सीएए जिसका नागरिक रजिस्टर से कोई लेना-देना नहीं है, उसके विरोध में पूरे देश में अराजकता फैलाने की कोशिश की गई।


 

बेंगलुरू। असम में  राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू होने के बाद करीब 40 लाख ऐसे लोगों के नाम सतह पर आए थे, जो अपनी भारतीय पहचान बताने में अक्षम पाए गए थे। एक प्रयोग के तौर पर असम में लागू किए गए एनआरसी के बाद अब पूरे देश में एनआरसी को लागू करने की योजना सरकार के पाइपलाइन में हैं, लेकिन  नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी दोनों के लिए लामबंद विपक्ष लगातार इसके विरोध में खड़ी है। सीएए जिसका नागरिक रजिस्टर से कोई लेना-देना नहीं है, उसके विरोध में पूरे देश में अराजकता फैलाने की कोशिश की गई।
गौरतलब है असम में एनआरसी लागू होने के बाद अवैध रूप से असम में रहे बांग्लादेशी नागरिक वापस लौट रहे हैं। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के मुताबिक भारत में घुस आए कुछ बांग्लादेशी नागरिक असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) लागू होने के बाद अपने देश वापस लौट रहे हैं। बीएसएफ मेघालय फ्रंटियर के महानिरीक्षक के मुताबिक बांग्लादेश में बेहतर होती आर्थिक स्थिति भी बांग्लादेशी नागरिकों के वापस जाने का कारण है।
ऐसी सूचना भी मिली है कि बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत आए लोग वापस जा रहे हैं, जिन्हें वहां हिरासत में ले लिया गया। ऐसी जानकारी है कि पिछले कुछ महीनों में ऐसी गतिविधियां हुई हैं। बांग्लादेशी मीडिया में भी ऐसी खबरें भी देखी थी, जिसमें बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) द्वारा ऐसी गतिविधियों के बारे में बताया था।
निः संदेह सीएए का विरोध एक सियासी मूवमेंट से इतर कुछ नहीं था, क्योंकि इस कानून के जरिए किसी की नागरिकता छीनी नहीं, बल्कि नागरिकता देने की बात की जा रही थी, लेकिन बांग्लादेश की सरहद से सटे प्रदेशों को इससे अपनी राजनीतिक दुकान बंद होने के डर सताने लगा। ऐसा माना जाता है कि सीएए के बाद सरकार का अगला कदम एनआरसी पूरे भारत में लागू करने का होगा।
यही कारण था कि एनआरसी से पहले सीएए का विरोध प्लांट कर दिया गया। लोगों को गुमराह को सड़कों पर खड़ा कर दिया। सड़कों पर खड़े होकर सीएए और एनआरसी की आहट के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों को सीएए और एनआरसी के बारे में जरा भी जानकारी नहीं दी गई, जिससे उनकी पूरी बाजी पलट गई।
आइए जानते हैं कि आखिर सरकार के पाइपलाइन में हिस्सा एनआरसी पर हंगामा क्यों हो रहा है और एनआरसी से किसका नुकसान और फायदा है। एनआरसी का विरोध पूरी तरह से राजनीतिक है, क्योंकि अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को भारत से बाहर खदेड़ने के लिए खुद कांग्रेस ने एनआरसी की जरूरत पर बल दे चुकी है, लेकिन सत्ता जाने के बाद वह महज विरोध के लिए विरोध कर रही है, जिससे भारत की आंतरिक सुरक्षा और संप्रभुता खतरे में पड़ती जा रही है।
कांग्रेस का यही रूख सीएए को लेकर भी दिखा है, जिसके समर्थन में वर्ष 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने संसद में भाषण दिया था। इसी तरह एनपीआर पर कांग्रेस का रुख है, जो खुद वर्ष 2010 में एनपीआर लेकर आई थी और एनपीआर को अपना बेबी तक बतलाया था।
सीएए, एनआरसी और अब एनपीआर के विरोध में कांग्रेस के साथ वही पार्टियां खड़ी हैं, जो बांग्लादेश से सटे प्रदेशों में सत्ता में हैं और अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को वोट बैंक का इस्तेमाल करती रही हैं। इनमें पश्चिम बंगाल में सत्तासीन त्रृण मूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी पहले पायदान पर हैं।
दूसरे नंबर पर कांग्रेस हैं, जो असम में दोबारा सत्ता पाने के लिए सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोधाभासी बातें फैला रही है। तीसरे नंबर हैं त्रिपुरा प्रदेश, जहां वाम मोर्च की सरकार को हटाकर पहली बीजेपी सत्ता में सवार हुई है। माना जाता है कि बांग्लादेश से सटे त्रिपुरा में भी काफी संख्या में अवैध बांग्लादेश भरे हुए हैं, जिनको आधार बनाकर वाम मोर्चे की सरकार लगातार त्रिपुरा में सरकार में बनी हुई थी।
हालांकि कमोबेश पूरे देश में अवैध बांग्लादेशी नागिरक और म्यानमार से भगाए गए रोहिंग्या मुसलमान फैले हुए हैं। इनमें उत्तर भारत के सीमावर्ती प्रदेश बिहार और झारखंड के अलावा राजधानी दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं, जहां अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान छिपकर रह रहे हैं।
इसके अलावा दक्षिण भारत के कर्नाटक प्रदेश की राजधानी बेंगलुरू में भी अवैध बांग्लादेशी नागिरकों की एक बड़ी आबादी के छिपे होने की पुष्टि हो चुकी है। वहीं, महाराष्ट्र में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों के हालिया धरपकड़ को देखते हुए माना जा रहा है कि वहां भी उनके छिपे होने की आशंका है, लेकिन गैर-बीजेपी शासित राज्यों ने एनआरसी छोड़िए, सीएए भी लागू करने से मना कर दिया है, जिसका नागरिकता छीनने का सवाल ही नहीं है।
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वर्ष 2006 में पश्चिम बंगाल में चलाया गया था ऑपरेशन क्लीन अभियान

