घटना लग सकती है, लेकिन इसे मनुष्य के बीच अवांछित व्यवहारों के एक उदाहरण के तौर पर भी देखा जा सकता है

 


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उत्तर प्रदेश के बदायूं में चूहे को मारने के आरोप में एक युवक के खिलाफ मामला दर्ज किया जाना एक अलग घटना लग सकती है। समूचे जीव-जगत में इंसान को इसलिए सबसे अलग और विशेष माना जाता है कि मानव सभ्यता के विकास के क्रम में इसके भीतर विकसित विवेक और संवेदना ने इसे पारिस्थितिकी के चक्र को समझने का मौका दिया और उसी मुताबिक इसके व्यवहार बनते गए। लेकिन इसके समांतर इसी समाज में ऐसे बर्ताव ने भी अपनी जगह बनाई, जिसके रहते इंसानी तकाजों पर सवाल उठते हैं।

उत्तर प्रदेश के बदायूं में चूहे को मारने के आरोप में एक युवक के खिलाफ मामला दर्ज किया जाना एक अलग घटना लग सकती है, लेकिन इसे मनुष्य के बीच अवांछित व्यवहारों के एक उदाहरण के तौर पर भी देखा जा सकता है।

यह मामला चूंकि अब कानून के कठघरे में है, इसलिए अब इसका फैसला कानूनी प्रक्रिया के तहत किया जाएगा। दरअसल, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का मकसद ही मनुष्य के ऐसे व्यवहारों पर लगाम लगाना है, जिसमें वह बेमानी वजहों से किसी पशु पर हमला करता है या उसे मार डालने के लिए क्रूर तौर-तरीके अपनाता है।

इस लिहाज से देखें तो बदायूं की घटना में यह विचित्र था कि युवक ने पहले तो एक चूहे को मारने के लिए उसकी पूंछ को एक पत्थर से बांधा, फिर उसे एक नाले में फेंक दिया, जिससे चूहे की मौत तड़प-तड़प कर हो। किसी पशु के प्रति इस तरह की क्रूरता का यह कोई अकेला उदाहरण नहीं है। आए दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं।

हाल ही में दिल्ली में एक गर्भवती कुतिया को एक कालेज के कुछ कर्मचारियों और छात्रों ने मिल कर बेहद बर्बरता से पीट-पीट कर मार डाला। इस घटना का वीडियो सामने आने के बाद 

 पुलिस ने मामला दर्ज किया। लेकिन यह अपने आप में किसी भी मनुष्य के वजूद पर सवाल है कि किसी जीव के प्रति उसके भीतर किस हद तक संवेदनहीनता मौजूद है। यह समझना 

मश्किल है कि किसी भी पशु को तड़पा कर मारने से व्यक्ति को किस तरह संतोष मिलता है! अगर सचमुच कोई संतोष मिलता है तो क्या यह इस बात का सबूत नहीं है कि ऐसे व्यक्ति के भीतर संवेदना का उचित विकास नहीं हो पाया या फिर उसने अपने

मानवीय विवेक को दरकिनार कर संवेदनहीन होने के लिए सचेतन प्रयास किया?

सच यह है कि मन-मस्तिष्क में मौजूद विवेक आधारित संवेदनशीलता ही मनुष्य को समूचे जीवन-जगत में खास बनाती है। ऐसे तमाम पशु-पक्षी रहे हैं, जो मानव सभ्यता के विकास क्रम में उसके सहायक के रूप में साथ रहे और कई स्तर पर बेहद उपयोगी साबित हुए। यों भी समूचे पारिस्थितिकी तंत्र में जीव-जगत का अपना चक्र है और सभी का जीवन किसी न किसी रूप में एक दूसरे के अस्तित्व से जुड़ा है।

इस नाते किसी भी व्यक्ति के लिए यह समझना उसके मनुष्य होने की बुनियादी शर्त के तौर पर देखा जाना चाहिए कि वह किसी भी जीव के प्रति अपने व्यवहार को कितना विवेकसम्मत बना पाता है और अपने व्यवहार में कितनी संवेदनशीलता बरत पाता है। ऐसे तमाम लोग हैं, जो न केवल पालतू, बल्कि आवारा पशुओं के प्रति भी बेहद मानवीय बर्ताव करते हैं, उनसे प्यार जताते हैं और उनके लिए भोजन भी मुहैया कराते हैं।

बल्कि कई लोग किसी वजह से घायल हो गए कुत्ते या अन्य पशुओं का इलाज करा कर उनका खयाल रखने की भी कोशिश करते हैं। यह उनके बेहतर मनुष्य होने का प्रमाण होता है। इसके बरक्स अगर कोई व्यक्ति किसी पशु के प्रति क्रूरतापूर्ण तरीके से पेश आता है, उसे मार डालता है तो उसे न केवल मानवीय कसौटी पर कमतर मनुष्य के तौर पर देखा जाना चाहिए, बल्कि उसके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई भी होनी चाहिए।












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