अलीगढ़, 17 अक्टूबरः भारत के महान समाज सुधारक तथा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खां के 204वें जन्म दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित आनलाइन सर सैयद डे समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि तथा भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश जस्टिस श्री तीरथ सिंह ठाकुर ने कहा कि इतिहास में बहुत कम लोगों ने रूढ़िवादिता तथा अंध विश्वास से लोगो को बाहर निकालने में जीत हासिल की है और ऐसे ही कुछ प्रबुद्ध विचारकों में सर सैयद अहमद खान का नाम शामिल है।
श्री ठाकुर ने कहा कि सर सैयद का एक सिविल सोसाइटी का विचार, कई प्रकार की विसंगतियों से ग्रस्त उस समय के भारतीय समाज में जागरूकता उत्पन्न करने के उनके प्रयास, धर्मनिर्पेक्षता पर आधारित उनकी सोच और साम्राज्यवादी आधुनिकता के विरूद्ध एक स्वदेसी आधुनिकता का उनका माडल आज के उत्तर आधुनिक विश्व में भी हमारे लिये उतना ही प्रासांगिक है जितना तब था।
उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब सभी देश परमाणु हथियार रखने की होड़ में लगे हैं जो संभावित रूप से लाखों लोगों की मृत्यु का करण बन सकते हैं और प्राकृतिक पर्यावरण और भविष्य की पीढ़ियों के जीवन को दीर्घकालिक विनाश से प्रभावित कर सकते हैं, ऐसे में सर सैयद का शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संदेश आज पहले से कहीं अधिक अर्थपूर्ण और प्रासांगिक है।
पूर्व मुख्य न्यायधीश ने इस बात पर जोर दिया कि एएमयू इस दुनिया को जीने के लिये एक बेहतर स्थान बनाने के लिए विविधता और समावेश की सकारात्मक भूमिका निभा रहा है जिसे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वीकार करते हुए एएमयू को ‘मिनी इंडिया’ की संज्ञा दी थी।
उन्होंने कहा कि सर सैयद हिंदू मुस्लिम एकता के महान चौंपियन थे। 27 जनवरी, 1884 को गुरदासपुर में एक बड़ी सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि ‘हे हिंदुओ और मुसलमानो, क्या आप भारत के अलावा किसी और देश से सम्बन्ध रखते हैं? क्या आप इसी मिट्टी पर नहीं रहते और क्या आप इसके नीचे दबाये नहीं जाते हैं या इसके घाटों पर ही आपका अंतिम संस्कार नहीं किया जाता? यदि आप इस भूमि पर जीते और मरते हैं, तो ध्यान रखें कि ‘हिंदू’ और ‘मुसलमान’ एक धार्मिक शब्द हैं, इस देश में रहने वाले सभी हिंदू, मुस्लिम और ईसाई एक राष्ट्र हैं’।
उन्होंने कहा कि सर सैयद के धर्मनिर्पेक्षता और समावेशिता के विचार एएमयू के काम करने और संचालन के तरीके में प्रतिबिंबित होते हैं।
मुख्य अतिथि ने कहा कि ‘रामायण, गीता और अन्य धर्मग्रंथों के कुछ बहुत ही दुर्लभ और पुराने अनुवाद एएमयू में संरक्षित हैं और यह विश्वविद्यालय देश और दुनिया के सभी धार्मिक समुदायों के छात्रों को आकर्षित करता है’।
सर सैयद के बहुमुखी व्यक्तित्व को याद करते हुए श्री तीरथ सिंह ठाकुर ने कहा कि जिगर मुरादाबादी की पंक्तियां ‘जान कर मिनजुमला-ए-खासान-ए-मैखाना मुझे, मुद्दतों रोया करेंगें जाम-ओ-पैमाना मुझे’ इस बात को शानदार ढंग से वर्णित करती हैं कि कैसे सर सैयद को वास्तव में मुसलमानों और हिंदुओं दोनों के द्वारा याद किया जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि सर सैयद ने सोचा था कि आधुनिक शिक्षा सभी बीमारियों का इलाज है और उन्होंने अज्ञानता को सभी प्रकार की सामाजिक बुराइयों की जननी के रूप में वर्णित किया और इसके सुधार के लिये कार्य किये। उन्होंने 1864 में साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना की, 1866 में अलीगढ़ इंस्टीटयूट गजट लान्च किया और तहज़ीबुल अख़लाक़ नामक पत्रिका निकाली। अंततः 1877 में एमएओ कालेज की स्थापना की जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बन गया।
