बांग्लादेश और भारत के सीमावर्ती इलाकों में बिना किसी पहचान और नागरिकता के करीब 9 लाख बांग्लादेशी मूल के नागिरक पर मौजूद हैं।

सीमावर्ती इलाकों में रह रहे 9 लाख बांग्‍लादेशी किसी देश के नागरिक नहीं: UN रिपोर्ट 

बेंगलुरू। यूएन की ही सहयोगी संस्‍था  इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑन माइग्रेंशन (International Organization for Migration) की एक रिपोर्ट में बांग्लादेशी मूल के नागरिकों को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में सबसे अधिक राज्‍यविहीन (Stateless Peoples) बांग्‍लादेश में आते हैं।
रिपोर्ट कहती है कि बांग्लादेश और भारत के सीमावर्ती इलाकों में बिना किसी पहचान और नागरिकता के करीब 9 लाख बांग्लादेशी मूल के नागिरक पर मौजूद हैं। माना जा रहा है कि सीमावर्ती इलाकों में मौजूद ऐसे बांग्लादेशी सीमावर्ती देशों में अवैध घुसपैठ करते हैं। निः संदेह राज्‍यविहीन बांग्लादेशियों को लेकर यह रिपोर्ट काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अभी तक भारत में छुपकर रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर कोई माकूल आंकड़ा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 में पूरी दुनिया में राज्‍य विहीन (stateless persons) लोगों की संख्‍या 39 लाख के करीब पहुंच चुकी है, जिसमें बांग्‍लादेशी मूल के सबसे अधिक करीब 9 लाख लोग थे। बांग्लादेश के बाद कोट द आइवोरे (Côte d'Ivoire) के करीब 7 लाख और फिर म्‍यांमार के 6 लाख 20 हजार लोग राज्यविहीन नागरिकों में शामिल थे।
दरअसल, राज्‍यविहीन उन्‍हें कहा जाता है, जिन्‍हें किसी भी देश की नागरिकता प्राप्‍त नहीं होती है। ऐसे लोग ज्‍यादातर सीमावर्ती इलाकों में रहते हैं और कई बार नागरिक सीमा उल्‍लंघन के मामले में भी फंसते हैं। बांग्‍लादेश की ही बात की जाए तो भारत और बांग्‍लादेश की सीमा पर रहने वाले ज्‍यादातर लोग दोनों में से किसी भी देश के नागरिक नहीं हैं। कई बार यह भी देखा गया है कि ऐसे राज्यविहीन लोग रोजी-रोटी के लिए एक दूसरे की सीमा में प्रवेश भी कर जाते हैं।
गौरतलब है वर्ष 2015 में भारत और बांग्‍लादेश के बीच एक सीमा को लेकर एक समझौता हुआ था, जिसके बाद 17 हजार एकड़ क्षेत्र बांग्‍लोदश को सौंपा गया था और बांग्‍लादेश ने करीब 7 हजार एकड़ भूमि भारत को सौंपी थी। इस समझौते के बाद सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले हजारों लोगों को उनके मन मुताबिक नागरिकता चुनने का अधिकार दिया गया था, लेकिन वर्ष 2018 में यूएन द्वारा की गई रिपोर्ट में 9 लाख राज्यविहीन बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान ने भारत में अवैध रूप से रहे लाखों बांग्लादेशी घुसपैठियों वाले मुद्दों पर मुहर लगा दी है।
गौरतलब है हाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि 2024 तक देश के सभी घुसपैठियों को बाहर कर दिया जाएगा, जिसके लिए पूरे देश में असम की तरह एनआरसी लागू करने की कवायद को अमलीजामा पहनाने की जरूरत है। संभवतः गृहमंत्री शाह पूरे देश में एनआरसी लागू करने की ओर इशारा कर रहे थे।
दिलचस्प यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी चीफ ममता बनर्जी ने एनआरसी के खिलाफ हैं, जो कभी विपक्ष में रहते हुए पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठिए को आपदा बताती थी, क्योंकि उन्हें वोटर लिस्ट में शामिल किया गया था, लेकिन पिछले एक दशक के बंगाल की सत्ता में काबिज होने के बाद ममता बनर्जी को अवैध बांग्लादेशी अपने लगने लगे हैं और बंगाल में रहे सभी बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारतीय नागरिक तक बता दिया है।
ममता बनर्जी असम एनआरसी में 19 लाख लोगों द्वारा पहचान सिद्ध नहीं कर सके लोगों को आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी पैठ बनाना चाहती हैं इसलिए वह अवैध बांग्लादेशी मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठा रही हैं ताकि बंगाल में हिंदुओं के बीच अपनी पैठ और छवि मज़बूत कर सकें, क्योंकि असम एनआरसी में बाहर हुए 19 लाख लोगों में मुस्लिम के साथ-साथ बंगाली हिंदू भी शामिल हैं।
चूंकि ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के आरोप लगाते रहे हैं, इसलिए ममता एनआरसी के विरोध के ज़रिए ऐसे आलोचकों का भी मुंह बंद करना चाहती हैं। हालांकि 2005 में ममता बनर्जी का मानना था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है और वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हो गए हैं।
अरुण जेटली ने ममता बनर्जी के उस बयान को ट्वीट भी किया. उन्होंने लिखा था, '4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने लोकसभा में कहा था कि बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है। बकौल ममता बनर्जी, मेरे पास बांग्लादेशी और भारतीय वोटर लिस्ट है, यह बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है. मैं यह जानना चाहती हूं कि आख़िर सदन में कब इस पर चर्चा होगी?
मालूम हो, म्यांमार में भगाई गई 10 लाख से ज्यादा रोहिंग्या आबादी भी किसी देश के नागरिक नहीं हैं, जो भारत में कई इलाकों में छिपकर रहने का अंदेशा है। रोहिंग्या के अलावाव थाईलैंड में 7 लाख, सीरिया में 3.6 लाख, लातविया में 2.6 लाख लोगों के पास भी किसी देश की नागरिकता नहीं हैं। यूएन के मुताबिक दुनिया में एक करोड़ लोग ऐसे हैं, जो किसी देश के नागरिक नहीं है।

