मां और बहन के खोने के बाद भी देते रहे कोविड के मरीजों को सेवा

       कोरोना को मात देकर लौटे : आकस्मिक चिकित्सा अधिकारी


          कोरोना पॉजिटिव होते हुए भी निभाई अपनी ड्यूटी




                           Photo:- डॉ अंकुर अग्रवाल


 अलीगढ़ । आकस्मिक चिकित्सा अधिकारी डॉ अंकुर अग्रवाल पंडित दीनदयाल उपाध्याय जिला संयुक्त चिकित्सालय में तैनात हैं वह कोविड के समय में उन्होंने अपनी ड्यूटी बहुत ही खूबी तरीके से निभाई है। कोरोना काल के चलते अपनी ड्यूटी के दौरान वह कोविड अस्पताल में कोरोना वायरस से ग्रसित मरीजों का इलाज कर रहे थे। कोविड के मरीजों का इलाज करते-करते उन्हें पता भी नहीं चला कि उन्हें भी कोरोना हो गया है, लेकिन डॉ. अंकुर अग्रवाल उसके बाद भी अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहे। 


कोरोनावायरस की दूसरी लहर में डॉक्टर अंकुर अग्रवाल की तैनाती कोविड वार्ड में चल रही थी। इस दौरान उन्होंने मरीजों की अच्छे से देखभाल की। इस बीच उनकी मां और बहन भी कोरोनावायरस से पीड़ित हो गई। दोनों की स्थिति गंभीर होने के बाद भी डॉ अंकुर ने हार नहीं मानी। फिर भी वह दिन-रात मरीजों को सेवा देते रहे और अपने कर्तव्य को उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से निभाया है। पहले अस्पताल में ड्यूटी करते शिफ्ट पूरी होने के बाद फिर उसी आईसीयू में मां और बहन के साथ-साथ अन्य मरीजों की भी देखभाल करते रहे। मरीजों में मां और बहन की छवि महसूस कर जान बचाने का प्रयास करते रहे। लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। मां और बहन के निधन होने के बाद भी डॉ अंकुर तीसरे दिन अन्य मरीजों की सेवा में लौट आए थे ।


पंडित दीनदयाल उपाध्याय संयुक्त चिकित्सालय में शुरुआती समय से ही डॉ. अंकुर अग्रवाल कार्य कर रहे हैं। शहर के जनकपुरी मोहल्ला में रहते हैं। 26 अप्रैल को उनकी मां 69 वर्षीय कुसुम अग्रवाल कोरोना वायरस से संक्रमित हो गई थी। तबियत ज्यादा खराब होने पर उन्हें उसी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जिसमें डॉ. अंकुर अग्रवाल ड्यूटी कर रहे थे। उसी समय डॉ. अंकुर भी आईसीयू में ड्यूटी कर रहे थे। डॉ. अंकुर अग्रवाल एवं उनके साथ काम कर रही पूरी टीम कुसुम अग्रवाल को बचाने का प्रयास करती रही थी। 1 मई 2021 को डॉ अंकुर की मां कुसुम अग्रवाल की मृत्यु डॉक्टर अंकुर की आंखों के सामने हो गई थी। डॉ. अंकुर अग्रवाल इस घटना से उबरते तब तक स्वर्ण जयंतीनगर निवासी बहन मनीषा अग्रवाल को 19 अप्रैल को कोरोना वायरस की चपेट में आ गई । 21 दिन के बाद भी मनीषा अग्रवाल को भी डॉक्टर नहीं बचा पाए। जबकि 10 मई को उनकी मृत्यु हो गई थी। दस दिन के अंतराल पर आंखो के सामने मां और बहन की मृत्यु से डॉ. अंकुर ही नहीं बल्कि उनके साथ काम कर रहे डॉक्टर एवं स्टाफ अंदर तक हिल गए।  वक्त भी बेहद नाजुक था और अप्रैल व मई के महीने में कोरोना की दूसरी लहर खतरनाक रूप में सामने थी। 


आकस्मिक चिकित्सा अधिकारी डॉ अंकुर अग्रवाल ने बताया ड्यूटी के दौरान कोविड के मरीजों को सेवा देते समय उनकी मां और बहन को कोरोना संक्रमित होने से पहले अगस्त माह में कोविड हुआ था। मुझे 2 दिन से कोविड के लक्षण लग रहे थे, बुखार और थकान भी काफी महसूस हो रही थी। तभै मैंने 29 अगस्त को अपनी कोविड की जांच कराई तब रिपोर्ट पॉजिटिव आई उसके बाद 14 सितंबर को जब मैंने अपनी कोविड की जांच कराई ‌ तब रिपोर्ट नेगेटिव थी । कोविड के दौरान मैंने 20 दिन होम आईसोलेशन में रहकर समय से कोरोना की मेडिसिन भी लिया। ठीक होने के बाद 19 सितंबर को दोबारा से ड्यूटी ज्वाइन की करके कोरोना पर जंग जीत हासिल करके डॉ अंकुर ने योद्धाओं के रूप में एक मिसाल पैदा की है ।

 

डॉ. अंकुर कहते हैं कि नजर के सामने मां और बहन को जाते हुए देखा। किसी भी मरीज की मौत होती है तो मन रोता है। जिस मरीज के बचने की उमीद नहीं होती और वह ठीक हो जाता है तो खुशी होती है। कोई डॉक्टर नहीं चाहता कि उसके सामने मरीज की मौत हो। पब्लिक को भी इस बात को समझना चाहिए और डॉक्टर का सपोर्ट करना चाहिए।

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