धूम्रपान, शराब और ड्रग्स के दलदल में फंस रहा है बचपन, आपके बच्चों को है आपकी ज़रूरत..
आज ख़बर पढ़ते वक़्त नज़र अचानक से एक ऐसी ख़बर पर गई जिसने मुझे थोड़ा परेशान सा कर दिया.
दिल्ली में 9th क्लास में पढ़ने वाले बच्चे को हुक्का पीते पकड़ा गया. जिसके बाद स्कूल ने उसे कक्षा में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
ये सिर्फ़ इस बच्चे की बात नहीं है, बल्कि आप अगर गंभीरता से सोचेंगें तो पाएंगें की हर दूसरा बच्चा आजकल कोई न कोई नशा कर ही रहा है. आप ख़ुद सोचिए कि 9th, 10th क्लास में पढ़ने वाला बच्चा कितने साल का ही होता है. मात्र 15 से 16 वर्ष का.
आजकल ये हर माता-पिता का डर है कि कहीं उनके बच्चे स्मोकिंग और ड्रिंकिंग की लत में न पड़ गए हों?
वैसे तो सामान्य तौर पर, अधिकांश बच्चे बीस वर्ष की आयु से पहले कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करते हैं और ये उनके आसपास की दुनिया के साथ प्रयोग करने का एक बेहद ही स्वाभाविक हिस्सा है.
मगर कभी-कभी यही एक्सपेरिमेंट आदत में बदल जाता है.
अगर आप नज़र दौड़ाएंगें तो देखेंगें कि आजकल के बच्चे पहले के मुक़ाबले ज़्यादा तनाव और दबाव वाले वातावरण में बढ़ रहे हैं.
शराब, ड्रग्स और स्मोकिंग को आज के युवाओं द्वारा 'Cool' की उपाधि दे दी गई है. ऐसे में बच्चों को लगता है कि अगर वो ये सब चीज़ नहीं करते तो वो लोगों से बात करने के हक़दार नहीं होते हैं. नए दोस्त या ग्रुप में शामिल न हो पाने के डर से भी कई बच्चे इस मायाजाल में फंस जाते हैं.
कई बार बच्चे माता-पिता और बड़ों के बनाए 'नियम' को तोड़ने के लिए भी ऐसा करते हैं. वो दिखाना चाहते हैं कि वो इस दुनिया में अपनी मर्ज़ी से चलेंगें न कि किसी के बनाए रूल्स के हिसाब से. अच्छा और ड्रग्स लेने के बाद शरीर में जो बदलाव होता है उसे वो आज़ादी मान लेते हैं.
कुछ किशोर अपने जीवन में हो रही उथल-पुथल को कम करने के लिए शराब या ड्रग्स का उपयोग करते हैं. जो उन्हें भले ही थोड़े समय के लिए अच्छा महसूस करवाता है.
आजकल महानगरों में अधिकतर दोनों ही माता-पिता काम करते हैं. ऐसे में वो अपने बच्चों पर नज़र नहीं रख पाते. अकेले होने के कारण बच्चा परिवार से बाहर सहारा ढूंढता है और इन ग़लत कामों में पड़ जाता है.
पर हमें इस बात को भी समझना चाहिए कि मार्केट इन सब चीज़ों का प्रचार बढ़-चढ़ के कर रहा है. फ़िल्मों में भी इन सब चीज़ों का जोरों-शोरों से इस्तेमाल होता है. जिसकी देखा-देखी बच्चे भी करते हैं.
ऐसे में बेहद ज़रूरी है कि हम अपने बच्चों पर नज़र रखें और उनसे बात करते रहें.
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