उन्होंने कहा कि आधुनिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक सोच के निहितार्थ के साथ सर सैयद ने भारतीयों की नियति को बदलने के लिए एक रणनीति तैयार की। उनकी शिक्षा की अवधारणा समावेशी थी और उनका दृढ़ विश्वास था कि भारतीय सशक्तिकरण के पथ पर तब तक नहीं चल सकते जब तक वे अपने स्वयं के शिक्षण संस्थानों का निर्माण नहीं करते।
उन्होंने आगे कहा कि यह दिन आत्म विश्लेषण, आत्मनिरीक्षण और भारत के मूल्यों के प्रति विश्वास को समर्पित है। यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि जिस संस्था की उन्होंने स्थापना की थी वह उनकी उम्मीदों पर खरी उतरी है और मैं इस अवसर पर कुलपति, शिक्षकों, छात्रों और पूर्व छात्रों को उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए बधाई देता हूं।
मानद् अतिथि प्रिंस डा क़ायदजोहर इज़ुद्दीन (अध्यक्ष, सैफी अस्पताल ट्रस्ट और सैफी बुरहानी अपलिफ्टमेंट ट्रस्ट) ने इस बात पर जोर दिया कि इस्लामी परंपरा के अनुसार, ईश्वर ने जो पहली चीज़ बनाई, वह कलम थी और फिर उन्होंने इसे सभी चीजों का भाग्य लिखने की आज्ञा दी। उन्होंने आगे कहा कि कलम बुद्धि और ईश्वर ने इसे जो ज्ञान दिया है, उसका प्रतिनिधित्व करता है और हमें लेखन और ज्ञान की शक्ति को गले लगाना चाहिए।
प्रिंस डा कायदजोहर ने एएमयू के छात्रों को नवीन विचारों और नवाचार के साथ अपना भाग्य खुद लिखने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि नियति को इच्छा शक्ति से बदला जा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि अपना भाग्य खुद कैसे बनाया जाए। इसके लिये सपने देखने, योजना बनाने, कार्य करने और अपनी खुद की दृष्टि बनाने की जरूरत है। मानद अतिथि ने कहा कि समाज में महत्वपूर्ण जगह बनाने के लिए दूरदर्शी और उद्यमी बनें।
प्रिंस डाक्टर क़ायदजोहर ने बताया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलाधिपति, डा. सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन एएमयू के छात्रों, शिक्षकों और विश्वविद्यालय समुदाय के स्वास्थ्य और भलाई के लिए इस उम्मीद के साथ प्रार्थना करते रहते हैं कि हम सभी सर सैयद अहमद खान के सपने को साकार करने के लिए काम करते रहेंगे।
स्वागत भाषण में, एएमयू के कुलपति, प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि सर सैयद, एक बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे जिनके कार्यों ने 19वीं सदी के उत्तरार्ध के दौरान इतिहास को बदल दिया। इस युग को कई प्रकार की उथल-पुथल से जाना जाता है। 1857 में विद्रोह को विफल कर दिया गया था, मध्यकालीन सामंती व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी थी और इसके साथ ही आर्थिक व्यवस्था चरमराई हुई थी। इसी बीच, असाधारण प्रतिभा, व्यापक ज्ञान, स्पष्ट दृष्टि और दूरदर्शिता वाले व्यक्ति, सर सैयद अहमद खान ने देशवासियों का मार्गदर्शन किया।
उन्होंने कहा कि सर सैयद के एजेंडे में शिक्षा को सदा वरीयता प्राप्त रही। 26 मई 1883 को पटना में दिए गए भाषण में सर सैयद ने कहा था कि ‘यह दुनिया के सभी राष्ट्रों और महान संतों का स्पष्ट निर्णय है कि राष्ट्रीय प्रगति लोगों की शिक्षा और प्रशिक्षण पर निर्भर करती है। इसलिए, यदि हम अपने राष्ट्र की समृद्धि और विकास चाहते हैं तो हमें अपने लोगों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में शिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के लिए प्रयास करना चाहिए’।
