तेजी से बढ़ रहे साइबर फर्जीवाड़े रोके जाएं

 


अगर आप खुशकिस्मत हैं कि आपके साथ कभी कोई साइबर फ्राड नहीं हुआ, तो सरकार को ऐसे लोगों की मिसाल देश के सामने रखनी चाहिए। आपके किसी साइबर फ्राड से बच जाने की अकेली वजह यह नहीं है कि आप क्रेडिट-डेबिट या एटीएम कार्ड, मोबाइल बैंकिंग और डिजिटल लेनदेन का कोई भी काम करते समय बेहद सतर्क रहते हैं, बल्कि इसका एक कारण आपका डिजिटल प्रबंधों को लेकर संकोच और कुछ मायनों में डिजिटल अज्ञान भी हो सकता है। वरना हालत यह है कि इंटरनेट की मामूली जानकारी रखने वालों के आगे बेहद पढ़े-लिखे लोगों और एक दावे के मुताबिक कंक्रीट की मोटी दीवारों के पीछे डाटा और रुपये-पैसे को संभालने वाले सरकारी तंत्र के प्रबंध तक निहायत कमजोर और निरुपाय साबित हो रहे हैं।


सरकार इसे लेकर संजीदा है कि तेजी से बढ़ रहे साइबर फर्जीवाड़े रोके जाएं। एक ताजा पहल मोबाइल ट्रैकिंग सिस्टम बनाना है। हाल में लांच किए गए केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर यानी सेंट्रल इक्विपमेंट आइडेंटी रजिस्टर- सीईआइआर के जरिए यह व्यवस्था बनाई जा रही है कि देश में अगर कोई शख्स चोरी अथवा खो चुके अपने मोबाइल फोन को ट्रैक करना और उसे ब्लाक करना चाहे तो ऐसा कर सकता है।


अभी तक ऐसी सुविधा एप्पल के आईफोन धारकों को उसकी निर्माता कंपनी एप्पल आईडी के नाम से प्रदान करती रही है, लेकिन अब सी डाट यानी सेंटर फार डिपार्टमेंट आफ टेलीमैटिक्स की ओर विकसित की गई सीईआइआर से हर कोई अपने सामान्य एंड्रायड फोन में भी ऐसा कर सकेगा। यह प्रबंध साइबर फर्जीवाड़ों की जड़ पर प्रहार कर सकता है, बशर्ते आम लोग इसके बारे में जागरूक हों और इसे इस्तेमाल करना सीख जाएं। आम तौर पर ज्यादातर साइबर या डिजिटल धांधलियों का केंद्र वह स्मार्टफोन ही होता है, जिसमें व्यक्ति की पहचान और डिजिटल लेनदेन के इंतजाम विभिन्न ऐप के जरिए किए गए हैं।


साइबर फर्जीवाड़ों के तार सिर्फ आईटी या कहें सिर्फ इंटरनेट से ही नहीं जुड़े हैं। बर्तन-कपड़े से लेकर मोबाइल के बदले में बराबर वजन के जीरे-धनिये का लालच देकर पुराने मोबाइल फोनों की खरीद-फरोख्त, सिम हासिल करना, फर्जी आधार कार्ड बनवा लेना- ये सब हमारे देश में इतना आम हो गया है कि अपराध की नीयत से कोई भी व्यक्ति सैकड़ों सिम, आधार कार्ड और हजारों-लाखों की निजी जानकारियां हासिल कर लेता है। 


सबसे ज्यादा मुश्किल उन लोगों के लिए है, जिन्हें बैंकिंग, खरीदारी के वर्चुअल विकल्प मजबूरी में अपनाने पड़े और जिन्हें साइबर उपायों की समझ और जानकारी बिल्कुल नहीं है। ऐसे लोग एटीएम से पैसे निकालने के लिए अक्सर अनजान लोगों की मदद लेते हैं। उन्हें अपने एटीएम का पिन नंबर तक बता देते हैं। इसी तरह जो ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) लेनदेन में जरूरी बनाया गया है, उसकी जानकारी भी सहजता से किसी को भी दे देते हैं।


समस्या का दूसरा पहलू देश में हुई डिजिटल क्रांति से भी जुड़ा है। देश में 1 जुलाई 2015 से शुरू हुए डिजिटल इंडिया नामक कार्यक्रम का पवित्र उद्देश्य वैसे तो देश के गांव-गांव में ब्राडबैंड पहुंचाना और हर नागरिक को हाई स्पीड इंटरनेट से जोड़ना है। इससे प्रत्येक नागरिक को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा और बैंकिंग, पढ़ाई, खरीदारी के अलावा असंख्य काम घर बैठे हो सकेंगे। संदेह नहीं कि बीते सात वर्षों में इंटरनेट आधारित कामकाज की यह व्यवस्था हमारे जीवन में काफी गहरे पैठ गई है।


