नशा : इस समस्या के समूल नाश के लिए भी हर मुमकिन कोशिश करें

 


भारत में नशे का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है। इसकी व्यापकता इतनी बढ़ गई है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुख्य सचिवों के दूसरे राष्ट्रीय सम्मेलन में कहना पड़ा कि राज्य सरकारें ड्रग्स से उत्पन्न चुनौतियों को केंद्र के सामने लाएं। इस समस्या के समूल नाश के लिए भी हर मुमकिन कोशिश करें क्योंकि यह आर्थिक-सामाजिक समस्याओं का कारण तो है ही साथ ही हमारे अस्तित्व के लिए भी खतरा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी इस समस्या के खतरों से बाबस्ता हैं। सीतारमण के अनुसार सोने की तस्करी तो सिर्फ  अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाती है, लेकिन ड्रग्स की तस्करी हमारी कई पीढ़ियों को बर्बाद कर देती है।

संसद के शीतकालीन सत्र में 53 सांसदों ने ड्रग्स के नकारात्मक पहलुओं पर चर्चा की और इसके प्रसार पर लगाम लगाने की वकालत की।

सांसदों की चिंता से सहमति जताते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इसमें दो राय नहीं कि आज ड्रग्स से नई पीढ़ी बर्बाद हो रही है, अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ने लगी है, और आतंकवाद को खाद-पानी मिल रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री ने सभी संबंधित एजेंसियों को मिलकर काम करने के लिए निर्देशित किया है, और कहा है कि आपस में समन्वय, सहयोग और तालमेल बनाकर काम करें। अमित शाह ने यह भी कहा कि ड्रग्स की आय से अर्जित संपत्तियों को प्राथमिकता के आधार पर जब्त करके बेचने की भी आवश्यकता है, क्योंकि इससे सरकार के पास पैसे आएंगे और वह नशे के धंधे को रोकने में समर्थ हो सकेगी। आज ड्रग्स के साथ-साथ हथियार और गोला-बारूद की भी तस्करी की जा रही है। 


ड्रग्स और हथियार के बीच चोली-दामन का रिश्ता बनता जा रहा है। गृह मंत्री अमित शाह चाहते हैं कि ड्रग्स सरहद तक या फिर सरहद या बंदरगाह या एयरपोर्ट से पान की दुकान तक या स्कूल परिसर या कॉलेज परिसर तक न पहुंचे, इसके लिए समुचित उपाय करने की जरूरत है। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार ड्रग्स के मामले में अभी तक 30,407 गिरफ्तारियां हुई हैं, और 27,578 केस दर्ज हुए हैं। देश में गांजा और हीरोइन की तस्करी सबसे अधिक होती है। उसके बाद अफीम, कोकीन और दूसरे रासायनिक ड्रग्स आते हैं। उल्लेखनीय है कि जलमार्ग, थलमार्ग, नभमार्ग के रास्ते आने वाले कूरियर और पार्सल द्वारा ड्रग्स की मात्रा जांच एजेंसियों द्वारा पकड़ी गई ड्रग्स की मात्रा से अधिक है अर्थात एजेंसियों द्वारा पकड़ी गई ड्रग्स नशे के काले धंधे का छोटा अंश मात्र है।


आज भी बहुत सारे जांच अधिकारियों को यह ज्ञात ही नहीं है कि नशे के धंधेबाजों की संपत्तियों को अपने अधिकार में लेकर उन्हें बेचा जा सकता है। यह ऐसा पक्ष है, जिस पर सरकार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए प्रशिक्षण, सेमिनार, वर्कशॉप द्वारा इस क्षेत्र में काम करने वाली एजेंसियों के कमर्चारियों और अधिकारियों को जागरूक किया जा सकता है। हर जोन में ऐसे अधिकारी को नियुक्त करने की भी व्यवस्था की जाए जो केवल वित्तीय अनुसंधान की निगरानी करे, जरूरी सुझाव दे और जरूरत पड़ने पर प्रभावशाली समाधान प्रस्तुत करने में समर्थ हो। 


सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1 करोड़ 25 लाख लोग हेरोइन का सेवन करते हैं, जिनमें से 60 लाख लोग पूरी तरह से हेरोइन पर निर्भर हैं, जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर चिकित्सा एवं पुनर्वासन की सुविधा उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। हेरोइन के नशे में गिरफ्त लोग मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं। मंत्रालय द्वारा किए गए राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार देश में 6 करोड़ से अधिक ड्रग्स का सेवन करने वालों में 10 से 17 आयु वर्ग के लोग सबसे अधिक हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 2022 में 14,967 किलो ग्राम हेरोइन की खेप पकड़ी गई जबकि 2019 में केवल 237 किलो ग्राम हेरोइन पकड़ी गई थी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ड्रग्स की तस्करी कितनी रफ्तार से बढ़ रही है।

ड्रग्स आसानी से पैसा कमाने का सबसे आसान रास्ता माना जाता है, लेकिन यह महज भ्रांति है, क्योंकि इसकी गिरफ्त में आने के बाद इंसान मौत के बहुत ही नजदीक चला जाता है, या फिर असमय काल-कवलित हो जाता है। चूंकि पुलिस या अन्य जांच एजेंसियों की गिरफ्त में नशे के धंधेबाज या नशे की लत के शिकार लोग अक्सर नहीं आते हैं, इसलिए लोग इस काले धंधे से डरने की जगह नशे के दलदल में धंसते चले जाते हैं। आम तौर पर जांच एजेंसियां जिन्हें पकड़ती हैं, वे केवल प्यादा भर होते हैं, असली खिलाड़ी कहीं दूर बैठकर कठपुतलियों को नचाता रहता है। हालांकि, नशे के काले धंधे को रोकने की दिशा में लगातार प्रयास हो रहे हैं।  


बीएसएफ, एसएसबी, असम राइफल्स, भारतीय तटरक्षक, एनआईए और आरपीएफ, एनसीबी, सीबीएन, राज्यों की पुलिस आदि को स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 में अंतर्निहित अधिकार दिए गए हैं ताकि नशे के धंधे पर रोक लगाई जा सके। इस बहुआयामी लड़ाई में ड्रग्स की खपत कम करना अर्थात ड्रग्स की मांग घटाना भी अति महत्त्वपूर्ण है। यह तभी संभव है, जब ड्रग्स की गिरफ्त में जकड़े लोगों को सलाह एवं उपचार द्वारा स्वस्थ किया जाए। ऐसा प्रयास सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है, जो नशे के आदी व्यक्ति के उपचार एवं पुनर्वास कार्य में जुटा हुआ है। इस क्रम में जांच एजेंसियों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ड्रग्स के जिन धंधेबाजों को गिरफ्तार किया गया है, उन्हें सक्षम न्यायालय द्वारा कम से कम 10 वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए सश्रम कारावास की सजा सुनाई जाए। 


ड्रग्स के धंधेबाजों को 10 वर्ष या अधिक की सजा होती है तो उनके द्वारा अवैध रूप से अर्जित संपत्तियों को कब्जे में लेकर बेचने में जांच एजेंसियों को आसानी होगी और आरोपी जांच को प्रभावित भी नहीं कर सकेंगे। प्राय: होता यह है कि एक ही अधिकारी ड्रग्स की खेप पकड़ने से लेकर अदालत में जिरह करने और वित्तीय अनुसंधान करने तक का काम भी करता है, जबकि वह प्रत्येक कार्य में दक्ष नहीं होता। ऐसी स्थिति में बदलाव लाने की जरूरत है। उम्मीद है कि सरकार जल्द ही इस दिशा में आवश्यक कार्रवाई करेगी क्योंकि इस साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर नशामुक्त भारत की झांकी बताती है कि सरकार ड्रग्स के धंधेबाजों को नेस्तनाबूद करने के लिए कृत संकल्पित है।

साभार: NARENDER KUMAR 

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