लाख ईवीएम लापता होने वाली खबर पर चुनाव आयोग ने जवाब दिया है


करीब 20 लाख EVMs लापता होने की खबर को चुनाव आयोग ने खारिज किया



करीब 20 लाख EVMs लापता होने की खबर को चुनाव आयोग ने खारिज किया है. चुनाव आयोग की प्रवक्ता शेफाली शरण ने कहा है कि ‘फ्रंटलाइन’ पत्रिका की ये खबर गलत तथ्यों पर आधारित है. ये कहना कि चुनाव आयोग को कम EVMs यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन मिली हैं, सही नहीं है. मैग्जीन ने आरटीआई के जरिए हासिल जानकारी के कुछ ‘सेलेक्टिव अंश’ को ही छापा. स्टोरी में एकतरफा जानकारी दी गई है, जो गलत आकलन पर आधारित है. इस वजह से लोगों में भ्रम फैल रहा है.
और क्या कहा चुनाव आयोग की प्रवक्ता ने?
चुनाव आयोग की प्रवक्ता शेफाली शरण ने इस बाबत फ्रंटलाइन पत्रिका को बाकायदा चिट्ठी लिखी है. इसमें कहा गया है कि
‘खबर में आर्डर और सप्लाई में गड़बड़ी के आरोप लगाए गए हैं. इसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग के पास EVM को सुरक्षित रखने के कोई इंतजाम नहीं हैं. शेफाली शरण के मुताबिक ऐसा कहना पूरी तरह अनुमानों पर आधारित है. हकीकत में चुनाव आयोग एक-एक EVM को अपनी निगरानी में रखता है. यहां तक कि एक भी ईवीएम को इधर से उधर नहीं किया जा सकता है. किसी भी EVM को कहीं ले जाने के लिए चुनाव आयोग से आधिकारिक इजाजत लेनी पड़ती है. चुनाव आयोग के पास ‘ईवीएम मैनेजमेंट साफ्टवेयर’ EMS है, इसके जरिए हरेक EVM और वीवीपैट मशीन की हर वक्त मॉनीटरिंग होती है. पूरी तरह से जांची-परखी ईवीएम ही चुनाव के दौरान इस्तेमाल की जाती हैं. बाकी पीआईएल अदालत में विचाराधीन है. ज्यादा चीजें मीडिया के सामने नहीं रखी जा सकती हैं.’
Regarding the story & news reports,it is clarified that there is no truth in contention that “20 lakh EVMs are missing”. The news report is based on inaccurate & specious misinterpretation of partial facts obtained frm RTI frm multiple Public Authorities
— Sheyphali Sharan (@SpokespersonECI)
चुनाव आयोग की प्रवक्ता शेफाली शरण ने ये भी कहा कि
‘जहां तक राज्यों के चुनाव आयोगों का मसला है, तो वे पूरी तरह स्वतंत्र संवैधानिक संस्थान हैं. उनका केंद्रीय चुनाव आयोग से कोई लेना-देना नहीं है. वे स्थानीय निकायों के चुनाव वगैरह कराते हैं. किसी भी EVM में किसी सार्वजनिक कंपनी की ओर से किया गया कोई बदलाव या सुधार केंद्रीय चुनाव आयोग से ‘परे’ है.
ये कहकर चुनाव आयोग क्या संकेत दे रहा है?
चुनाव आयोग ने ये कहा है कि राज्यों के चुनाव आयोग स्वतंत्र हैं. और उनके साथ ईवीएम की खरीदारी को लेकर चुनाव आयोग ने कुछ भी नहीं कहा है. साथ ही ये भी कहा है कि किसी भी पीएसयू यानी सार्वजनिक कंपनी की ओर से किया गया सुधार या बदलाव केंद्रीय चुनाव आयोग से बिना पूछे-परखे होता है. जाहिर है चुनाव आयोग इस मामले में गेंद राज्यों के चुनाव आयोगों के पाले में डाल रहा है.
क्या लिखा है फ्रंटलाइन मैग्जीन ने?
‘द हिंदू’ ग्रुप की मैग्जीन ने एक खबर प्रकाशित की है. इसमें कहा गया है कि हैं. इस बाबत बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है. इसमें ये खुलासा हुआ कि ये वोटिंग मशीन फैक्ट्री में तो बनीं, मगर चुनाव आयोग तक नहीं पहुंचीं. फैक्ट्रियों से बनने के बाद ये वोटिंग मशीन कहां भेजी गई हैं, इस बारे में फिलहाल कुछ पता नहीं चल रहा है.
मुंबई के एक आरटीआई एक्टिविस्ट हैं मनोरंजन रॉय. फ्रंटलाइन के मुताबिक आरटीआई के जवाब में मनोरंजन रॉय को चुनाव आयोग और कंपनियों ने अलग-अलग जानकारी दी है. चुनाव आयोग ने 21 जून, 2017 को बताया कि उसने 1989-90 और 2014-15 के बीच BEL से 10,05,662 EVM प्राप्त की हैं. इसी तरह साल 1989-90 और 2016-17 के बीच ECIL से चुनाव आयोग को 10,14,644 EVM मिलीं.
एक दूसरी, आरटीआई के जवाब में BEL ने बताया कि उसने 1989-90 और 2014-15 के बीच चुनाव आयोग को कुल 19,69,932 की सप्लाई की है. और ECIL ने बताया कि उसने चुनाव आयोग को 19,44,593 ईवीएम की आपूर्ति की है. करीब 15 सालों के दौरान चुनाव आयोग को BEL से 9,64,270 EVM और ECIL से 9,29,949 EVM प्राप्त ही नहीं हुई हैं. मतलब ये है कि इन कंपनियों ने वोटिंग मशीन तो बनाई मगर उनको सप्लाई कहां किया, इसकी जानकारी नहीं है. ये पता नहीं चल रहा है कि ये ईवीएम कहां जा रही हैं।सभार :लल्लन टॉप

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