वर्ष 2006 में चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में रह रहे अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन क्लीन चलाया था। 23 फरवरी 2006 तक चले अभियान के बाद करीब 13 लाख नागिरकों के नाम वोटर लिस्ट से काटे गए। आशंका जताई गई थी कि 2006 में वोटर लिस्ट से हटाए गए 13 लाख अवैध बांग्लादेशी नागरिक थे। हालांकि इसके बाद भी चुनाव आयोग संतुष्ट नहीं था और उसने केजे राव की अगुवाई में दोबारा मतदाता सूची की समीक्षा के लिए अपनी टीम भेजी थी। तब पश्चिम बंगाल में अपनी जीत के लिए आश्वस्त रही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का बयान दिया कि चुनाव आयोग के सैकड़ों पर्यवेक्षक बंगाल उनकी जीत को नहीं रोक सकते हैं।

2011 में इसलिए अवैध बांग्लादेशियों की हितैषी बन गईं ममता बनर्जी

माकपा को अपने समर्पित वोट बैंक पर पूरा भरोसा था, जो कि माना गया कि बांग्लादेश से अवैध हुए बांग्लादेशी नागरिक थे, जिन्हें वोटर आईडी और राशन कॉर्ड देकर भारतीय नागरिक बना दिया गया था। राजनीतिक पंडितों का मानना था कि वाममोर्चा के सत्ता में आने के समय से ही मुस्लिम घुसपैठियों को वोटर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। दिलचस्प बात यह है कि उस समय विपक्ष में रहीं ममता बनर्जी भी मानती थी कि राज्य में दो करोड़ से अधिक बोगस वोटर हैं। तब एक मोटे अनुमान लगाया गया था कि भारत में डेढ़ से दो करोड़ घुसपैठिए महज वोट बैंक के लिए अवैध रूप से बसाए गए हैं। अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को बंगाल के एक बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा है। बाद में टीएमसी चीफ ममता बनर्जी को बंगाल की सत्ता के लिए समर्पित वोट बैंक के रूप मौजूद अवैध बांग्लादेशी नागरिकों का पार्टी के पक्ष में इस्तेमाल किया और वर्ष 2011 विधानसभा और 2016 विधानसभा चुनाव तमाम अंतर्विरोधों के बाद दूसरी सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहीं थी।

