सामासिकता भारतीय संस्कृति की पहचान - प्रोफेसर राधेश्याम राय

 


अलीगढ़  अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव के क्रम में आयोजित एक वेबिनार में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राधेश्याम राय ने कहा कि भारतीय समाज एक सामासिक संस्कृति का सम्मान करने वाला बहुलतावादी समाज है जिसकी परंपराऐं बहुत गहरी हैं। 


सामासिकता ही भारतीय संस्कृति की पहचान सुनिश्चित करती है।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय की महान परंपराओं को याद करते हुए उन्होंने दोनों विश्वविद्यालयों के आपसी अंतसंबंधों एवं उनकी विशेषताओं का उल्लेख किया।


सेमिनार में प्रोफेसर आरिफ नजीर ने भारतीय समाज एवं उसकी संस्कृति की महत्ता को स्पष्ट करते हुए खुसरों,कबीर,नजीर,रहीम,रसखान और गालिब आदि के साहित्य में व्यक्त सामासिक समरसता के उदाहरण देते हुए भारतीय समाज की सांस्कृतिक विविधता का उल्लेख किया। प्रसंगवश उन्होंने अटलविहारी वाजपेयी की राष्टभावना से प्रेरित कुछ कविताओं को भी उद्धृत भी किया।


कार्यक्रम के अध्यक्षीय संबोधन मे हिन्दी विभाग के अध्यक्ष ंप्रोफेसर रमेशंद्र ने सन् 1857 की क्रांति के हवाले भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के क्रम में भारतीय समाज के सभी समुदाय और वर्ग के सम्मिलित योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आजा़दी के अमृत महोत्सव की सार्थकता यही है कि अपने अधिकार और कर्तव्य दोनों का सम्मान करते हुए हम स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ी छोटी छोटी बातों एवं घटनाक्रमों के महत्व एवं वैशिष्ट्य को समझें।


उक्त कार्यक्रम का संयोजन वेबसेमिनार के संयोजक प्रोफेसर शंभुनाथ तिवारी ने किया। कार्यक्रम में विभाग के संकाय सदस्यों सहित पूरे देश से प्राध्यापकविद्यार्थी और शोधार्थी जुड़े रहे।

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