कोरोना काल में तो हालात ऐसे बने कि इंटरनेट के बगैर पत्ता हिलना भी नामुमकिन लगने लगा, लेकिन जितने कसीदे घर बैठे कामकाज की इस वर्चुअल व्यवस्था को लेकर काढ़े गए, उससे कई गुना ज्यादा सिरदर्द हैंकरों, साइबर फर्जीवाड़े करने वाले उन अनगिनत लोगों की फौज ने पैदा किया है। ये साइबर अपराधी झारखंड के बदनाम हो चुके कस्बे जामताड़ा से लेकर हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर तक की गलियों और अंधेरे कमरों में कंप्यूटरों के पीछे मौजूद हैं और हर दिन जाल में फंसे हर शख्स को चूना लगाने की नई-नई युक्तियां भिड़ा रहे हैं।


डिजिटल इंडिया की एक बेहद सकारात्मक पहल को ज्यादातर मामलों में बेरोजगार और आईटी के बेहद मामूली जानकारों ने पलीता लगा दिया है। हैरानी होती है कि सरकारी विभागों और जनता को साइबर छल-छद्म से बचाने का जिम्मा जिन पढ़े-लिखे, क्षमतावान और होनहार-जानकारी कर्मचारियों-अधिकारियों के जिम्मे है, उन्हें अल्पशिक्षित, कम जानकार और कई बार बेरोजगारों की फौज ने न्यूनतम संसाधनों के बल पर अपनी साइबर ठगी से ठेंगा दिखा दिया है। देश का डिजिटल इतिहास ऐसी साइबर धांधलियों से अटा पड़ा है।


ताजा किस्सा हरियाणा के नूंह इलाके का है, जहां बैठे साइबर लुटेरों ने हरियाणा, दिल्ली से लेकर अंडमान-निकोबार तक के लोगों को सैकड़ों करोड़ रुपयों का चूना लगाया। फर्जी सिम और आधार कार्ड के जरिए बैंकों में बनाए गए फर्जी खातों में ये रकम देश भर में साइबर ठगी के करीब 28 हजार मामलों के जरिए पहुंची है। अकेले नूंह इलाके के 14 गांवों में अप्रैल माह के अंत में 5 हजार पुलिस कर्मियों की टीम ने एक साथ छापेमारी कर 125 संदिग्ध हैकरों को पकड़ा तो पता चला कि इन्होंने थोड़े से वक्त में ही देश भर के 28 हजार लोगों को तरह-तरह का लालच देकर अपने जाल में फंसाया।


इस गिरोह के पास से दर्जन भर राज्यों में सक्रिय 347 सिम कार्ड पाए गए, जिनका इस्तेमाल साइबर जालसाजी के लिए हो रहा था। जिन 219 फर्जी बैंक खातों और 140 यूपीआई खातों में आम लोगों की सैकड़ों करोड़ रुपये की जमापूंजी ये ठग जमा कर रहे थे, उनका केंद्र राजस्थान के भरतपुर जिले में पाया गया। साइबर ठगी का यह पहला मामला नहीं है। मामला अब बढ़कर कुख्यात जामताड़ा से आगे निकलकर दिल्ली-एनसीआर की गलियों और हरियाणा- राजस्थान के चौक-चौराहों तक पहुंच चुका है।


साइबर अपराधी अब अंतरर्देशीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिरोह बनाकर काम कर रहे हैं। इसलिए खातों से उड़ाई गई रकम रातोंरात एक देश से बाहर दूसरे ठिकानों पर चली जाती है। ऐसे में देश के कानून बेमानी हो जाते हैं। यही समस्या मोबाइल ट्रैकिंग जैसे तकनीकी प्रबंधों की है। ऐसे में सरकार का यह जिम्मा बनता है कि वह कानून बनाने के साथ कड़ी सजाओं के प्रावधान करे और साइबर थानों में दर्ज हर शिकायत पर कार्रवाई सुनिश्चित करे। यदि साइबर अपराधियों की धरपकड़ कर उन्हें बेहद सख्त सजा देने में तेजी नहीं लाई गई, तो यह मर्ज एक लाइलाज महामारी की तरह ही बढ़ता जाएगा।

साभार : neha sanwariya 

Post a Comment

0 Comments