युवाओं में तनाव, अवसाद और जान देने का चलन चिंताजनक

 


खुदकुशी। युवाओं में तनाव, अवसाद और फिर आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। इसे रोकने के लिए अनेक उपाय सुझाए गए हैं। तनाव दूर करने के लिए लगातार जागरूकता पैदा करने की कोशिश की जाती है। जगह-जगह सहायता और सलाह केंद्र खोले गए हैं। इसके बावजूद इस समस्या पर काबू पाना चुनौती है। सबसे चिंताजनक स्थिति तो यह है कि जिन चिकित्सकों के माध्यम से अवसाद जैसी स्थितियों से पार पाने की उम्मीद की जाती है, वे खुद इस समस्या से ग्रस्त होकर खुदकुशी करते देखे जाते हैं।

मेधावी युवाओं में तनाव, अवसाद और जान देने का चलन चिंताजनक
ताजा आंकड़े के मुताबिक 2010 से 2020 के बीच साढ़े तीन सौ मेडिकल छात्रों, रेजिडेंट डाक्टरों और चिकित्सकों ने खुदकुशी कर ली।



इसे लेकर इंडियन मेडिकल कांग्रेस ने चिंता जताई और चिकित्सकों और अस्पताल प्रबंधन से इस मामले में सकारात्मक वातावरण बनाने की सलाह दी है। चिकित्सकों में बढ़ते अवसाद के पीछे बड़ा कारण उन पर कामकाज का बढ़ता दबाव और तनाव है। आत्महत्या करने वालों चिकित्सकों का विश्लेषण करने से पता चला है कि वे अत्यंत मेधावी थे, सबसे तेज दिमाग थे, मगर उनका मानसिक स्वास्थ्य कमजोर था। वे अपने पेशेवर जीवन में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते थे।


अतिरिक्त रूप से संवेदनशील, मेधावी लोग में यह स्थिति तेजी से बढ़ी

चिकित्सा विज्ञान के अनुसार अवसाद अक्सर ऐसे लोगों को जल्दी अपनी गिरफ्त में ले लेता है, जो अतिरिक्त रूप से संवेदनशील, प्राय: मेधावी और कमजोर मानसिक स्वास्थ्य वाले होते हैं। ऐसे लोगों को सामाजिक संबल की बहुत जरूरत होती है। मगर हैरानी की बात है कि चिकित्सा के पेशे में रहते हुए भी लोगों को इस समस्या की पहचान नहीं हो पाती। ऐसा नहीं माना जा सकता कि अवसाद के लक्षण उनके आसपास रहने वाले लोगों को नजर न आए होंगे।


अब तो यह भी छिपा तथ्य नहीं है कि अक्सर पढ़ाई-लिखाई, परीक्षा और काम के दबाव में युवाओं का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। इसीलिए परीक्षा आदि के समय माता-पिता और अध्यापकों को विद्यार्थियों के प्रति विशेष रूप से ध्यान देने की सलाह दी जाती है। उन्हें स्रेह और प्रोत्साहन पूर्ण वातावरण देने का प्रयास किया जाता है। हैरानी की बात है कि चिकित्सा विज्ञान से जुड़े लोग भी इस मामले में अपने किसी पीड़ित सहकर्मी या सहपाठी के प्रति वैसे ही उदासीन नजर आ रहे हैं, जैसे समाज के सामान्य लोग देखे जाते हैं।


इंडियन मेडिकल कांग्रेस ने व्यापक रूप से सतर्कता अभियान चलाने की पहल की

अच्छी बात है कि इसे लेकर इंडियन मेडिकल कांग्रेस ने व्यापक रूप से सतर्कता अभियान चलाने की पहल की है। अवसाद हमारे देश में एक गंभीर समस्या का रूप ले चुका है। खासकर युवा इसकी गिरफ्त में जल्दी आ जाते हैं, इसलिए कि उन पर पढ़ाई-लिखाई और पेशे आदि में अव्वल रहने का दबाव अधिक बढ़ा है। उनकी महत्त्वाकांक्षाएं भी बड़ी हैं। माता-पिता और समाज उन्हें अव्वल देख कर प्रसन्न तो होते हैं, उनकी नजीर भी देते हैं, पर उनके मानसिक स्वास्थ्य का अंदाजा लगाने में प्राय: विफल साबित होते हैं।


इसी का नतीजा है कि मामूली विफलता पर भी कई युवा गहरे अवसाद में चले जाते हैं और धीरे-धीरे आत्महंता हो जाते हैं। पिछले दिनों देश के पचपन विश्वविद्यालयों के छात्रों में बढ़ते अवसाद और खुदकुशी की प्रवृत्ति पर चिंता जताई गई थी। कुछ तो युवाओं में यह समस्या इसलिए भी तेजी से घर कर रही है कि पढ़ाई-लिखाई कर चुकने के बाद भी उन्हें जीवन जीने का कोई बेहतर जरिया नजर नहीं आता। ऐसे में युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेती इस समस्या के विभिन्न पहलुओं का बारीक अध्ययन और व्यावहारिक उपायों पर विचार की जरूरत है।

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