पश्चिम एशिया एवं उत्तर अफ्रीका की बदलती हुई भौगोलिक एवं राजनीति संरचना :भारत के लिए विचार का बिंदु "विषय पर सेमिनार

अलीगढ़ 5 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पश्चिम एशियाई एवं उत्तर अफ्रीकी अध्ययन विभाग के तत्वाधान में “पश्चिम एशिया एवं उत्तर अफ्रीका की बदलती हुई भौगोलिक एवं राजनीतिक संरचनाः भारत के लिए विचार का बिन्दु“ विषय पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसके उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए अमुवि कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि पश्चिम एशिया तथा उत्तरी अफरीका क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों के कारण विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। तथा इस क्षेत्र का महत्व इस लिए भी है कि यहीं से इस्लाम, ईसाइयत तथा यहूदी धर्मो का जन्म हुआ है।प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक कारणों से पश्चिम एशिया में विश्व की विभिन्न शक्तियों की दिलचस्पी बनी रहती है तथा अमरीका, रूस, तुर्की सहित अधिकतर देश किसी न किसी रूप में इस क्षेत्र की राजनीति से जुड़े रहते हैं। उन्होंने कहा कि ईरान, सऊदी अरब, इजराइल सहित विभिन्न पश्चिमी एशियाई देश आंतरिक सुरक्षा तथा आर्थिक गतिविधियों के चलते अमरीका द्वारा बनाई गई नीतियों से प्रभावित होते हैं। जब कि रूस और तुर्की भी अपने हितों के अनुसार इस क्षेत्र की राजनीति को प्रभावित करते हैं।मुख्य भाषण प्रस्तुत करते हुए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आनंद कुमार ने कहा कि पश्चिम एशिया तथा उत्तरी अफ्रीकी क्षेत्र का भारत के साथ गहरा सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंध है तथा इस क्षेत्र के भौगोलिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक अध्ययन एवं शोध में रूचि लेने वालो को चाहिये कि वह भारत एवं पश्चिमी एशिया के आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को विशेषकर अपने अध्ययन का विषय बनाये तथा दोनों क्षेत्रों के बीच व्यापार एवं रोजगार की संभावनाओं की नई जमीन ढ़ूॅढ़ने का प्रयास करें।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर जितेन्द्र नाथ मिश्रा ने कहा कि इस क्षेत्र में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिकों का इस क्षेत्र की राजनीति में भी प्रभाव पड़ता है। तथा भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण भाग उनसे जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि भारतीय मूल के नागरिक दोनों देशों के सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मान्द अतिथि फिलस्तीन दूतावास में डिप्टी चीफ डा0 वायल अल बतरखी ने कहा कि भारत एवं फिलस्तीन के संबंधों का इतिहास भारत के स्वाधीनता संग्राम से जुड़ा हुआ है जब ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध भारत ने अपनी लड़ाई में फिलस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में न केवल मान्यता प्रदान की बल्कि फिलस्तीन की स्वायत्ता की सुरक्षा में सदा अपना योगदान दिया।विभाग के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के समन्वयक प्रोफेसर गुलाम मुरसलीन ने अतिथियों का स्वागत किया जब कि सह-समन्वयक प्रोफेसर जावेद इकबाल ने सेमिनार के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर एस0 शमीर हसन ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सेमिनार में मध्य पूर्व के देशों सहित तुर्की, मलेशिया तथा थाइलैंड के विद्वान भी भाग ले रहे हैं।

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