थित जनों का स्वागत करते हुए कहा कि आधुनिक चिकित्सा पद्वति यूनानी और आयुर्वेद के साथ मिलकर ऐसा उपचार खोजेगी जिससे जनता को सुलभ   चिकित्सा सुलभ उपलब्ध हो सकेगी।बायोकैमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मुईनउद्दीन ने विभाग की उपलब्धियों को गिनाते हुए कहा कि 1962 में स्थापित इस विभाग मं छात्रों को 133 पी.एच.डी. तथा 48 एम.डी. की डिग्री हासिल हो चुकी है तथा विभाग में पचास परियोजनायें पूर्ण हो चुकी है।मेडिसन संकाय के डीन एवं कालिज के प्रिंसिपल प्रोफेसर एससी शर्मा ने कहा कि आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा पद्वति में अनेक गंभीर रोगों का इलाज संभव है। उन्होंने कहा कि तीनों चिकित्सा जगत में अनेक गंभीर रोगों का सफल इलाज खोजने में सफल होगी। बायोकैमिस्ट्री विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर नजमुल इस्लाम ने कहा कि जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए चिकित्सा विज्ञान में शोध कार्य आवश्यक्ता है। उपस्थित जनो का आभार कांफ्रेंस के संयुक्त आयोजन सचिव डा0 अबुल फैज फैज़ी ने जताया। कार्यक्रम का संचालन डा0 नफीस फैजी ने किया। कार्य में विभाग के वरिष्ठध्यक्ष सेवानिवृत शिक्षक प्रोफेसर राशिद अली को लाइफ टाइम एवार्ड से भी सम्मानित किया गया। कांफ्रेंस में दो सौ से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे है।  

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