पाकिस्तान की माली हालत बरसों से खराब है। इस समय जब पूरी दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही है, उसकी स्थिति बेहद नाजुक हो चुकी है। अब तो वहां के रक्षामंत्री ने सार्वजनिक रूप से कह दिया है कि हम एक दिवालिया हो चुके देश में रह रहे हैं। उन्होंने इस स्थिति के लिए राजनेताओं, नौकरशाहों और सेना को जिम्मेदार ठहराया है।
पिछले काफी समय से पाकिस्तान के लोग आटा, पेट्रोल, सब्जियों आदि की कीमतें आसमान पर पहुंच जाने को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी अपनी पदयात्रा के दौरान पाकिस्तान के खस्ता हाल को लेकर वहां के हुक्मरान पर तीखा हमला बोला, तो उन्हें अपार जनसमर्थन मिला।
मगर इस सुझाव पर पाकिस्तान के लिए अमल करना खासा मुश्किल काम होगा। जिस तरह पाकिस्तान की हुकूमत पर सेना और नौकरशाहों का लगातार वर्चस्व बना रहता है, उसमें सरकार इस तरह का फैसला करने की हिम्मत नहीं जुटा सकती। जाहिर है, इस वक्त पाकिस्तान की मौजूदा हुकूमत के लिए आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति है।
दरअसल, पाकिस्तान ने कभी अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए गंभीर प्रयास किया ही नहीं। वहां की हुकूमत और सेना के बीच वर्चस्व की लड़ाई हमेशा बनी रही, जिसमें सेना का ही पलड़ा भारी रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि सेना के अधिकारी और नौकरशाह जब मन हुआ सरकार की बांह मरोड़ कर अपने पक्ष में फैसले कराते रहे हैं।
सेना ने पाकिस्तान में तमाम महंगी जगहों और व्यावसायिक गतिविधियों पर अपना कब्जा जमा लिया। सरकार अपने दैनिक खर्चों के लिए भी कर्ज और दूसरे देशों की मदद पर निर्भर होती गई। कभी उसने अमेरिका से नजदीकी बनाए रखी, तो अब चीन के पाले में खिसक गया है। फिर देश की मुफलिसी पर पर्दा डालने के लिए पड़ोसी मुल्क भारत के खिलाफ नफरत को बढ़ावा दिया जाता रहा, जिसमें सेना और वहां की खुफिया एजेंसी सरकार को कठपुतली की तरह नचाती रही हैं। इस तरह वहां की अवाम को लगता रहा है कि पाकिस्तान में मुफलिसी के पीछे भारत की बड़ी भूमिका है। मगरअब वहां के लोग सेना और सरकार की इस चाल को समझ गए हैं और सरकार से मुल्क की कंगाली पर जवाब चाहते हैं।
अब पाकिस्तान ऐसे मुहाने पर पहुंच गया है, जहां से लौटना उसके लिए आसान नहीं रह गया है। वह चीन की अंतरराष्ट्रीय राजनीति का मोहरा बन चुका है। इसी तरह चीन के चंगुल में श्रीलंका भी फंसा हुआ था, मगर वह उसे आर्थिक बदहाली से बाहर नहीं निकाल पाया। पाकिस्तान भी उसी स्थिति में पहुंच गया है। मगर उसे इसका अहसास नहीं कि बाहर की इमदाद से देश की माली हालत नहीं सुधर सकती।
इसके लिए देश में कमाई के जरिए पैदा करने होंगे। आतंकवादी संगठनों को पोसने के बजाय रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। मगर जैसे ही कोई हुक्मरान ऐसा करने की कोशिश करता है, नौकरशाही उसके खिलाफ हो जाती है। वहां की सेना उसे गद्दी से उतार फेंकती है। मौजूदा हुकूमत को भी इसी बात का डर है, इसलिए उसके लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के सुझाव पर अमल करना मुश्किल होगा।
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