श्रीनगर में जी-20 से जुड़े आयोजन को लेकर पाकिस्तान के साथ ही चीन ने भी आपत्ति जताई थी

 


श्रीनगर में जी-20 के पर्यटन कार्यसमूह का तीन दिवसीय सम्मेलन शुरू होना इसका परिचायक है कि भारत अपने आंतरिक मामलों में किसी अन्य देश की आपत्ति सहन करने को तैयार नहीं। श्रीनगर में जी-20 से जुड़े आयोजन को लेकर पाकिस्तान के साथ ही चीन ने भी आपत्ति जताई थी, लेकिन भारत ने उसकी न केवल अनदेखी की, बल्कि इन दोनों देशों को दो टूक जवाब भी दिया। ऐसा करना आवश्यक था, क्योंकि भारत को अपने किसी भी भूभाग में हर तरह के आयोजन करने का अधिकार है- वे चाहे अंतरराष्ट्रीय स्तर के ही क्यों न हों।

श्रीनगर में जी-20 के पर्यटन कार्यसमूह की बैठक से चीन ने बाहर रहने का निर्णय किया है। उसका साथ तुर्किए भी दे रहा है।

हो सकता है कि एक-दो अन्य देश भी इस बैठक में शामिल होने से मना करें, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। इस बैठक में 25 देशों के 60 से प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। स्पष्ट है कि अधिकांश देशों ने चीन को आईना दिखाना आवश्यक समझा। उनका यह फैसला चीन की फजीहत भी है और इस पर मुहर भी कि जम्मू-कश्मीर से विभाजनकारी अनुच्छेद 370 खत्म करने का भारत का निर्णय सही था।


चीन कश्मीर के मामले में अपनी फजीहत पहले भी करा चुका है। उसने पाकिस्तानी आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से प्रतिबंधित करने की पहल में हर बार अड़ंगा लगाया, लेकिन कई मौकों पर उसे मुंह की खानी पड़ी। चीन अपनी हरकतों से यही बता रहा कि आतंकवाद के मामले में उसकी कथनी-करनी में अंतर है। यह अंतर दुनिया भी देख रही है, लेकिन चीन सही रास्ते पर आने को तैयार नहीं। उसने अरुणाचल प्रदेश में भी जी-20 की एक बैठक का बहिष्कार किया था, लेकिन भारत अपने निर्णय पर अडिग रहा। उसे आगे भी न केवल ऐसा करना चाहिए, बल्कि चीन को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए। भारत को उसके समक्ष यह साफ करना भी आवश्यक है कि तिब्बत और हांगकांग उसकी दुखती रग हैं।


यह अच्छा हुआ कि भारत सरकार ने श्रीनगर में जी-20 से जुड़े आयोजन को भव्य रूप देने में कोई कसर नहीं उठा रखी। इस आयोजन के माध्यम से दुनिया को बदलते हुए जम्मू-कश्मीर को देखने का अवसर मिलेगा। इसी के साथ उसे विश्व मंचों पर भारत की बढ़ती ताकत का भी आभास होगा। वह सभी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जिस तरह विश्व समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है, उससे यही पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत की भूमिका बढ़ रही है। इसका एक प्रमाण अभी हाल में हिरोशिमा में जी-7 की बैठक में मिला और फिर पापुआ न्यू गिनी में भी। भारतीय प्रधानमंत्री जिस तरह जापानी मीडिया में छाए रहे, उसी तरह पापुआ न्यू गिनी और फिजी में भी।

साभार: नेहा सांवरिया 











Post a Comment

0 Comments