1980 में बंगाल में 57 से 60 लाख से अधिक थे अवैध बांग्लादेशी!1972 से 1988 तक बंगाल में 28 लाख बांग्लादेशी नागरिक आए

पश्चिम बंगाल सरकार के सूत्रों के मुताबिक़ वर्ष 1980 तक कुल 32,84,065 शरणार्थियों का पुनर्वास हुआ था। अकेले बंगाल में इनकी संख्या 20,95,000 थी. इसके अलावा अवैध रूप से राज्य में रह रहे बांग्लादेशियों की आबादी कहने को 57 से 60 लाख थी, लेकिन असली संख्या इससे काफी अधिक थी। 1990 में कोलकाता से प्रकाशित एक अंग्रेजी दैनिक में छपे एक लेख में पूर्व आई बी प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल के राज्यपाल टी वी राजेश्वर राव ने इस समस्या की हक़ीक़त सामने रखी थी। उन्होंने राज्य सरकार के हवाले से ही लिखा था कि 1972 से 1988 तक बंगाल में 28 लाख बांग्लादेशी नागरिक आए, लेकिन उनमें से पांच लाख यहीं के होकर रह गए थे।

1977 के बाद बांग्लादेशी घुसपैठियों का बंगाल में हुआ सियासी पुनर्वास

1971 के पहले बांग्लादेशियों का भारत आना मुजीबुर्रहमान और इंदिरा गांधी के बीच हुए समझौते का हिस्सा था, लेकिन 1977 के बाद से घुसपैठियों एवं वाममोर्चा सरकार के बीच राजनीतिक पुनर्वास के लिए जैसे एक अलिखित समझौता हुआ। इसकी पुष्टि डेमोग्राफिक एग्रेशन अगेंस्ट इंडिया पुस्तक के लेखक बलजीत राय ने 5 अक्टूबर 1992 को द स्टेट्‌समैन में पाठक के एक पत्र को उद्धृत किया। पाठक के लिखे पत्र को देखकर बलजीत राय ने लिखा था कि वो यह सुनकर चकित हैं कि जलपाईगुड़ी को छोड़कर पश्चिम बंगाल के सभी सीमावर्ती ज़िलों के मजिस्ट्रेटों ने राज्य मुख्यालय को रिपोर्ट भेजी कि उनके ज़िलों में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ की कोई समस्या नहीं है।

राजनीतिक लाभ के लिए अवैध बांग्लादेशियों को बंगाल में बसाया गया

बंगाल में राजनीतिक लाभ और वोट बैंक के रूप में भारी संख्या में घुसपैठियों को बसाया गया, जिन्हें मुस्लिम घरो में पनाह दिया गया। अवैध बांग्लादेशी नागिरकों को राजमार्गों और रेल पटरियों के किनारे बसाया गया, जहां बाद उन्होंने अपनी कालोनियां बना ली। अवैध बांग्लादेशियों पर यह कृपा महज सियासी था, जिनका पहले वाममोर्चे ने इस्तेमाल किया और अब टीएमसी इस्तेमाल कर रही है। बलजीत राय के मुताबिक घुसपैठिए अब बिहार और पश्चिम बंगाल के हिस्सों को मिलाकर मुस्लिम बंगभूमि की मांग करने लगे है। यह एक दयनीय हालत थी। अधिकारियों ने अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के संकट पर से आंखें बंद करके केवल तत्कालीन पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ दलों को ख़ुश करने के लिए यह राष्ट्रीय संकट पैदा किया था, जो अब नासूर बन चुका है।