प्रोफेसर मंसूर ने जोर देकर कहा कि सर सैयद ने आधुनिक शिक्षा के विचार को समानता, तर्कवाद और सुधारों के साथ जोड़ा था। एएमयू का अग्रदूत एमएओ कालेज समानता के लिए खड़ा हुआ था और आज भी एएमयू अवसर की समानता और सामाजिक बराबरी का प्रतीक है। जाति, रंग या पंथ के आधार पर अंतर के बिना इसके दरवाजे सभी के लिए खुले हैं।
कुलपति ने कहा कि सर सैयद ने साइंटिफिक सोसाइटी की स्थापना की और अलीगढ़ गजट और तहज़ीबुल अख़लाक़ शुरू किया। इन पत्रिकाओं के लेखन ने कई भ्रांतियों, अंधविश्वासों और लोगों के मन में व्याप्त पूर्वाग्रहों को भी तोड़ा। वर्तमान परिदृश्य में, सर सैयद की व्यावहारिक दृष्टि, पुनर्जागरण की भावना और धर्म को समझने की दिशा में एक नया अभिविन्यास समय की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि एएमयू अपनी स्थापना के बाद से लगातार प्रगति कर रहा है और यह गर्व की बात है कि विश्वविद्यालय को आज विभिन्न रैंकिंग एजेंसियों द्वारा शीर्ष भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में स्थान दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि गत कुछ वर्षों में, खाद्य प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में दो नए बी.टेक पाठ्यक्रम, डेटा विज्ञान में मास्टर कार्यक्रम, साइबर सुरक्षा और डिजिटल फोरेंसिक सहित कई नए पाठ्यक्रम शुरू किये गये हैं। यूनानी चिकित्सा के चार क्षेत्रों में एमडी, एमए (स्ट्रेटजिक स्टडीज़) और एम.सीएच (न्यूरोसर्जरी) के अतिरिक्त बीएससी नर्सिंग, बीएससी पैरामेडिकल साइंसेज तथा डीएम (कार्डियोलोजी) भी प्रारंभ किये गये हैं। इसके अतिरिक्त आशा है कि जल्द ही एमबीबीएस सीटों की संख्या 150 से बढ़ाकर 200 कर दी जाएगी।
प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि कोविड महामारी के बावजूद दो नए कालेज - कालेज आफ नर्सिंग तथा कालेज आफ पैरामेडिकल साइंसेज, कार्डियोलोजी विभाग और तीन केंद्र स्थापित किए गए हैं जिनमें खाद्य प्रौद्योगिकी केंद्र, कृत्रिम बुद्धिमत्ता केन्द्र और हरित और नवीकरणीय ऊर्जा से सम्बन्धित केन्द्र शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कालेज के बुनियादी चिकित्सा ढांचे को कोविड की तीसरी लहर की आशंका के दृष्टिगत चुस्त दुरस्त किया गया है।
मुख्य अतिथि, पूर्व मुख्य न्यायधीश श्री तीरथ सिंह ठाकुर ने लंदन विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार और दक्षिण एशिया के इतिहास के प्रोफेसर, डा. फ्रांसिस क्रिस्टोफर रोलैंड राबिन्सन और प्रख्यात भारतीय सिद्धांतकार, पद्म भूषण और साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष, प्रो गोपी चंद नारंग को क्रमशः अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय श्रेणियों में सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित किया।
प्रोफेसर फ्रांसिस राबिन्सन को प्रशस्ति पत्र और दो लाख रुपये का नकद पुरस्कार से सम्मानित किया गया जबकि प्रोफेसर गोपी चंद नारंग को प्रशस्ति पत्र के साथ एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया।
अंतर्राष्ट्रीय श्रेणी में सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार प्राप्त करते हुए प्रोफेसर फ्रांसिस राबिन्सन ने कहा कि एएमयू, जो यूपी के मुसलमानों द्वारा बनाई गई एक महान संस्था है, जिसका इतिहास वह पचास वर्षों से पढ़ रहे हैं, से सर सैयद अंतर्राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार प्राप्त करना एक सम्मान की बात है। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है कि आपने मेरे काम को पढ़ा, समझा और महत्व दिया है। यह पुरस्कार सर सैयद अहमद खान के नाम से जुड़ा होने के कारण भी सम्मान जनक है। मैं सर सैयद की उनके नेतृत्व, साहस और दृढ़ संकल्प के लिए लंबे समय से प्रशंसा करता रहा हूं।
