उर्दू ज़बान गंगा जमनी तहज़ीब की ज़बान, किसी विशेष धर्म या वर्ग की ज़बान नहीं :हिलाल फिरोज

अलीगढ़ /उत्तर प्रदेश उर्दू टीचर्स वैलफेयर एसोसिएशन के तहत आज राजकीय औद्योगिक एवं कृषि प्रदर्शनी अलीगढ़ में मुक्ताकाश मंच पर उर्दू शिक्षक सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता आर.ए.एफ. कमांडेंट हिलाल फिरोज ने की। कार्यक्रम के कन्वीनर कुंवर नसीम शाहिद और संचालक मुशर्रफ हुसैन महज़र रहे।मुख्य अतिथि ख्वाजा शाहिद (पूर्व प्रो-वाइस चांसलर, उर्दू विश्वविद्यालय हैदराबाद) ने कहा कि उर्दू ज़बान गंगा जमनी तहज़बी की ज़बान है और यह किसी विशेष धर्म या वर्ग की ज़बान नहीं है। इसलिए हम सभी को उर्दू के विकास में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने कुंवर नसीम शाहिद की सराहना की और कहा कि इस लगन और मेहनत के साथ, अगर हम सभी उर्दू वाले काम करें तो यह निश्चित रूप से उर्दू एक अंतरराष्ट्रीय भाषा बन जाएगी। उन्होंने कहा कि आज उर्दू को कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, सेमिनारों और जिलों से निकालकर अवाम के अन्दर लाना चाहिए।कमांडेंट हिलाल फिरोज ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि उर्दू वाले ही उर्दू को नुकसान पहुंचा रहे है, उन्होंने मदरसे वालों को बधाई देते हुए कहा कि अगर उर्दू जीवित है तो मदरसे, मुशायरे, और फिल्मों से ज़िन्दा है। यह ज़िन्दा लोगों की ज़बान है, इसलिए उर्दू वालों को अपनी जिम्मेदारी महसूस करनी चाहिए, और उर्दू के समाचार पत्रों को खरीदना चाहिए।कार्यक्रम के संयोजक कुंवर नसीम शाहिद ने कहा कि उर्दू एक ज़बान नहीं बल्कि एक तहज़ीब है और हिंदू मुस्लिम एकता का संगम है। जो हमारे भाई-बहनों में प्रेम और प्रेम का स्रोत है। उर्दू कविता और गीतों के माध्यम से प्रेम का संदेश देती है। उर्दू ने देश की स्वतंत्रता में एक प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि आज उर्दू अध्यापकों को कई समस्याएं हैं, जो एसोसिएशन द्वारा हल की जाती हैं। उन्होंने कहा कि संगठन एक ताकत है और एकता सबसे बड़ी चीज है। इसलिए सभी को एकता और सहमति के साथ मिलकर काम करना चाहिए।उर्दू शिक्षकों के मुद्दों पर आधारित एक ज्ञापन, कलीम त्यागी ने पढ़ कर सुनाया जो मुख्यमंत्री को भेजा जाएगा।

इस ज्ञापन में बीस हजार उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति की मांग, उर्दू की किताबों को सरल और आसान भाषा में छापने की मांग की गई। मुशर्रफ हुसैन महज़र ने अलीगढ़ नुमाइश पर बेहतरी कविता पेश की। ख्वाजा मोहम्मद शाहिद, हिलाल फिरोज, डॉ0 ईलियास नवेद गुन्नौरी, जॉनी फॉस्टर, डॉ फुरक़ान संभली, कलीम त्यागी, मुशर्रफ हुसैन महज़र, उर्दू पत्रकार कामरान अहमद, हिंदी पत्रकार मोहम्मद वसीम, डॉ0 मसूद (पूर्व शिक्षा मंत्री) को अल्लामा इकबाल एवॉर्ड और एक शॉल देकर सम्मानित किया गया। माहीन अंसारी, आर्दश अध्यापाक भुवनेन्द्र सिंह, शीला सैनी, दरख़्शां क़मर, मैमूना अंसारी, नाहिद असद (उपाध्यक्ष), हुमा ज़हीर, फ़ैज़-उल-रहमान प्रिंसिपल फैज़-उल-उलूम स्कूल, और अन्य छात्र एवं छात्राओं को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के प्रतिभागियों में अब्दुल कादिर, नकीउज्जफर, मोहम्मद कासिम, हाजी मोहम्मद अफज़ाल, साबिर अली, हमीद हसन, चौधरी शाने आलम, फुरक़ान मिर्जा, ताहिरा परवीन, संजय कुमार, सबिया कमाल, शमीम अनवर, मौलाना सलाहुद्दीन, तौफीक अहमद, ताहिर परवीन आदि शामिल रहें ।कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए शम्स-ए-आज़म एडवोकेट, अतीक़ा, अफीफा, ज़ैबा नसीम की मुख्य भूमिका रही। कार्यक्रम की शुरुआत तिलावते कुरान और समापन राष्ट्रीय गान से हुआ।

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