आखिर भारत में कितने हैं अवैध बांग्लादेशी?

वर्ष 2016 के आखिरी में संसद में एक प्रश्न का जवाब देते हुये गृहराज्य मंत्री किरन रिजिजू ने बताया था कि उस वक्त भारत में करीब 2 करोड़ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी है। किरण रिजिजू ने आकंड़े सही है, क्योंकि करीब एक दशक पहले यानी गत 14 जुलाई, 2004 को संसद में गैर कानूनी बांग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में तत्कालीन गृह मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने बताया था कि देशभर में अलग-अलग हिस्सों में करीब 1.2 करोड़ घुसपैठिए रह रहे हैं, जिसमें से 50 लाख लोग केवल असम में रह रहे हैं। वहीं पश्चिम बंगाल को उन्होंने इस लिस्ट में सबसे ऊपर बताया था, जहां तक 57 लाख घुसपैठिए रह रहे थे।

पश्चिम बंगाल में हैं 50 लाख अवैध बांग्लादेशी!

भारत में अवैध घुसपैठिए से किसको फायदा हो रहा है, ये घुसपैठिए किसके वोट बैंक बने हुए हैं। अभी हाल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि बंगाल में तकरीबन 50 लाख मुस्लिम घुसपैठिए हैं, जिनकी पहचान की जानी है और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। बीजेपी नेता के दावे में अगर सच्चाई है तो पश्चिम बंगाल में मौजूद 50 घुसपैठियों का नाम अगर मतदाता सूची से हटा दिया गया तो सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो पार्टी होगी टीएमसी को होगा, जो एनआरसी का सबसे अधिक विरोध कर रही है और एनआरसी के लिए मरने और मारने पर उतारू हैं।

2000 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.5 करोड़ कर चुके हैं घुसपैठ

भारत सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया।

600 किमी लंबे नदी-नाले वाले सीमा रेखा से बंगाल में घुसे घुसपैठिए

भारत और बांग्लादेश के बीच 4095 किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसमें बंगाल से लगी सीमा की लंबाई 2216 किलोमीटर है। इसमें बीएसएफ की साउथ बंगाल फ्रंटियर 1145.62 किलोमीटर तक निगरानी करती है, जिसकी सीमा दक्षिण में सुंदरवन से लेकर उत्तर में दक्षिण दिनाजपुर ज़िले तक है। 367.36 किलोमीटर सीमा रेखा नदी-नाले के रूप में है, जबकि 778.36 किलोमीटर रेखा ही ज़मीन से होकर गुजरती है। पूरे बंगाल में कुल 600 किलोमीटर तक सीमा रेखा नदी-नालों के रूप में है। घुसपैठियों एवं तस्करों को सबसे ज़्यादा सुविधा नदी-नाले के कारण होती है।

