कोरोना से मौत की आंख मिचौली




 अमन पठान

मैंने बीते वर्ष जो लॉकडाउन देखा था वो बहुत ही सख्त लॉकडाउन था। इस वर्ष लगाया गया लॉकडाउन एक मजाक की तरह है क्योंकि नियमों के पालन से ज्यादा नियमों का उल्लंघन हो रहा है। बीते वर्ष लॉकडाउन के दौरान जहां एक ओर पुलिस ने मानवता की मिसालें पेश की थीं तो वहीं दूसरी ओर पुलिस का अमानवीय चेहरा भी सामने आया था। मेरा मकसद पुलिस को सवालों के कटघरे में खड़ा करने का नही है। मैं बखूबी जानता हूं कि पुलिस किस किस बंधन में बंधी होती है। इसलिए मैं अपने असल मुद्दे पर आता हूँ।
सरकार ने उत्तर प्रदेश में 10 मई 2021 तक लॉकडाउन का आदेश जारी किया है। सरकार उस जनता से कोविड के नियमों का पालन करने की अपील कर रही है जो अपनी मर्जी से नही बल्कि पुलिस के खौफ से मास्क का प्रयोग करती है। लोग अपनी इच्छा से ज्यादा चालान के डर से मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं। लॉकडाउन और कोविड के नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी का सबसे ज्यादा बोझ पुलिस के कांधों पर है।
लॉकडाउन और कोविड के नियमों का पालन कराने के साथ साथ पुलिस कानून व्यवस्था को भी चुस्त दुरुस्त रखने की कवायद में पसीना बहा रही है लेकिन पुलिस को जन सहयोग नही मिल रहा है जिस कारण प्रभावशाली व्यापारी कोरोना के साथ मौत की आंख मिचौली खेल रहे हैं। पुलिस की हीलाहवाली के चलते प्रभावशाली व्यापारी लॉकडाउन और कोविड के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
विगत दिवस मैंने एटा जिले के मारहरा में प्रभावशाली व्यापारियों के द्वारा लॉकडाउन और कोविड के नियमों की धज्जियां उड़ाए जाने के संबंध में समाचार प्रकाशित किया था और कई ट्वीट कर एटा पुलिस को अवगत भी कराया था लेकिन पुलिस प्रभावशाली व्यापारियों के सामने क्यों नतमस्तक हो गई यह पुलिस के आला अधिकारी की बता सकते हैं। अगर पुलिस व्यापारियों के सामने नतमस्तक नही हुई है तो प्रभावशाली व्यापारी बेखौफ होकर थाने के आसपास अपने प्रतिष्ठान कैसे खोल रहे हैं।
कोरोना से एटा में पुलिस के दो अधिकारी असमय कालकलवित हो चुके हैं। कोरोना लगातार अपना कहर बरपा रहा है। कोरोना की तीसरी लहर की चेतावनी भी जारी हो चुकी लेकिन लापरवाही चरम सीमा पर है। किसी से मेरी कोई निजी दुश्मनी नही है मैं तो अपने दुश्मन को भी जीवित देखना चाहता हूं क्योंकि दुश्मनी का मजा तभी आता है जब दुश्मन जिंदा हो। मैं कोई मानसिक रोगी भी नही हूँ जो बार बार पुलिस और व्यापारियों को टारगेट कर कोरोना पर लिख रहा हूँ। मैं बस इतना ही जानता हूँ कि जीवन अनमोल है। अगर मेरे प्रयास से हालात में कुछ सुधार हो जाता है तो ये मेरा सौभाग्य होगा अन्यथा मुझे शिकायत किसी से भी नही होगी।
सरकार ने आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत जनता को मरने के लिए छोड़ दिया है। हाकिम इतना बेपरवाह हो चुका है कि उसे अपनी अवाम के मरने से कोई फर्क नही पड़ रहा है। अस्पताल से लेकर श्मशान तक चीत्कार है। अस्पतालों का क्या हाल है ये किसी से छुपा हुआ नही है। ईश्वर न करे कि मेरे किसी दुश्मन को भी कोरोना हो। सोचिए अगर आप कोरोना से संक्रमित हो गए तो आपको अस्पताल में एक अदद बेड के लिए संघर्ष करना पड़ेगा, अगर बेड मिल गया तो ऑक्सीजन के लिए जद्दोजहद करनी पड़ेगी और खुदा नाखास्ता आप परलोक सिधार गए तो श्मशान में आपके शव को पंच तत्वों में विलीन होने के लिए भी इंतजार करना पड़ेगा।
मैंने अब तक जितना कुछ लिखा है इससे आप अच्छी तरह वाकिफ हैं और सहमत भी होंगे तो फिर आप कोरोना के साथ मौत की आंख मिचौली क्यों खेल रहे हो? सिर्फ इसलिए कि आपदा में मिला अवसर हाथ से न निकल जाए, अगर आप ही निकल गए तो ईमानदारी या बेईमानी से कमाई आपकी दौलत का मजा कोई और उठाएगा।
लॉकडाउन का असर और पुलिस का खौफ सिर्फ गरीब तबके में देखने को मिल रहा है क्योंकि उसके सामने रोजी रोजगार का बड़ा संकट मुंह खोले खड़ा है। इस तथाकथित लॉकडाउन में प्रभावशाली व्यापारियों को दुकान खोलने की अनुमति है लेकिन किसी गरीब को फुटपाथ पर कुछ भी बेचने की इजाजत नही है। पुलिस का जोर भी गरीबों पर ही चलता है क्योंकि प्रभावशाली लोगों की आंखों में आंखें डालकर बात करने की किसी पुलिसकर्मी में हिम्मत नही है।
अगर कोरोना के कहर से अपने आप को और अपने परिवार को सुरक्षित रखना चाहते हो तो कोविड के नियमों का पालन कीजिए, चंद रुपयों का लालच और आपकी जरा सी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। वैसे कोरोना से मौत की आंख मिचौली खेलने पर कोई पाबंदी नही है। मौत सत्य है लेकिन अकाल मौत मरना भी किसी अभिशाप से कम नही होता है।

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