भारत का संविधान, अदालत और एनकाउंटर के ज़रिए न्याय

 "हम गणतंत्र को अपने ही बच्चों की हत्या की इजाजत नहीं दे सकते."

        ( एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस )



सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी 14 जनवरी, 2011 को एक एनकाउंटर मामले में की थी. टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने केंद्र और आंध्र प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था।

1 जुलाई, 2010 को आंध्र प्रदेश में माओवादी उग्रवादी नेता चेरुकुरी राजकुमार और पत्रकार हेमचंद्र पांडेय की पुलिस एनकाउंटर में मौत हुई थी. इस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश (दिवंगत) और हेमचंद्र पांडेय की पत्नी ने याचिका दाखिल की थी. इस मामले की जांच 2023 तक पूरी नहीं हुई है. इस मामले से पहले कई पुलिस एनकाउंटर हुए और बाद में भी होते रहे. कई एनकाउंटर बाद में फर्जी भी साबित हुए. 'एनकाउंटर' सिस्टम की उन कार्यप्रणालियों में है जिस पर लगातार सवाल उठते रहे हैं।


13 अप्रैल 2023 को खबर आई कि एक पुलिस एनकाउंटर में माफिया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और उसके सहयोगी गुलाम मोहम्मद की मौत हो गई. इस घटना ने एनकाउंटर के इर्द-गिर्द बहस को फिर ज़िंदा कर दिया है. दोनों उमेश पाल मर्डर केस में आरोपी थे।


यूपी पुलिस ने दावा किया कि असद और गुलाम ने गोली चलाई, जिसके बाद पुलिस को भी गोली चलानी पड़ी. इसी क्रम में दोनों की जान गई. लेकिन यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एनकाउंटर को 'झूठा' बता दिया है.पूर्व सीएम मायावती ने भी कहा कि मामले में जांच जरूरी है।


भारत का संविधान, अदालत और एनकाउंटर के ज़रिए न्याय


भारतीय संविधान या कानून में कहीं एनकाउंटर शब्द का जिक्र नहीं है. पुलिस के पास किसी नागरिक का जीवन छीनने का अधिकार नहीं है. बल प्रयोग, या गोली चलाने को लेकर भी स्पष्ट नियम हैं कि जानलेवा चोट न लगे. पुलिस तभी इस सीमा को लांघ सकती है, जब कोई और चारा न हो. जैसे -


1. आत्मरक्षाः जब संदिग्ध या आरोपी पुलिस टीम के जीवन के लिए खतरा पैदा कर दे।


2. आम नागरिकों की सुरक्षा: जब संदिग्ध या आरोपी के चलते आम नागरिकों की जान पर बन आए।


बावजूद इसके, सामान्य लॉ एंड ऑर्डर में एनकाउंटर की चर्चा और स्वीकार्यता बढ़ती नज़र आती है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फरवरी 2022 में संसद में बताया था कि जनवरी 2017 से जनवरी 2022 के बीच देश में 655 लोगों की मौत पुलिस एनकाउंटर में हुई. सबसे ज्यादा 191 मौतें माओवादी उग्रवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़ में हुई. इसके बाद नंबर आता है उत्तर प्रदेश (117) का. 


यूपी में एनकाउंटर

कई खोजी रिपोर्ट्स ने इस ओर संकेत किया है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में पुलिस एनकाउंटर बढ़े हैं. और इनमें से कई की कहानी एक-दूसरे से मिलती जुलती है. 17 मार्च 2023 को अंग्रेज़ी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले छह सालों में यूपी पुलिस ने 10,713 एनकाउंटर किए. अकेले मेरठ पुलिस ने 3,152 एनकाउंटर किए, जिनमें 63 आरोपियों की जान गई और 1,708 गिरफ्तार हुए।


योगी सरकार में अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई का एक और आंकड़ा है. यूपी पुलिस ने इसे 'आत्मरक्षार्थ कार्रवाई' बताया है. इसके मुताबिक, इस कार्रवाई में पिछले 6 सालों के दौरान 181 अपराधियों को मारा गया है. ये आंकड़े 20 मार्च 2017 से 12 अप्रैल 2023 तक के हैं।


ये आंकड़े देखकर लग सकता है कि एनकाउंटर अपराधियों पर त्वरित कार्रवाई का एक कारगर तरीका है. लेकिन देश के दूसरे राज्यों की ही तरह यूपी से भी ऐसे कई मामले सामने आए, जब पुलिस पर पैसे, प्रमोशन या मेडल के लिए एनकाउंटर करने का आरोप लगा. अगस्त 2018 में इंडिया टुडे ने यूपी कैश फॉर एनकाउंटर मामले का भांडाफोड़ किया था. जिसके बाद यूपी पुलिस ने अपने लोगों पर कार्रवाई भी की थी ।

