न्यायिक सुधार समाजहित व राष्ट्रहित में अनिवार्य -आर के पाण्डेय एडवोकेट

 


           बाल अपराध को लेकर दोहरा चरित्र कब तक ? 


                   Photo: - R.K Panday

प्रयागराज। यह न सिर्फ दुःखद बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की असफलता भी है कि स्वतन्त्र हिंदुस्तान के 75 वर्ष पूरे होने पर भी हम न्यायिक व्यवस्था को सर्वकालिक, सार्वभौमिक व सर्वग्राही नही बना सके जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है चाय की दुकानों, ढाबों व रियल्टी शो में काम कर रहे नाबालिग बच्चों पर असहाय बाल श्रम कानून। इसीलिए आज समाजहित व राष्ट्रहित में न्यायिक सुधार अत्यंत अनिवार्य आवश्यकता है।

   जानकारी के अनुसार न्यायिक  सुधार पर  अपनी बात मीडिया के समक्ष रखते हुए पीडब्ल्यूएस प्रमुख आर के पाण्डेय एडवोकेट (हाई कोर्ट इलाहाबाद) ने बताया कि चाय की दुकान पर झूठे बर्तन साफ कर घर चलाने वाला छोटू का काम बाल अपराध है और रियलटी शो में बच्चों का मानसिक और शारीरिक शोषण करके लाखों रुपए कमाना चैनल, प्रोड्यूसर और मां बाप के लिए अपराध नही है। बाल अपराध को लेकर सरकार और समाज का यह दोहरा चरित्र चिंताजनक है। चाय की दुकान से लेकर रियलिटी शो तक दोनों स्थितियों में कानूनी तौर पर भी न्याय नही मिल पाता है। बाल मजदूरी रोकने के लिए सरकारी मशीनरी केवल कोरम पूरा करती है। ऐसे बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुविधाओं के लिए जितनी जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की उससे अधिक समाज और परिवार की है। लोकप्रियता और आर्थिक स्वार्थ सिद्ध करने के लिए प्रोडक्शन हाउस बच्चों से उनका बचपन छीन रहे है। सरकार को ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए एक निश्चित आयु निर्धारण के साथ अनुपालन कराने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। साथ ही समाज और परिवार को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।

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