नई सदी में जिस एक घटना ने मनुष्य के जीवन को प्रभावित किया है वह है वैश्वीकरण जिसे भूमंडलीकरण भी कहा जाता है :प्रो. मंसूर

अलीगढ़ /अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के मराठी सेक्शन में आज भारतीय भाषाओं और साहित्य पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसके मुख्य अतिथि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. तारिक मंसूर थे।उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि, नई सदी में जिस एक घटना ने मनुष्य के जीवन को प्रभावित किया है वह है वैश्वीकरण जिसे भूमंडलीकरण भी कहा जाता है। भूमंडलीकरण ने दुनिया को एक वैश्विक गांव में बदल दिया है। इस बदलाव से दुनियाभर की संस्कृतियां प्रभावित हुई हैं। वैश्वीकरण के दौर में अंग्रेजी एक लिंक भाषा है फिर भी दुनिया में हिन्दुस्तान दूसरा सबसे बड़े बाज़ार की भूमिका निभा रहा है। जहां पर भाषाओं और बोलियों के बिना व्यापार कर पाना मुश्किल है।’बीज वक्ता यू. जी. सी. मानव संसाधन विकास सेन्टर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रो. अब्दुर रहीम किदवई ने कहा कि, आधुनिक दौर में टेक्नोलॉजी का बोल-बाला होने के बावजूद हमे मानवतावादी होने की भी आवश्यकता है। क्योंकि वर्तमान में व्यक्ति की कोई अहमियत नहीं है बल्कि इन्सान आज ब्राण्ड से पहचाना जाता है। परिणामतः व्यक्ति की प्रोफेशनल जिन्दगी कहीं न कहीं इन्सान की एहमियत से आगे निकल जाती है। वैश्वीकरण के दौर में मानव की प्रज्ञा की एहमियत होना चाहिए न कि उसके ब्राण्ड और नम्बर की।अतिथि के रूप में राजस्थान केन्द्रिय विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के डॉ. संदीप रणभिरकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि, ‘किराये की भाषा में ‘वाह!’ होती है लेकिन अपनी मातृभाषा में ‘आह!’ होती है। भूमण्डलीकरण के गर्भ में कहीं न कहीं बाज़ारवाद दिखाई पड़ता है। वैश्वीकरण के कारण व्यक्ति के अन्दर कुण्ठा, संत्रास, अकेलापन जैसे अनेक मनौविकार उत्पन्न हो रहे हैं। साहित्यकार समाज की नब्ज़ पर हाथ रखकर क़लम चलाता है। जो समाज के गहरे दुख व दर्द को कोरे कागज़ पर उकेर देता है। लेकिन वही पाठक उसको पढ पाता है जिसके हृदय में मानवता का भाव होता है, अन्यथा वैश्वीकरण ने मानव की संवेदनाओं को निगल लिया है। कहा जाता है कि संवेदनहीनता, संवेदनशून्यता अपने चरम पर है इसको केवल साहित्य और देसीपन ही दूर कर सकता है।’उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. मसूद अनवर अलवी ने की। उन्होनें वैश्वीकरण की खूबियों और खामियों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से एक तरफ मोबाइल में अनेक अच्छाइयाँ हैं तो दूसरी तरफ समाज के लिए बुराइयाँ भी। केवल फर्क यह पड़ता है कि किस प्रकार हमें अपने संसाधनों का इस्तेमाल करना है। हम चाहें तो इसको गलत तरीके से इस्तेमाल कर लें, चाहे सही तरीके से।कार्यक्रम का संचालन डॉ. आमिना खातून ने किया। विभाग के अध्यक्ष डा. क्रांति पाल ने अपने विचार व्यक्त किये। मुख्य संयोजक डा. ताहेर पठान ने सभी आगन्तुको का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए संगोष्ठी के ध्येय को स्पष्ट किया। उन्होंने यह विश्वास जताया कि आधुनिकता के दौर में भी भाषाओं की संवेदना के माध्यम से समाज को जोड़े रखा जा सकता है। और साथ ही साथ ‘कस्तूरी- डा. ताहेर पठान’ व ‘कश्मीरी अदब व सकाफत- डॉ. मुश्ताक अहमद जरगर’ की पुस्तकों का भी लोकार्पण हुआ। इस संगोष्ठी के स्वागत भाषण में डा. मुश्ताक अहमद जरगर ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। इस संगोष्ठी में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अलावा दूसरे विश्वविद्यालयों से पधारे अध्यापक, शोधार्थी 89 शोध आलेख पढे़ंगे।अन्त में मेहबूब हुसैन ने धन्यवाद ज्ञापित किया तथा जॉनी फॉस्टर ने तराना को बंगाली, मराठी, कश्मीरी, हिन्दी, मलयालम आदि भाषाओं में प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया।

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