बड़े पत्रकार थे लेकिन उससे बड़े सहृदय और मददगार इन्सान थे

 


अजीत अंजुम की फेसबुक पेज से:-

मन तो इससे पहले भी कई अवसरों पर व्यथित और विचलित हुआ लेकिन आज की तरह अग्रज शेषनारायण सिंह जी के निधन के बाद दिल्ली में हमने खुद को इतना असहाय और अनाथ शायद ही कभी महसूस किया हो! शेष जी हमारे गार्जियन, हमारी ताकत थे। बड़े पत्रकार थे लेकिन उससे बड़े सहृदय और मददगार इन्सान थे। उनका बड़प्पन ही था कि हमारे बारे में सार्वजनिक मंचों पर और सोशल मीडिया पर भी अक्सर कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण बोल जाते, लिख जाते और हमारे विरोध जताने पर डांट देते, 'चोप्प रहिए। मुझे मालूम है कि किसके बारे में क्या लिखना और बोलना है।' हम दोनों देशबंधु अखबार से जुड़े रहे। वह हमारे राजनीतिक संपादक थे।

प्रेस क्लब में हों या किसी महंगे होटल-रेस्तरां में, मुझे याद नहीं कि खाने की टेबल पर उन्होंने मुझे कभी बिल भुगतान करने की छूट दी होगी। यह बताने पर भी कि इतना सक्षम और समर्थ तो हूं ही कि इस बिल का भुगतान कर सकूं, वह सार्वजनिक तौर पर भी डांट देते, 'आप मुझसे छोटे हैं, अनुज हैं, वही रहिए।' किसी राजनीतिक विमर्श में मतभेद होने पर (ऐसा बहुत कम ही होता था) वह हमारी बात मान लेते थे। कहते थे, 'अब जयशंकर कह रहे हैं तो ठीक ही कह रहे होंगे।' मेरे बच्चों को भी वह उसी शिद्दत से प्यार करते थे जैसे कोई गार्जियन अपने भतीजे-भतीजियों से करते हैं। अब यह सब कौन करेगा! कौन हमें स्नेहिल झिड़कियां देगा। कौन हमारे हर संघर्ष में मजबूत दीवार की तरह हमें ताकत देगा।

शेष जी, अभी हम सबको आपके गार्जियनशिप और मार्गदर्शन की और बहुत आवश्यकता थी। आप हमारी यादों में पूर्ववत अपनी चिर परिचित मुस्कराहट और झिड़कियों के साथ रहेंगे, हमेशा। नतशीष नमन। अश्रुपूरित आदरांजलि।

नोट: करीब ढाई साल पहले, दिसंबर 2019 के पहले सप्ताह में हम कुछ पुराने अभिन्न मित्रों का जमावड़ा ग्रेटर नोएडा के संवाद अपार्टमेंट में स्थित शेष जी के निवास पर हुआ था। हम सबके प्रिय चंचल कुमार भी आए थे। रात्रिभोज उनके ही सम्मान में हुआ था। देर रात तक गप शप, पुराने किस्सों, संस्मरणों का दौर चलता रहा। बाद में विदाई के समय संवाद अपार्टमेंट के लाॅन में यह तस्वीर भी ली गई थी। इसमें बाएं से अजित अंजुम, शीतल  सिंह, आलोक जोशी, शेष जी, कुमार नरेंद्र सिंह, चंचल जी, अनूप भटनागर, कमरवहीद नकवी और सबसे दायीं ओर हम दिख रहे हैं।

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