जब बीसवीं सदी के आखिर में मुंबई पुलिस ने अंडरवर्ल्ड से जुड़े लोगों के ताबड़तोड़ एनकाउंटर करने शुरू किए थे, तब भी यही आरोप लगे थे कि कभी प्रतिद्वंद्वी गैंग तो कभी नेताओं के कहने पर एनकाउंटर कर दिए गए. ऐसे ही मामलों के लिए एक जुमला इस्तेमाल में है - एक्स्ट्रा ज्यूडीशियल किलिंग. माने पुलिस ने कानून से परे जाकर हत्याएं कीं।


अलग-अलग मौकों पर सुप्रीम कोर्ट तक ने पुलिस एनकाउंटर्स को गलत ठहराया है. साल 2011 में प्रकाश कदम बनाम राम प्रसाद विश्वनाथ गुप्ता मामले में कोर्ट ने एक टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि पुलिस द्वारा फर्जी एनकाउंटर और कुछ नहीं बल्कि निर्दयी हत्या है. और जो इसे अंजाम दे रहे हैं उन्हें मौत की सजा होनी चाहिए।

एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस

पुलिस एनकाउंटर में मौत को लेकर कई टिप्पणियों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक गाइडलाइन जारी की थी. दरअसल, साल 1999 में सामाजिक संस्था 'पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज' (PUCL) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस याचिका में साल 1995 से 1997 के बीच मुंबई पुलिस द्वारा अंजाम दिए गए 99 एनकाउंटर पर सवाल उठाए गए थे. इन कथित एनकाउंटर में 135 लोगों की मौत हुई थी. लंबी सुनवाई के बाद साल 2014 में एक आदेश आया. जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने 16 बिंदुओं का दिशा-निर्देश जारी किया. कोर्ट ने कहा कि अगर पुलिस एनकाउंटर में मौत होती है, तो FIR दर्ज की जानी चाहिए. इसके अलावा कई और निर्देश दिए गए।

1. पुलिस को अगर किसी तरह की आपराधिक गतिविधि की जानकारी मिलती है, तो उसे लिखित (केस डायरी के रूप में) या फिर किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दर्ज करना होगा।

2. अगर एनकाउंटर में किसी की जान चली जाती है, तो केस दर्ज किया जाना चाहिए. धारा 157 के तहत केस दर्ज होना चाहिए. कोर्ट को तुरंत सूचना दी जानी चाहिए।

3. पूरी घटना की एक स्वतंत्र जांच सीआईडी से या दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम से करवाना जरूरी है. इसकी निगरानी एक सीनियर पुलिस अधिकारी करेंगे. यह पुलिस अधिकारी एनकाउंटर में शामिल सबसे सीनियर अधिकारी से एक रैंक ऊपर का होना चाहिए।


4. धारा 176 के तहत पुलिस फायरिंग में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए. इसकी एक रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजना जरूरी है, जो CrPC की धारा 190 के तहत अधिकृत हों।


5. घटना की सूचना परिस्थिति अनुसार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) या राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) को बिना किसी देरी दे दी जानी चाहिए।


6. घायल अपराधी/पीड़ित को मेडिकल हेल्प दी जाए. मजिस्ट्रेट या मेडिकल ऑफिसर के सामने उसका बयान दर्ज करवाया जाना चाहिए।


7. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि FIR और पुलिस डायरी कोर्ट को बिना देरी के उपलब्ध कराई जाए।


8. जांच के बाद रिपोर्ट CrPC की धारा 173 के तहत कोर्ट के पास भेजी जानी चाहिए. जांच अधिकारी की ओर से पेश आरोप पत्र के मुताबिक मुकदमे का निपटारा जल्दी किया जाना चाहिए।


9. मौत की स्थिति में, कथित अपराधी/पीड़ित के परिजन को जितनी जल्दी हो सके, जानकारी दी जानी चाहिए।


10. पुलिस फायरिंग में मौतों की स्थिति में सभी मामलों का छमाही ब्योरा पुलिस महानिदेशक (DGP) की ओर से NHRC को भेजा जाना चाहिए।


11. जांच में पुलिस की गलती पाए जाने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ एक्शन लिया जाए या जांच पूरी होने तक उसे निलंबित किया जाए।


