भारत। देश 23 दिसम्बर को किसान दिवस के रूप में मनाता है‚ किसान (अन्नदाता) की वजह से देश के निवासी भरपेट भोजन कर पाते हैं। किसानों के प्रति आदर और आभार व्यक्त करने के लिए खासतौर पर 23 दिसम्बर को देशभर में किसान दिवस मनाया जाता है। 23 दिसम्बर को ही देश के पांचवे प्रधानमंत्री और किसानों व खेतिहर श्रमिकों के मसीहा चौधरी चरण सिंह की जयंती भी है। चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को वर्तमान गाजियाबाद जनपद की बाबूगढ़ छावनी के नूरपूर गांव में हुआ। साधारण कृषक परिवार में जन्मे चरण सिंह ने गांधीजी के नमक सत्याग्रह के दौरान गाजियाबाद क्षेत्र में कांग्रेस के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के तौर पर सत्याग्रह में बढ़-बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और 6 महीने कारावास में भी बिताए।
भूमि सुधार कानून
1937 में अंतरिम सरकार में विधायक बनते ही चौधरी साहब खेती-किसानी और खेतिहर मजदूरों के हित में कानून बनवाने की जुगत में जुटे गए थे। विधान मंडल की बैठकों में उन्होंने उन विधेयकों व कानूनों का पुरजोर विरोध किया जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था व किसानों-काश्तकारों के लिए हानिकारक थे। मंत्री बनते ही समस्त भारत में कारगर व क्रांतिकारी भूमि सुधार कानून बनवाने में उन्होंने सफलता हासिल की। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाले 'पहले ऋणमुक्ति विधेयक-1939' के मसौदे को तैयार करने एवं लागू कराने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह अपने सतत संघर्ष‚ लगन और अथक परिश्रम के बल पर प्रधानमंत्री की हैसियत से लालकिले पर ध्वजारोहण के गरिमामय अवसर को हासिल करने में सफल हुए।
भारतीय कृषि व्यवस्था अर्थशास्त्री
प्रधानमंत्री बनने के बावजूद उनके चिंतन में देश की कृषि-व्यवस्था और कृषकों के हित समाए हुए थे। वे एक जाने-माने अर्थशास्त्री थे। इस संदर्भ में हिंदुस्तान टाइम्स के 31 मार्च 1938 और 1 अप्रैल 1938 के अंक में उनके दो विशेष आलेख प्रकाशित हुए। इन आर्टिकल्स को पढ़कर संयुक्त पंजाब प्रांत के तत्कालीन राजस्व मंत्री सर छोटूराम ने लाहौर से अपने निजी सचिव टीकाराम को चौधरी चरणसिंह से खास मुलाकात करने के लिए उत्तर प्रदेश भेजा। गहन चिंतन-मनन के बाद चौधरी साहब के रिसर्च पेपर्स के आधार पर संयुक्त पंजाब प्रांत में कुछ महीनों बाद ही कृषि विपणन संबंधी कानून सर छोटूराम के आदेश पर लागू कर दिए गए।
उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादन मंडी अधिनियम 1964
अपने प्रदेश में चौधरी चरण सिंह को इस कानून को पास कराने के लिए 1964 तक इंतजार करना पड़ा। यानी 1964 में जब वह प्रदेश के कृषि मंत्री बने तब उन्होंने 'उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादन मंडी अधिनियम 1964' नाम से मंडी व्यवस्था संबंधी कानून बनवाकर महाजनों और सूदखोरों के कर्ज-बंधन में जकड़े लाखों गरीब किसानों व खेतिहर श्रमिकों को कर्ज मुक्त कराया था। असलियत में इसी दौरान चौधरी चरण सिंह मझोले किसानों‚ छोटे काश्तकारों व खेतिहर श्रमिकों के प्रबल पैरोकार के रूप में उभरे।
जमींदारी उन्मूलन अधिनियम और अधिकतम जोत-सीमा आरोपण अधिनियम