600 किमी लंबे नदी-नाले वाले सीमा रेखा से बंगाल में घुसे घुसपैठिए

भारत और बांग्लादेश के बीच 4095 किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसमें बंगाल से लगी सीमा की लंबाई 2216 किलोमीटर है। इसमें बीएसएफ की साउथ बंगाल फ्रंटियर 1145.62 किलोमीटर तक निगरानी करती है, जिसकी सीमा दक्षिण में सुंदरवन से लेकर उत्तर में दक्षिण दिनाजपुर ज़िले तक है। 367.36 किलोमीटर सीमा रेखा नदी-नाले के रूप में है, जबकि 778.36 किलोमीटर रेखा ही ज़मीन से होकर गुजरती है। पूरे बंगाल में कुल 600 किलोमीटर तक सीमा रेखा नदी-नालों के रूप में है। घुसपैठियों एवं तस्करों को सबसे ज़्यादा सुविधा नदी-नाले के कारण होती है। दिन में जब उन नदी-नालों में औरतें नहाती हैं, तो स्थानीय लोगों की ओर से बीएसएफ जवानों का विरोध किया जाता है. साउथ बंगाल फ्रंटियर की देखरेख वाली 529.12 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ इसलिए नहीं लग पाई है कि गांव वालों ने अदालत की शरण ले रखी है, जिसका मक़सद बाड़ लगाने के काम को लटकाना है।

1991 जनगणना में असम, बंगाल व पूर्वोत्तर में तेजी बढ़ी आबादी

1991 की जनगणना में सा़फ दिखा कि असम एवं पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती ज़िलों की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ी थी। एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ सीमावर्ती ज़िलों के क़रीब 17 फीसदी वोटर घुसपैठिए हैं, जो कम से कम 56 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का निर्णय करते हैं, जबकि असम की 32 प्रतिशत विधानसभा सीटों पर वे निर्णायक हालत में पहुंच गए हैं। असम में भी मुसलमानों की आबादी 1951 में 24.68 फीसदी से 2001 में 30.91 फीसदी हो गई, जबकि इस अवधि में भारत के मुसलमानों की आबादी 9.91 से बढ़कर 13.42 फीसदी दर्ज की गई थी।

पश्चिम दिनाजपुर, मालदा, वीरभूम और मुर्शिदाबाद में तेजी से बढ़ी आबादी

1991 की जनगणना के मुताबिक़ बंगाल के पश्चिम दिनाजपुर, मालदा, वीरभूम और मुर्शिदाबाद की आबादी क्रमशः 36.75, 47.49, 33.06 और 61.39 फीसदी की दर से बढ़ी थी। सीमावर्ती ज़िलों में हिंदुओं एवं मुसलमानों की आबादी में वृद्धि का बेहिसाब अनुपात घुसपैठ की ख़तरनाक समस्या की ओर इशारा कर रहा था। 1993 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री ने भी लोकसभा में स्वीकार था कि 1981 से लेकर 1991 तक यानी 10 सालों में ही बंगाल में हिंदुओं की आबादी 20 फीसदी की दर से बढ़ी, तो मुसलमानों की आबादी में 38.8 फीसदी का इज़ा़फा हुआ था। जबकि 1947 में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 29.17 फीसदी थी, जो 2001 में घटकर 2.5 फीसदी रह गई। इसकी तस्दीक 4 अगस्त, 1991 को बांग्लादेश के मॉर्निंग सन अख़बार में छपी रिपोर्ट करती है, जिसमें कहा गया कि करीब एक करोड़ बांग्लादेशी देश से लापता हैं, बावजूद इसके बांग्लादेश सरकार अभी तक भारत में अवैध घुसपैठ को स्वीकार नहीं कर पाई है।

2001 सेंसेक्स में 1.5 करोड़ थी बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या

2001 की जनगणना के मुताबिक़ भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या 1.5 करोड़ थी। सीमा प्रबंधन पर बने टास्क फोर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, हर महीने तीन लाख बांग्लादेशियों के भारत में घुसने का अनुमान है। केवल दिल्ली में 13 लाख बांग्लादेशियों के होने की बात कही जाती है, हालांकि अधिकृत आंकड़ा 4 लाख से कम ही बताया जाता है। भारत-बांग्लादेश सीमा का गहन दौरा करने वाले लेखक वी के शशिकुमार ने इंडियन डिफेंस रिव्यू (4 अगस्त, 2009) में छपे अपने लेख में बताया कि किस तरह दलालों का गिरोह घुसपैठ कराने से लेकर भारतीय राशनकार्ड और वोटर पहचानपत्र बनवाने तक में मदद करता है।