12. पुलिस मुठभेड़ में मारे गए व्यक्ति के आश्रितों को मुआवजा देने के लिए आईपीसी की धारा 357-ए पर अमल किया जाना चाहिए।


13. संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत संबंधित अधिकारी को जांच के लिए अपने हथियार जांच एजेंसी के पास सरेंडर करने होंगे।


14. पुलिस अधिकारी के परिवार को जानकारी दी जाए. आरोपी अधिकारी को वकील मुहैया कराया जाना चाहिए।


15. घटना के तुरंत बाद संबंधित अधिकारियों को न तो बिना बारी के (आउट ऑफ टर्न) प्रमोशन दिया जाना चाहिए, न ही कोई वीरता पुरस्कार. हर हाल में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ये पुरस्कार तभी दिया जाए या इसकी सिफारिश तभी की जाए, जब संबंधित अधिकारियों की वीरता पर कोई संदेह न हो।

16. अगर पीड़ित के परिवार को लगता है कि इन प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया या स्वतंत्र जांच में किसी तरह की गड़बड़ी की आशंका हो, तो वह सत्र न्यायाधीश से शिकायत कर सकते हैं. शिकायत मिलने के बाद सत्र न्यायाधीश उसकी जांच करेगा।


NHRC की क्या गाइडलाइंस है ?


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी समय-समय पर पुलिस एनकाउंटर पर सख्त टिप्पणी की है. मार्च 1997 में NHRC के तत्कालीन चेयरमैन जस्टिस एमएन वेंकटचलैया ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था. इसमें कहा गया था कि बहुत सारे राज्यों से फर्जी एनकाउंटर की शिकायतें मिल रही हैं. जस्टिस वेंकटचलैया ने लिखा कि अगर पुलिसकर्मी की गोली से कोई मारा जाता है, तो पुलिस वाले पर गैरइरादतन हत्या का केस दर्ज किया जाना चाहिए. ऐसा इसलिए कि पुलिस के पास किसी भी व्यक्ति की जान लेने का कोई अधिकार नहीं है. NHRC ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कुछ गाइडलाइंस जारी किए।


1. एनकाउंटर में मौत की सूचना मिलते ही पुलिस स्टेशन के इंचार्ज को तुरंत जानकारी दर्ज करनी चाहिए।


2. आरोपी की मौत के तथ्यों और परिस्थियों की जांच के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए.

3. चूंकि एनकाउंटर में पुलिस खुद शामिल होती है, इसलिए ऐसे मामलों की जांच स्वतंत्र एजेंसियों मसलन राज्य CID से करवानी चाहिए।


4. इन मामलों की जांच चार महीनों में पूरी होनी चाहिए. अगर जांच में किसी के खिलाफ केस बनता है तो इसमें स्पीडी ट्रायल होनी चाहिए।


5. अगर किसी मामले में कोई दोषी पाया जाता है तो मृतक के परिवार को मुआवजा दिया जाना चाहिए।


6. अगर कोई पुलिसकर्मी की गोली से मारा जाता है, तो पुलिस वाले पर IPC की संबंधित धाराओं के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए।


7. पुलिस की कार्रवाई में हुई मौतों के सभी मामलों में मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए. ये जांच तीन महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए। 


8. पुलिस कार्रवाई में हुई सभी मौतों की जानकारी NHRC को देनी चाहिए. SP या SSP स्तर के अधिकारी घटना के 48 घंटों के भीतर आयोग को सूचित करें।


9. घटना की जानकारी देने के तीन महीने के भीतर दूसरी रिपोर्ट जमा करनी होगी. इसमें पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मजिस्ट्रेट जांच और पुलिस अधिकारियों की जांच रिपोर्ट होनी चाहिए।


मई 2010 में भी NHRC के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस जीपी माथुर ने कहा था कि पुलिस को किसी की जान लेने का अधिकार नहीं है।


एनकाउंटर के ज्यादातर मामलों में पुलिस 'जवाबी फायरिंग' का शब्द का इस्तेमाल करती है. CrPC की धारा 46 कहती है कि अगर कोई अपराधी खुद को गिरफ्तार होने से बचाने की कोशिश करता है या पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है या पुलिस पर हमला करता है, तो इन हालात में पुलिस उस अपराधी पर जवाबी हमला कर सकती है. लेकिन जब तक जानलेवा हमला नहीं किया जाता है तब तक पुलिस गोली नहीं चला सकती है।

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