बहुत सारी आपराधिक और हिंसक घटनाओं के पीछे नशाखोरी की लत बड़ा कारण

 


अलीगढ़। यह सवाल लंबे समय से दोहराया जाता रहा है कि आखिर क्या वजह है कि अलीगढ़ में अपराध और हिंसा पर लगाम नहीं लग पा रही। अन्य जिलों की तुलना में यहां की पुलिस अधिक सक्षम और तत्पर मानी जाती है। अपराधियों की धर-पकड़ में भी उसकी दक्षता अधिक है। सक्षम होने के बाबजूद भी  मगर अपराधियों में उसका खौफ पैदा नहीं हो पा रहा, तो उसके कामकाज पर सवाल उठना स्वाभाविक है। 

यहां थोड़े-थोड़े अंतराल पर कोई न कोई बड़ी वारदात हो जाती है।

यहां के क्वार्सी , थाना कोतवाली नगर इलाके में कई लोगों की  हत्या कर दी गईं हैं। चोरी की घटनाएं भी बड़ी हैं अब सर्दियों का मौसम है पुलिस गस्त बड़ाने की आवश्कता हैं।

बताया जा रहा है कि अलीगढ़ के थाना क्वार्सी, देहली गेट, कोतवाली नगर, सासनी गेट इलाके में सट्टा, नशीले पदार्थों की बिक्री बड़े पैमाने पर होती है नशे की लत वाले और वह नशा करने के लिए पैसे की ज़रूरत होती हैं चोरी की घटनाएं ऐसे लोगों की वज़ह से बड़ रही है।

सूत्र बताते हैं पुलिस की हिला हवाली मिलीभगत से इस तरह की घटनाएं पुलिस नही रोक पाती हैं।

 एक बार यह सवाल फिर गाढ़ा हुआ है कि आखिर युवाओं में हिंसा का मानस बन कैसे रहा है।


ऐसी घटनाएं अब इतनी सहज कैसे हो गई हैं। इसके पीछे महानगरीय विसंगतियों और सामाजिक ताने-बाने के लगातार कमजोर होते जाने को बड़ा कारण बताया जाता है, मगर इस आधार पर कानून-व्यवस्था संभालने वालों को अपने बचाव का रास्ता नहीं मिल जाता।


यह छिपी बात नहीं है कि अलीगढ़ में बहुत सारी आपराधिक और हिंसक घटनाओं के पीछे नशाखोरी की लत बड़ा कारण है। यहां नशीले पदार्थों की बिक्री में लगातार इजाफा हो रहा है। पुलिस द्वारा छापे मार कर कभी-कभार गिरफ्तारियां आदि करते हैं, मगर इससे नशे के कारोबार पर अंकुश नहीं लग पाता।

 इसके चलते बहुत सारे युवा नशे की गिरफ्त में हैं और उनके परिवार की परेशानियां बढ़ गई हैं। कई असमय अपनी जान गंवा बैठते हैं। ऐसे युवाओं में हिंसक प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से पैदा हो जाती है।


विशेषज्ञ बताते हैं कि जब उन्हें नशे की तलब लगती है, तो वे खुद नहीं समझ पाते कि क्या कर रहे हैं। वे अपना विवेक खो देते हैं। यह भी उजागर तथ्य है कि नशे के कारोबारी सबसे अधिक किशोर और युवाओं को अपना शिकार बनाते हैं और फिर वे उनके लिए नशे की खपत में सहयोगी बन जाते हैं। ऐसा नहीं माना जा सकता कि अगर अलीगढ़ पुलिस तलाशने का प्रयास करे, तो वह इस कारोबार की मुख्य कड़ी को नहीं पकड़ सकती।

यों तो अलीगढ़ के लगभग हर इलाके में कैमरे लगा दिए गए हैं, सड़कों पर भी कैमरे लगे हैं, फिर भी चलती गाड़ी में छीना-झपटी की घटनाएं अक्सर सामने आ जाती हैं। 

कुछ हद तक इसके पीछे संचार माध्यमों पर हिंसा को उकसाने वाली सामग्री की उपलब्धता कारण है, जिससे युवाओं में हिंसा के प्रति सहज स्वीकार भाव पैदा हुआ है, मगर निगरानी तंत्र की कमजोरी उनमें ऐसा करने का साहस पैदा करता है।


आमतौर पर परिवार के लोगों की हत्या कर देने जैसी घटनाओं के पीछे सामाजिक और नैतिक मूल्यों में आई गिरावट को बड़ा कारण मान कर देर तक चर्चा होती रहती है या फिर उन्हें नजरअंदाज करने की कोशिश की जाती है। मगर अब आपराधिक घटनाओं को मूल्यों की आड़ लेकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पुलिस को युवाओं में पुख्ता होते हिंसा के मानस को नए ढंग से समझने और उसके स्रोतों पर प्रहार करने की जरूरत है।

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