पश्चिम बंगाल बन गया था बांग्लादेशी घुसपैठियों का पसंदीदा राज्य

14 जुलाई, 2002 को संसद में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि भारत में 1 करोड़ 20 लाख 53 हज़ार 950 अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। इनमें से केवल बंगाल में ही 57 लाख हैं। इललीगल इमिग्रेशन फॉम बांग्लादेश टू इंडिया : द इमर्जिंग कन्फिल्क्ट के लेखक चंदन मित्रा ने पुस्तक में पश्चिम बंगाल के साथ असम में भी बांग्लादेशी घुसपैठियों से जुड़ी गतिविधियों एवं कार्रवाइयों का पूरा ब्यौरा दिया है। वह लिखते हैं, सच कहें तो पश्चिम बंगाल बांग्लादेशी घुसपैठियों का पसंदीदा राज्य बन गया है।

बंगाल के 100 विधानसभा पर निर्णायक भूमिका में पहुंच चुके हैं मुस्लिम

पश्चिम बंगाल में कोई भी पार्टी 30 फीसदी वोट बैंक को नजर अंदाज नहीं कर सकता है। ये वो वोट बैंक है जो हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। वजह है, बांग्लादेश से घुसपैठ और जनसंख्या में बेलगाम बढ़ोतरी। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि मुर्शिदाबाद, नॉर्थ दिनाजपुर और माल्दा में अब मुस्लिम बहुसंख्य हो गए हैं जबकि नॉर्थ व साउथ 24 परगना, नादिया, हुगली, हावड़ा और बीरभूम जिलों में अच्छी खासी मुस्लिम आबादी है। राज्य की 294 विधानसभा सीटों में से 100 से ज्यादा पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। आंकड़ों की बात करें तो मुर्शिदाबाद में 66.28 फीसदी आबादी मुस्लिम है, माल्दा में 51.27 फीसदी, नॉर्थ दिनाजपुर में 49.92 फीसदी, साउथ 24 परगना में 35.57 फीसदी आबादी मुस्लिम है।

बंगाल के मुर्शिदाबाद-जियागंज के 90 फीसदी लोग संदिग्ध पाए गए

2003 में मुर्शिदाबाद ज़िले के मुर्शिदाबाद-जियागंज इलाक़े के नागरिकों को बहुउद्देशीय राष्ट्रीय पहचान पत्र देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया। इसमें भारतीय नागरिकों और ग़ैर-नागरिकों की पहचान तय करनी थी, जिसके अंतरिम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि इस प्रोजेक्ट के दायरे में आने वाले 2,55,000 लोगों में से केवल 24,000 यानी 9.4 फीसदी लोगों के पास भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए कम से कम एक दस्तावेज़ था जबकि 90.6 फीसदी यानी 2,31,000 लोग निर्धारित 13 दस्तावेज़ों में से एक भी नहीं पेश कर पाए थे। तब उन्हें संदिग्ध नागरिकता की श्रेणी में डालकर छोड़ दिया गया था।

आतंकी गतिविधियों से जुड़ा हुआ है घुसपैठ की समस्या का तार

बांग्लादेश का आतंकी संगठन हरकत-उल-जेहादी-इस्लामी (हूजी) भारत में पहले भी दर्ज़नों आतंकी हमले एवं हरक़तें करा चुका है। गृह मंत्रालय के सूत्रों ने भी स्वीकार किया है कि वह लगातार अपने कॉडर भारत भेज रहा है। बांग्लादेश के सईदपुर, रंगपुर, राजशाही, कुस्ठिया, पबना, नीतपुर, रोहनपुर, खुलना, बागेरहाट एवं सतखीरा इलाक़ों से ज़्यादातर घुसपैठिए आते हैं और इसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी खुलकर मदद करती है। बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री तपन सिकंदर ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा था कि घुसपैठ रोकने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों को ही तत्पर होना होगा और इसमें स्थानीय आबादी का भी सहयोग काफी अहम बताया था। इसके साथ ही, उन्होंने कहा था कि वोट बैंक की राजनीति बंद होनी चाहिए।