वर्ष 2006 में पश्चिम बंगाल में चलाया गया था ऑपरेशन क्लीन अभियान

वर्ष 2006 में चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में रह रहे अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन क्लीन चलाया था। 23 फरवरी 2006 तक चले अभियान के बाद करीब 13 लाख नागिरकों के नाम वोटर लिस्ट से काटे गए। आशंका जताई गई थी कि 2006 में वोटर लिस्ट से हटाए गए 13 लाख अवैध बांग्लादेशी नागरिक थे।

घुसपैठियों को भगाने के लिए असम में 7 बार हुई थी NRC की कोशिश

असम में कुल सात बार एनआरसी जारी करने की कोशिशें हुईं, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह नहीं हो सका। याद कीजिए, असम में सबसे अधिक बार कांग्रेस सत्ता में रही है और वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी पहली बार असम की सत्ता में काबिज हुई है। दरअसल, 80 के दशक में असम में अवैध घुसपैठियों को असम से बाहर करने के लिए छात्रों ने आंदोलन किया था। इसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ। समझौते में कहा गया कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा।

1991 जनगणना में असम, बंगाल व पूर्वोत्तर में तेजी बढ़ी आबादी

1991 की जनगणना में सा़फ दिखा कि असम एवं पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती ज़िलों की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ी थी। एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ सीमावर्ती ज़िलों के क़रीब 17 फीसदी वोटर घुसपैठिए हैं, जो कम से कम 56 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का निर्णय करते हैं, जबकि असम की 32 प्रतिशत विधानसभा सीटों पर वे निर्णायक हालत में पहुंच गए हैं। असम में भी मुसलमानों की आबादी 1951 में 24.68 फीसदी से 2001 में 30.91 फीसदी हो गई, जबकि इस अवधि में भारत के मुसलमानों की आबादी 9.91 से बढ़कर 13.42 फीसदी दर्ज की गई थी।

ठंडे बस्ते में पड़ा है घुसपैठियों को केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी को सौंपने का प्रस्ताव

1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक के प्रस्तावों को तुरंत लागू करने की ज़रूरत बताई, जिसमें राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं पुलिस महानिदेशकों ने शिरकत की थी। इस बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि घुसपैठियों को पकड़कर उन्हें किसी केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी को सौंपा जाए, ताकि उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया आसान हो सके। इतने साल बीत जाने के बावजूद यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में पड़ा है। बीएसएफ सूत्रों के मुताबिक अभी घुसपैठियों को पकड़ कर राज्य पुलिस को सौंपा जाता है और फिर वे भारतीय जेलों की भीड़ बढ़ाते हैं।

आतंकी गतिविधियों से जुड़ा हुआ है घुसपैठ की समस्या का तार

बांग्लादेश का आतंकी संगठन हरकत-उल-जेहादी-इस्लामी (हूजी) भारत में पहले भी दर्ज़नों आतंकी हमले एवं हरक़तें करा चुका है। गृह मंत्रालय के सूत्रों ने भी स्वीकार किया है कि वह लगातार अपने कॉडर भारत भेज रहा है। बांग्लादेश के सईदपुर, रंगपुर, राजशाही, कुस्ठिया, पबना, नीतपुर, रोहनपुर, खुलना, बागेरहाट एवं सतखीरा इलाक़ों से ज़्यादातर घुसपैठिए आते हैं और इसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी खुलकर मदद करती है। बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री तपन सिकंदर ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा था कि घुसपैठ रोकने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों को ही तत्पर होना होगा और इसमें स्थानीय आबादी का भी सहयोग काफी अहम बताया था। इसके साथ ही, उन्होंने कहा था कि वोट बैंक की राजनीति बंद होनी चाहिए।
Copy:-Oneindia.com

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