भारतीय संविधान में केवल 22 राष्ट्रीय एवं क्षेतीय भाषाओं को सरकारी भाषाओं का दर्जा दिया :प्रो. अब्बी

अलीगढ़ 10 फरवरीः अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के भाषा विज्ञान विभाग में विलुप्त होती हुई भाषाओं की विद्वान तथा इन भाषाओं के अस्तित्व के संरक्षण के लिए कार्यरत भाष विज्ञान क्षेत्र की प्रख्यात विभूति पद्मश्री प्रोफेसर अनविता अब्बी को समाज विज्ञान संकाय के सभागार में आयोजित एक समारोह में अमुवि कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर के हाथों लाइफ टाइम एचीवमेंट एवार्ड से सम्मानित किया गया। प्रोफेसर अब्बी ने इस अवसर पर “भारतीय भाषाई विविधता हमसे क्या कहती है“ विषय पर व्याख्यान भी दिया।प्रोफेसर अब्बी ने कहा कि भारत की भाषाई विविधता देश को एक विशिष्ठ चरित्र प्रदान करती है और इस तथ्य के बावजूद कि भारतीय संविधान में केवल 22 राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं को सरकारी भाषाओं का दर्जा दिया गया है। सच यह है कि भाषाई विविधता देश के सामाजिक ताने-बाने की प्रमुख पहचान है तथा यहॉ के आम नागरिक साधारणतः कई भाषायें जानते हैं। उन्होंने कहा कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि देश में 1368 मातृ भाषायें प्रचलित हैं। इसके बावजूद लोग दूसरी भाषाओं के प्रति भी आदर रखते हैं, तथा उन्हें प्रयोग में लाते हैं।प्रोफेसर अब्बी ने कहा कि अधिकतर भारतीय भाषाओं का जन्म हिंद आर्यायी, द्रविड़, चीनी-तिब्बती तथा अफ्रीकी एशियाई, भाषाई परिवारों से हुआ है। हॉलांकि अंडमान द्वीपों में बोली जाने वाली भाषा की उत्पत्ति स्वतः ही हुई है।इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में अमुवि कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि भाषायें संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तथा हर स्तर पर इनका संरक्षण किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि हम लोग एक मिश्रित संस्कृति में पैदा हुए हैं तथा इसी तथ्य के अनुरूप आज विश्व एक वैश्विक गांव बन चुका है, ऐसे में आवश्यक है कि सभी प्रकार की संस्कृतियों तथा उनका प्रतिनिधित्व करने वाली भाषाओं के संरक्षण के उपाय किये जायें। उन्होंने इस अवसर पर प्रोफेसर अनविता अब्बी से अमुवि के भाषा विज्ञान विभाग में एडजंट फैकल्टी के रूप में सेवायें प्रदान करने की अपील की।भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एस0 इम्तियाज हसनैन ने अतिथि वक्ता का परिचय कराते हुए व्याख्यान के विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर अब्बी ने अंडमानी भाषा पर गहरा शोध कार्य किया है तथा उनके प्रयत्नों से अंडमानी भाषाओं जरावा तथा ओंगे को नए भारतीय भाषाई परिवार के रूप में पहचान मिली है।श्री मसूद ए0 बेग ने प्रोफेसर अब्बी को अभिनन्दन पत्र प्रस्तुत किया। डा0 मोहम्मद जहॉगीर वारसी ने धन्यवाद ज्ञापित किया जब कि सुश्री इकरा ने कार्यक्रम का संचालन किया।

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