दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 का मुकद्दमा हर किसी पर नहीं चालाया जा सकता है - पटना उच्च न्यायलय

 

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 का मुकद्दमा हर किसी पर नहीं चालाया जा सकता है -पटना उच्च न्यायलय 


भारत में अपराधिक कानून के क्रियान्वयन के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता को 1973 में लाया गया जो 1अप्रेल 1974 को लागू हुआ इसमें कुल 37 अध्याय और 484 धारायें हैं इन धाराओं पर ही इस संहिता का दारोमदार रहता है क्योंकि भारत के कई मामलों की कार्यवाही इसी संहिता के अन्तर्गत की जाती है।

 इसी संहिता की एक धारा है 107 | इस धारा का प्रयोजन है कि कहीं शान्ति भंग की आशंका हो तो मजिस्ट्रेट शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिए आरोपी व्यक्ति को एक बांड के लिए सहमत होने का आदेश देने के लिए अधिक्रत है जो निर्धारित समय के लिए शान्ति बनाये रखने के लिए कहता है पुलिस 107 के तहत एक प्रत्यावेदन मजिस्ट्रेट को आशंका व्यक्त करते हुए भेजती है कि शान्ति भंग हो सकती है और मजिस्ट्रेट आरोपी के लिए एक नोटिस जारी करता है यह नोटिस नियत तिथि पर नियत समय के लिए एक बंध पत्र के लिए कहता है।

 न्यायालय ने संहिता की धारा 107  और  204 की प्रक्रिया को समान बताया न्यायालय ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट को अपना विवेक लगाना चाहिए पुलिस के प्रत्यावेदन पर नोटिस जारी नहीं करना चाहिए नोटिस जारी करने से पहले यह देखना जरूरी है कि 107 की प्रक्रिया के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं यदि पर्याप्त आधार न हो तो मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी नहीं करना चाहिए जिस तरीके से पुलिस भा0 द0 संहिता की प्रक्रिया में केस डायरी के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट एवंम् अन्य साक्ष्य भेजती है वैसे ही 107 के प्रत्यावेदन के साथ पर्याप्त साक्ष्य देना आवश्यक है भारत में पुलिस रोजाना 151,107,116 के प्रत्यावेदन मजिस्ट्रेट को भेजती रहती है लेकिन किसी पर भी आरोप सिद्ध नहीं हो पाता अन्त में साक्ष्य के अभाव में मुकद्दमा निरस्त कर दिया जाता है 

आज के समय में इस धारा की आढ में प्रशासन जनता  का शोषण कर रहा है न्यायालय ने तो यहां तक कह दिया कि  मजिस्ट्रेट इस संहिता को पढ ही नहीं रहे क्या हर एक को न्यायालय में पढाना संभव है क्या? मजिस्ट्रेट की अज्ञानता की शिकार जनता होती है क्योंकि यदि ऐसे मामलों को उच्च न्यायलय में चुनौती दी जाय तो उच्च न्यायालय में वकीलों की फीस काफी है ।

इसलिए जनता उच्च न्यायलय न जा कर अपना शोषण कराने को मजबूर होती है

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