एक इतिहासकार के रूप में अपने काम की व्याख्या करते हुए प्रोफेसर फ्रांसिस राबिन्सन ने जोर देकर कहा कि यह पता लगाना कि किसी अन्य समय में किसी अन्य स्थान पर मानव होना क्या मायने रखता है तथा इस प्रक्रिया में उन लोगों के प्रति सम्मान रखना जिन्हें मैं पढ़ रहा हूं, कैसा है, मेरी रूचि का मूल विषय है।
उन्होंने कहा कि यूपी के मुसलमानों के संदर्भ में मुस्लिम राजनीति का उदय, उन्नीसवीं शताब्दी से प्रिंट को व्यापक रूप से अपनाना और धर्म और राजनीति पर इसका प्रमुख प्रभाव, धार्मिक परिवर्तन के पहलू, उनमें से ‘प्रोटेस्टेंट’ इस्लाम के स्वरूपों का उदय, धार्मिक परिवर्तन और आधुनिकता के स्वरूपों का विकास, जैसे व्यक्तिवाद; और उलेमा की दुनिया आदि पर मैंने गहनता से अध्ययन किया है।
पुरस्कार के लिए कुलपति को धन्यवाद देते हुए प्रोफेसर फ्रांसिस राबिन्सन ने कहा कि यह पुरस्कार जिस काम को मान्यता देता है वह आंशिक रूप से मेरा ही नहीं बल्कि यूपी के मुसलमानों का भी है, जिनमें से कई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से जुड़े हैं।
राष्ट्रीय श्रेणी में सर सैयद उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित, प्रोफेसर गोपी चंद नारंग ने कहा कि सर सैयद, मुगलों के पतन और ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ आने वाली एक भयानक दिल्ली में कुलीन वर्ग में पैदा हुए, शहर के सांस्कृतिक धरोहर के उदार प्रभाव के तहत बड़े हुए, लेकिन शिक्षा के माध्यम से सुधार लाने के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया।
उन्होंने कहा कि सर सैयद चाहते थे कि भारतीय आधुनिक विज्ञान में रूचि लें और 1869-70 में इंग्लैंड की यात्रा पर आक्सफ़ोर्ड और कैम्ब्रिज के दौरे से वे इतने प्रभावित हुए कि वे उसी मॉडल पर एक संस्थान स्थापित करना चाहते थे।
उन्होंने कहा कि सर सैयद ने कहा था कि ‘भारत एक खूबसूरत दुल्हन है और हिंदू और मुसलमान उसकी दो आंखें हैं। अगर उनमें से एक खो जाए तो यह खूबसूरत दुल्हन बदसूरत हो जाएगी’।
प्रोफेसर नारंग ने जोर देकर कहा कि “सर सैयद का जीवन एक खुली किताब था और उन्होंने सभी धर्मों के लोगों के लिए एमएओ कालेज के दरवाजे खुले रखे। उन्होंने हमेशा कहा कि हिंदुओं और मुसलमानों ने एक-दूसरे से संस्कृति को उधार लिया और अपनाया है”।
इस अवसर पर गणित विभाग के प्रतिष्ठित गणितज्ञ प्रोफेसर कमरुल हसन अंसारी को गणित के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए विज्ञान श्रेणी में ‘उत्कृष्ट शोधकर्ता पुरस्कार’ 2021 से सम्मानित किया गया। जबकि डा. मोहम्मद ज़ैन खान (सहायक प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग) और डा. मोहम्मद तारिक (सहायक प्रोफेसर, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग) को विज्ञान श्रेणी में ‘यंग रिसर्चर्स अवार्ड’ से पुरस्कृत किया गया। डा. मोहम्मद अरशद बारी (सहायक प्रोफेसर, शारीरिक शिक्षा विभाग) को मानविकी और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में ‘यंग रिसर्चर्स अवार्ड’ दिया गया।
अमुवि के बीएएलएलबी के छात्र, रज़ा हैदर जैदी ने जनसंपर्क कार्यालय द्वारा ‘सर सैयद इंटरफेथ डायलाग के नायक’ विषय पर आयोजित अखिल भारतीय निबंध लेखन प्रतियोगिता में 25,000 रुपये के नकद पुरस्कार पर आधारित प्रथम पुरस्कार जीता।
दूसरा पुरस्कार राजिब शेख (बीए, दारुल हुदा इस्लामिक यूनिवर्सिटी, वेस्ट बंगाल कैंपस, बीरभूम, वेस्ट बंगाल) को मिला जिन्होंने 15,000 रुपये का नकद पुरस्कार जीता, जबकि अब्राहम हादी (एमए, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) ने इस राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में तीसरा स्थान प्राप्त किया जिसके अंतर्गत उन्हें 10,000/- रुपये का नकद पुरस्कार प्रात किया।
विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले आठ अन्य प्रतिभागियों को 5,000 रुपये की पुरस्कार राशि के साथ राज्य टापर पुरस्कार दिए गए जबकि दो राज्यों के दो प्रतिभागियों को संयुक्त रूप से साझा पुरस्कार राशि के साथ राज्य टापर घोषित किया गया।
स्टेट टापर्स में मोहम्मद यासिर जमाल किदवई (बीएससी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, यूपी), अनिर्बान नंदा (पीएचडी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बाम्बे, महाराष्ट्र), श्रींजय रूप सरबधिकारी (बीएससी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलाजी, सिमहट, नादिया, पश्चिम बंगाल), मरियम मकसूद (पीएचडी, श्री वेंकटेश्वर फार्मेसी कालेज, हाईटेक सिटी रोड, हैदराबाद, तेलंगाना), वंशिका बहनाल (शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलाजी, जम्मू एंड कश्मीर तथा शादाब आलम (बीयूएमएस, आयुर्वेदिक एंड यूनानी तिब्बिया कालेज, करोल बाग, नई दिल्ली) शामिल हैं।
दिया आमना (बीए, पीएसएमओ कालेज, तिरुरंगडी, मालप्पुरम, केरल) और मोहम्मद आशीर (बीए, जामिया मदीना, थुन्नूर मरकज़ गार्डन, केरल) ने केरल राज्य से पुरस्कार साझा किया, जबकि चेन्नासमुद्रम चेन्ना केसावुलु और मायदुकुरु पूजा (अन्नमाचार्य कालेज आफ़ फार्मेसी, राजम्पेट, कडपा के डी फार्मा छात्रों) ने आंध्र प्रदेश से पुरस्कार साझा किया।
इस अवसर पर प्रोफेसर नाजिया हसन (अंग्रेजी विभाग, वीमेन्स कालिज) और प्रोफेसर मोहम्मद जफर महफूज नोमानी (कानून विभाग) और छात्रों सिदरा नूर (बीए अंग्रेजी) और यासिर अली खान (पीएचडी) ने सर सैयद अहमद खान की शिक्षा, दर्शन, कार्य और मिशन पर प्रकाश डाला।
प्रोफेसर (हकीम) सैयद ज़िल्लुर रहमान (विश्वविद्यालय कोषाध्यक्ष), श्री मुजीब उल्लाह जुबेरी (परीक्षा नियंत्रक), प्रोफेसर मोहम्मद मोहसिन खान (वित्त अधिकारी), प्रोफेसर मोहम्मद वसीम अली (प्राक्टर), श्री एस.एम. सुरूर अतहर (कार्यवाहक रजिस्ट्रार) और अन्य गणमान्य व्यक्ति समेत विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं छात्र बड़ी संख्या में आनलाइन समारोह में शामिल हुए।
प्रो मुजाहिद बेग (डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर) ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया; जबकि डा फायजा अब्बासी और डा शारिक अकील ने कार्यक्रम का संचालन किया।
इस अवसर पर दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया जिनमें प्रोफेसर आसिम सिद्दीकी, डाक्टर राहत अबरार तथा डाक्टर फायजा अब्बासी द्वारा संपादित ‘ए हिस्ट्री आफ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (1920-2020) -ए सेंटेनरी पब्लिकेशन’ तथा हुमा खलील की ‘द एल्योर ऑफ अलीगढ़ः ए पोएटिक जर्नी इन द यूनिवर्सिटी सिटी’ शामिल हैं।
फज्र की नमाज के बाद विश्वविद्यालय की मस्जिद में कुरान पाठ किया गया जिसके उपरान्त कुलपति, प्रोफेसर मंसूर ने विश्वविद्यालय के अन्य शिक्षकों और पदाधिकारियों के साथ ‘चादर पोशी’ के पारंपरिक अनुष्ठान के बाद सर सैयद के मजार (कब्र) पर पुष्पांजलि अर्पित की।
बाद में कुलपति ने सर सैयद हाउस में मौलाना आजाद पुस्तकालय और सर सैयद अकादमी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित सर सैयद अहमद खान से संबंधित पुस्तकों और तस्वीरों की आनलाइन प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया।
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