पुलिस ने किस भरोसे के साथ मीडिया कर्मियों को अतीक और उसके भाई के बिल्कुल करीब तक जाने दिया


                                 Photo: थर्ड पार्टी 

अतीक अहमद लगातार कहता आ रहा था कि उत्तर प्रदेश पुलिस मुठभेड़ दिखा कर उसकी हत्या करना चाहती है। अपनी सुरक्षा की गुहार उसने सर्वोच्च न्यायालय में भी लगाई थी, जब उत्तर प्रदेश पुलिस उसे गुजरात  से प्रयागराज लाना चाहती थी। तब सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस को उसे कैमरे की नजर में रखने और लाने-ले जाने का निर्देश दिया था। 

वैसे भी मुठभेड़ को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट दिशा-निर्देश है, जिसमें मुठभेड़ में शामिल लोगों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज करानी पड़ती है। फिर जब अतीक ने सर्वोच्च न्यायालय में पहले ही अपनी हत्या की आशंका जाहिर कर दी थी, तो उत्तर प्रदेश पुलिस मुठभेड़ जैसी किसी भी स्थिति को लेकर सतर्क थी।


ऐसे में विपक्षी दलों के इस आरोप को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पुलिस ने चिकित्सीय जांच के लिए ले जाते वक्त जानबूझ कर लापरवाही बरती। क्या वजह है कि बदमाशों पर पुलिस की तरफ से एक भी गोली नहीं चलाई गई।


पुलिस ने किस भरोसे के साथ मीडिया कर्मियों को अतीक और उसके भाई के बिल्कुल करीब तक जाने दिया। क्या वह भूल गई थी कि अतीक कोई मामूली अपराधी नहीं, बल्कि कुख्यात बदमाश है। ऐसे लोगों के बहुत सारे दुश्मन हो सकते हैं, जो ऐसे मौकों का लाभ उठा सकते हैं।


दरअसल, अतीक और उसके भाई की हत्या के बाद इसलिए भी उत्तर प्रदेश सरकार पर तीखा हमला हो रहा है कि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई मौकों पर कह चुके हैं कि जो भी अपराध करेगा, उसे ‘ठोक’ दिया जाएगा। अब तक योगी के शासन काल में पांच हजार से अधिक मुठभेड़ें हो चुकी हैं, जिनमें एक सौ अस्सी से अधिक ‘बदमाशों’ को मार गिराया गया है।


इस तरह बहुत सारे मामलों में न्यायालयों से बाहर उत्तर प्रदेश पुलिस खुद ‘इंसाफ’ कर चुकी है। पुलिस की कुशलता इस बात में मानी जाती है कि वह अपराधियों को मुठभेड़ में मार गिराने के बजाय उन्हें पकड़ा कर न्यायालय के समक्ष पेश करे। अगर ऐसा नहीं होता, तो इससे एक तरह से हाथ के बदले हाथ और आंख के बदले आंख वाली प्रवृत्ति को ही बढ़ावा मिलता है।





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