उत्तर प्रदेश की प्रांतीय सरकार में चरण सिंह 1952 में कृषि एवं राजस्व मंत्री बने तो प्रदेश के किसानों को पहली बार एहसास हुआ कि उनका सच्चा हितैषी और नुमाइंदा सत्ता के गलियारों में पहुंचा है। उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप सरकार ने भूमि सुधार के दो बड़े कानून-1952 का जमींदारी उन्मूलन अधिनियम और 1960 का अधिकतम जोत-सीमा आरोपण अधिनियम लागू कर दिए। चौधरी चरण सिंह ने अपने राजनैतिक जीवन के शुरुआती दौर से ही जमाखोरी व मुनाफाखोरी के लिए उत्तरदायी बिचौलिया पद्धति के विरु द्ध आवाज उठाई।
ग्रामीण परिवेश का कायाकल्प
जमींदारी उन्मूलन एक्ट के तहत राज्य और खेतिहरों के बीच बिचौलियों की भूमिका निभा रहे जमींदारों व ताल्लुकदारों को हटाकर कृषक-शोषण पर लगाम लगा दी गई। जिन जमीनों पर भूमिहीन अनुसूचित जाति एवं दलित वर्ग के लोगों ने घर बना रखे थे‚ ऐसे लाखों लोगों को उन घरों का मालिकाना हक दे दिया गया। इस प्रकार चरण सिंह ने एक नये सामाजिक ढांचे की स्थापना कर उत्तर प्रदेश के ग्रामीण परिवेश के कायाकल्प करने में अपना योगदान दिया। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बुनियादी विसंगतियों का मार्मिक वर्णन उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'इंडियन पॉवर्टी एंड इट्स सोल्यूशन' में किया है। यह किताब उन्होंने 1959 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के प्रत्युत्तर में लिखी।
भारत की कृषि संबंधी समस्या
गौरतलब है कि नागपुर अधिवेशन में सोवियत संघ की आधारभूत संयुक्त सहकारी कृषि व्यवस्था को लागू करने का प्रावधान किया गया था। चरण सिंह ने प्रबल ढंग से अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि सोवियत प्रकार की सासामूहिक कृषि भारत में सरासर अनुपयुक्त‚ अवांछनीय और असाध्य है। दरअसल‚ कांग्रेस ने नागपुर प्रस्ताव में भारत की कृषि संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए बड़े पैमाने पर सहकारी कृषिक्षेत्रों के निर्माण को अपना मुख्य उद्देश्य घोषित किया।
औद्योगीकरण की नीति
'देश की खुशहाली का रास्ता गांवों के खेतों और खिलहानों से होकर गुजरता है।' यह नारा उनका ही दिया हुआ है। वैचारिक तौर पर चरण सिंह किसी दक्षिणपंथी या वामपंथी विचारधारा से बंधे हुए नहीं थे। कृषि सुधारों को अहमियत देने की वजह से ही वे उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि समूचे भारत में किसानों व काश्तकारों के मसीहा के तौर पर पहचाने गए। वे गहन औद्योगीकरण की नीति के मुखर विरोधी थे‚ चरण सिंह की वैकल्पिक आÌथक योजना आमतौर पर खेती-किसानी को और मुख्यतः मझोले किसानों व खेतिहरों को लाभ देनी वाली है।
आर्थिक सशक्तिकरण
वे 'पूंजीवादी खेती' के एकदम खिलाफ थे। स्पष्ट तौर पर उनका कहना था-'जो जमीन को जोते-बोए‚ वह जमीन का मालिक है।' किंतु स्थिति यह है कि आजीवन अपनी जमीन पर रहने वाले कृषक जमीन का संपति की भांति उपयोग नहीं कर पाते। स्वामित्व योजना के अंतर्गत देश के 6 लाख गांवों में किसानों व खेतिहरों को उनकी रहवासी भूमि का मालिकाना हक देकर आर्थिक सशक्तिकरण की मुहिम को तेज किया जाना बेहद जरूरी है। देश के 75 प्रतिशत से अधिक किसानों के पास अपनी आजीविका चलाने के लिए पर्याप्त कृषि भूमि नहीं है‚ उनके लिए गैरकृषि विकल्प खोजने अति आवश्यक हैं। परंपरागत फसलों के उत्पादों के अलावा फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
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