ठंडे बस्ते में पड़ा है घुसपैठियों को केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी को सौंपने का प्रस्ताव

1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक के प्रस्तावों को तुरंत लागू करने की ज़रूरत बताई, जिसमें राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं पुलिस महानिदेशकों ने शिरकत की थी। इस बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि घुसपैठियों को पकड़कर उन्हें किसी केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी को सौंपा जाए, ताकि उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया आसान हो सके। इतने साल बीत जाने के बावजूद यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में पड़ा है। बीएसएफ सूत्रों के मुताबिक अभी घुसपैठियों को पकड़ कर राज्य पुलिस को सौंपा जाता है और फिर वे भारतीय जेलों की भीड़ बढ़ाते हैं।

घुसपैठियों की आबादी के संकट से तबाह हो सकता है पश्चिम बंगाल

बंगाल में पूरे देश का केवल तीन प्रतिशत भूभाग है, जबकि वह कुल आबादी के 8.6 प्रतिशत हिस्से का भार ढो रहा है। आश्चर्य की बात है कि विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर, ऋृषि अरविंद और सुभाषचंद्र बोस जैसे राष्ट्रवादी महापुरुषों को पैदा करने वाला पश्चिम बंगाल सदियों से संवैधानिक धोखाधड़ी को बर्दाश्त कर रहा है। चूंकि मामला सियासी और वोट बैंक से जुड़ा है, इसलिए टीएमसी चीफ और ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में सीएए की आड़ में संभावित एनआरसी का भी विरोध कर रही है, क्योंकि वो जानती हैं कि एनआरसी हुई तो 57 लाख अवैध बांग्लादेशी बाहर हो जाएंगे, जो वाममोर्च के बाद उनके समर्पित वोट बैंक बने हुए हैं।

आखिर भारत में कितने हैं अवैध बांग्लादेशी?

वर्ष 2016 के आखिरी में संसद में एक प्रश्न का जवाब देते हुये गृहराज्य मंत्री किरन रिजिजू ने बताया था कि उस वक्त भारत में करीब 2 करोड़ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी है। किरण रिजिजू ने आकंड़े सही है, क्योंकि करीब एक दशक पहले यानी गत 14 जुलाई, 2004 को संसद में गैर कानूनी बांग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में तत्कालीन गृह मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने बताया था कि देशभर में अलग-अलग हिस्सों में करीब 1.2 करोड़ घुसपैठिए रह रहे हैं, जिसमें से 50 लाख लोग केवल असम में रह रहे हैं। वहीं पश्चिम बंगाल को उन्होंने इस लिस्ट में सबसे ऊपर बताया था, जहां तक 57 लाख घुसपैठिए रह रहे थे।

बिहार में भी भारी संख्या में अवैध बांग्लादेशियों के होने की आशंका

असम के राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से 40 लाख लोगों के नाम बाहर कर दिए जाने के बाद सीमावर्ती अन्य राज्यों में शामिल बिहार में भी भारी संख्या में अवैध बांग्लादेशियों को मौजूद होने की आशंका हैं। माना जाता है कि बिहार के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया और सुपौल सहित प्रदेश की एक दर्जन सीटों पर बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी जमे हुए हैं। इसकी तस्दीक उन जिलों के आंकड़े करते हैं। बिहार के अररिया जिले में 1971 में मुस्लिम आबादी 36.52 फीसदी थी, लेकिन 2011 में मुस्लिम आबादी 42.94 फीसदी पहुंच गई। इसी तरह कटिहार में 1971 में मुस्लिम आबादी 36.58 फीसदी थी, लेकिन 2011 में बढक़र 44.46 फीसदी पहुंच गई। पूर्णिया में 1971 में मुस्लिम आबादी 31.93 फीसदी थी, लेकिन 2011 में बढक़र 38.46 फीसदी हो गई। यह स्पष्ट इशारा है कि यहां बदलाव घुसपैठिए के चलते हुआ हो। बांग्लादेशी घुसपैठियों ने सिर्फ बिहार में ही 66 लाख लोगों के रोजगार पर कब्जा कर लिया है।

