राष्ट्रीय स्वास्थ्य और बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा

 


सेहत। खेलने, चहकने, व्यायाम, योग के समय में कोचिंग में समय व्यतीत करना शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत बड़ा कुठाराघात है। अगर समय रहते अवैध कोचिंग संस्थानों को सरकारी स्तर पर बंद नहीं किया गया या इन पर लगाम नहीं लगाया गया तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य और बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

कहावत है- ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है’ और आज कहा जाता है कि देश में ‘चिकित्सालयों से अधिक खेल मैदानों, स्टेडियमों की आवश्यकता है।’ लेकिन यह देखा जा सकता है कि समूचे देश में कोचिंग संस्कृति बुरी तरह से पनप रही है। यह इस कदर हावी है कि सुबह से देश के भविष्य, नौनिहाल, किशोर, युवा कोचिंग संस्थानों में भागे-भागे पहुंचते हैं।

नौनिहाल, किशोर और युवाओं को सुबह-सुबह खेल के मैदानों, स्टेडियमों में होना चाहिए, लेकिन मिथ्या विश्वास के कारण ऐसा रुपहला वातावरण कोचिंग संस्थान निर्मित करते हैं कि अभिभावक उनके मायाजाल में बुरी तरह से फंस जाते हैं और अपने बच्चों को कोचिंग में भेजने के लिए प्रेरित होते हैं। या यों कहें कि मजबूर होते हैं।

दरअसल, अभिभावकों और बच्चों के मन-मस्तिष्क में ये बातें घर कर गई हैं कि वास्तविक ज्ञान और सफलता की गारंटी सिर्फ कोचिंग संस्थान ही दे सकते हैं। खेल के मैदानों में एक ओर जहां बच्चों का तन मजबूत होता है, वहीं मन-मस्तिष्क स्थिर होता है। बच्चा जितना पसीना बहाता है, उसे मानसिक शांति उतनी ही अधिक प्राप्त होती है। लेकिन कोचिंग संस्थानों में न तो बच्चों का तन मजबूत होता है, न मन स्थिर होता है। आज किशोर उम्र के बच्चे खेल से वंचित होने के कारण तनाव भी नहीं झेल पाते।

जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं से ही टूट जाते हैं। परिस्थितियों में सामंजस्य के लिए खेलों का जीवन में होना अति आवश्यक है, लेकिन विडंबना यह है कि आज नर्सरी के बच्चों को भी चश्मा लग रहे हैं। बच्चों की दृष्टि कमजोर हो रही है, वे रक्ताल्पता और विटामिन-डी की कमी के शिकार हो रहे हैं। बच्चों के सर्वांगीण विकास अवरुद्ध हो रहा है। वे महज किताबी कीड़ा बन कर रह जाते हैं।

एक ओर, शुल्क के रूप में जहां कोचिंग संस्थान अभिभावकों से मोटी रकम वसूलते हैं, वही बच्चों को देने के नाम पर सिर्फ तनाव देते हैं। पाठशालाओं ने बच्चों को तनाव नहीं दिया, लेकिन कोचिंग संस्थानों ने तनाव दिया है। बल्कि कहना चाहिए कि कोचिंग संस्थान तनाव की फैक्ट्री हैं और दुखद पहलू यह है कि ये गली-गली में कोचिंग उग रहे हैं, फल-फूल रहे हैं, लेकिन सरकारों को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता। अवैध कोचिंग संस्थानों में कोई प्रतिबंध नहीं है, कोई कायदा नहीं है।

शिक्षा के नाम पर भ्रम फैलाने वाले कोचिंग संस्थानों द्वारा लुभावने, भ्रामक विज्ञापनों और मनगढ़ंत सफलता की दर दिखाने से भावुक और अबोध बच्चे बरबस आकर्षित होते हैं। हालांकि इन कोचिंग संस्थानों की सफलता की दर से असफलता का प्रतिशत कई गुना अधिक होता है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है।

किसी भी प्रतियोगी, प्रतिस्पर्धी परीक्षा में सफलता परीक्षार्थी की खुद की लगन, स्वाध्याय से मिलती है, न कि गुणवत्ताविहीन कोचिंग संस्थानों में समय नष्ट करने से। मनोवैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि बच्चों की स्कूली पढ़ाई की सफलता में कोचिंग संस्थानों का बहुत ज्यादा योगदान नहीं है, बल्कि बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य को कोचिंग संस्थानों ने घुन ही लगाया है।

खेलने, चहकने, व्यायाम, योग के समय में कोचिंग में समय व्यतीत करना शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत बड़ा कुठाराघात है। अगर समय रहते अवैध कोचिंग संस्थानों को सरकारी स्तर पर बंद नहीं किया गया या इन पर लगाम नहीं लगाया गया तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य और बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।


साभार: कॉपी पेस्ट 



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