100 मिलियन लोग जल की कमी के कगार पर , कई बड़े शहर-गांवों में पानी की भारी समस्या देखने को मिल रही

 


नेहा सांवरिया। हम जल संकट का सामना कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि लगभग 100 मिलियन लोग जल की कमी के कगार पर हैं। कई बड़े शहर-गांवों में पानी की भारी समस्या देखने को मिल रही है। इस बीच, सचेत किया जा रहा है कि भारत की 40 फीसद आबादी को 2030 तक स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं होगा।

जल स्रोत स्वच्छ जल का महत्त्वपूर्ण संसाधन है। लेकिन ध्यान रहे कि दुनिया की 18 फीसद आबादी भारत में है, जहां केवल 4 फीसद साफ पानी है। इसमें भी 80 फीसद पानी कृषि के लिए उपयोग किया जा रहा है। ऐसे में यदि जल निकायों का उचित प्रबंधन नहीं होता है तो साफ पानी बचाना मुश्किल हो जाएगा। भारत के गांवों, नगरों आदि स्थानों पर जल स्रोतों की क्या स्थिति है, इसका अध्ययन भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया गया है।



निश्चित ही यह जल निकायों की पहली गणना के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक और मानव- निर्मिंत जल संरचनाओं के आकार, स्थिति, उपयोग, जल भंडारण क्षमता आदि का उल्लेख किया गया है। देश में कुल 24,24,540 जल निकायों की गणना हुई है। इनमें सबसे अधिक 7.47 लाख तालाब और जलाशय पश्चिम बंगाल में हैं, और सबसे कम 134 सिक्किम में हैं। महाराष्ट्र जल संरक्षण योजनाओं में अव्वल बताया गया है। भारत के कुल जल निकायों में से 97.1 फीसद यानी 23,55,055 ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। 2.9 फीसद यानी 69,485 शहरी क्षेत्र में हैं। इसके साथ ही 9.6 फीसद (जिनकी संख्या 2,32,637 हैं) आदिवासी क्षेत्रों और 2 प्रतिशत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हैं।


जल निकायों में 16.3 फीसद यानी 3,94,500 जल स्रोत ऐसे हैं, जिन्हें उपयोग में नहीं लाया जा रहा। यदि इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये जल्द खत्म हो जाएंगे। 1.7 फीसद ऐसे जल स्रोत हैं, जो 50 हजार या उससे अधिक लोगों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। इसी में 90 फीसद से अधिक ऐसे भी जल निकाय हैं, जो 100 लोगों की जरूरत को ही पूरा करते हैं।


दोहन, शोषण और प्रदूषण से प्रभावित 1.6 फीसद (जिनकी कुल संख्या 38,496 हैं) जल निकाय अतिक्रमण के शिकार हो गए हैं। बताया जा रहा है कि अतिक्रमण के कुल आंकड़े में से 95.4 फीसद ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, और 4.6 फीसद नगरीय क्षेत्रों में हैं। अनेक झीलें अतिक्रमण का सामना कर रही हैं। जल निकायों की गणना में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में 15,301, तमिलनाडु में 8,366, आंध्र प्रदेश में 3,920 जलाशय और झीलें अतिक्रमण से प्रभावित हैं। इसके कारण हैं बढ़ती लापरवाही और अनियंत्रित दोहन।   


उत्तराखंड का उदाहरण है कि तेजी से प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं। 461 जल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 76 प्रतिशत से अधिक पानी सूख चुका है। दिनोंदिन बढ़ती इस गंभीर स्थिति पर नीति आयोग कह चुका है कि हिमालय क्षेत्र के राज्यों में 60 फीसद से अधिक जल स्रोत सूख गए हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों में भी बताया गया है कि देश के 700 जिलों में 256 ऐसे हैं, जहां भूजल का स्तर अतिशोषित हो चुका है।


तीन-चौथाई ग्रामीण परिवारों के पास पीने योग्य पानी की पहुंच नहीं है। वे असुरक्षित स्रोतों पर निर्भर हैं। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा भूजल दोहन करने वाला देश बन गया है, जो कुल जल का 25 फीसद है। देश में 70 फीसद जल स्रोत दूषित हैं जिसके कारण लोग तरह-तरह के रोगों से ग्रसित हैं। प्रमुख नदियां प्रदूषण के कारण मृतप्राय हैं। जिस तरह दुनिया का पहला जलविहीन शहर दक्षिणी अफ्रीका का केपटाउन बन गया है, उसी तरह की स्थिति हिमालय से लेकर मैदानी क्षेत्रों में रह रहे अनेक गांव और शहरों में है, जिसके संकेत दिखाई दे रहे हैं।


जल निकायों की गणना में चौंकाने वाली बात है कि इनमें 78 फीसदी मानव निर्मिंत हैं, और 22 फीसद यानी 5,34,077 जल निकाय प्राकृतिक हैं। इसका अर्थ है कि प्राकृतिक स्रोत तेजी से गायब हो रहे हैं। कुल जल निकायों की क्षमता के संबंध में बताया गया है कि 50 फीसद जल निकायों की भंडारण क्षमता 1000 से 10,000 क्यूबिक मीटर के बीच है। वहीं 12.7 फीसद यानी 3,06,960 की भंडारण क्षमता 10,000 क्यूबिक मीटर से ज्यादा है।


रिपोर्ट कहती है कि 3.1 फीसद का क्षेत्रफल 5 हेक्टेयर से ज्यादा है जबकि 72.5 फीसद का विस्तार 0.5 हेक्टेयर से कम है। जल निकायों की इस गणना के बाद सुनिश्चित होना चाहिए कि देश के नीति-निर्माता उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर भविष्य में जल संसाधनों के सही नियोजन, विकास और उपयोग की दिशा में कदम बढ़ाएं। जल, जंगल, जमीन की एकीकृत नीतियां बनानी पड़ेंगी। चुनावी घोषणा पत्रों में स्वच्छ जल वापसी का मुद्दा शामिल किया जाए।


राज समाज के बीच ऐसी जीवन शैली बने कि जिस में जल सरंक्षण के लिए पर्याप्त स्थान हो। ऐसी योजनाएं बिल्कुल न चलाई जाएं जहां जल का अधिक दोहन-शोषण होता है, और बाजार द्वारा बंद बोतलों का पानी गांव तक पहुंचया जा रहा है। कोशिश हो कि प्रकृति और मानव के बीच में जल ही जीवन के रिश्ते की डोर बनी रहे। इस प्रयास को इस गणना के बाद राज-समाज को मिलकर करना होगा।

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