2003 में राजधानी दिल्ली में पकड़े गए 50 हजार घुसपैठिए

दिल्ली पुलिस ने पिछले चार साल में पूरी दिल्ली से सिर्फ 1134 बांग्लादेशी पकड़े। वहीं, वर्ष 2003 में बांग्लादेशी सेल ने एक ही साल के अंदर 50 हजार बांग्लादेशी पकड़ लिए थे। बांग्लादेशी सेल 2003 में तत्कालीन पुलिस कमिशनर अजय राज शर्मा ने हर जिले के डीसीपी कार्यालय में ही एक-एक बांग्लादेशी सेल का गठन करवाया था। रिपोर्ट्स की माने तो असम के अलावा उत्तर पूर्व के राज्य त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड में भी अवैध रूप से बांग्लादेशी रह रहे हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, त्रिपुरा और छत्तीसगढ़ में भी अवैध रूप से भारत आए बांग्लादेशी रहते हैं। 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान पश्चिम बंगाल के सीरमपुर में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि चुनाव के नतीजे आने के साथ ही बांग्लादेशी ‘घुसपैठियों' को बोरिया-बिस्तर समेट लेना चाहिए।

उत्तर प्रदेश में मौजूद हैं 2 करोड़ से अधिक घुसपैठियों का अनुमान

उत्तर प्रदेश-सीएम के निर्देश के बाद जब ऐसे बांग्लादेशी को चिन्हित करना शुरू किया गया तब प्रथम चरण की जांच में हर जिले में ऐसे संदिग्ध लोग पाए गए हैं। इंटीलेन्स के सूत्र बताते हैं कि ऐसे संदिग्धों की संख्या केवल यूपी में 2 करोड़ तक हो सकती हैं। फिलहाल उन्हें चिन्हित किए जाने का काम किया जा रहा है। हालांकि भारत में रहने वाले कुल बांग्लादेशी घुसपैठियों में से 80 फीसदी बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल तथा असम में रहते हैं।

10-15 लाख से अधिक है झारखंड में अवैध प्रवासियों की संख्या

झारखंड राज्य पुलिस मुख्यालय ने एनआरसी की जरूरतों व बांग्लादेशियों के बढ़ते प्रभाव को लेकर हाल ही में एक रिपोर्ट गृह विभाग को भेजी थी। रिपोर्ट में जिक्र है कि बांग्लादेशी नागरिक बिहार और बंगाल के रास्ते झारखंड में शरण ले रहे हैं। झारखंड में अवैध प्रवासियों की संख्या 10-15 लाख बतायी गई है। अवैध प्रवासियों की बढ़ती आबादी से सांस्कृतिक व सुरक्षात्मक खतरे उत्पन हुए हैं। दरअसल, बांग्लादेश सीमा से झारखंड की दूरी 25-40 किलोमीटर है। इसी हिस्से का इस्तेमाल कर बांग्लादेशी यहां आ रहे हैं। बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद के रास्ते भी अधिकांश बांग्लादेशी यहां पहुंच रहे हैं।
झारखंड में अधिकांश बांग्लादेशी फरक्का, उधवा, पियारपुर, बेगमगंज, फुदकलपुर, अमंथ, श्रीधर, दियारा, बेलूग्राम, चांदशहर, प्राणपुर से आते हैं। रिपोर्ट में जिक्र है कि बांग्लादेशियों के आने से अपराध व देशविरोधी गतिविधियां बढ़ी हैं। इसी तस्दीक करते हैं यह आंकड़े, जिनके मुताबिक पाकुड़ जिला में साल 2001 में मुस्लिम आबादी 33.11 फीसदी थी, लेकिन 2011 में यह बढ़कर 35.87 फीसदी हो गई है। इसी के चलते अवैध प्रवासियों के अधिक आबादी वाले जिलों में आदिवासी आबादी तेजी से घटी है, क्योंकि साल 1951 में राज्य में 8.09 फीसदी मुस्लिम आबादी थी, लेकिन 2011 में यह आबादी बढ़कर 14.53 फीसदी हो गई है, जो राष्ट्रीय आंकड़े से अधिक है। कॉपी : 


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