प्रशांत कनौजिया पर आरोप हैं कि उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि धूमिल करने की कोशिश की है

उत्तर प्रदेश पुलिस ने पत्रकार प्रशांत कनौजिया को दिल्ली से गिरफ्तार किया है. प्रशांत कनौजिया पर आरोप हैं कि उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि धूमिल करने की कोशिश की है. गिरफ्तारी के बाद से ही #FreePrashantNow और #Prashant Kanojia ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा है. सोशल मीडिया पर कुछ लोग प्रशांत की गिरफ्तारी को सही साबित करने में लगे हैं तो वहीं कुछ लोग इस गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं. इस मामले में एक पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कुछ लिखा है, जिसे हम हूबहू आपको पढ़वा रहे हैं.
1. प्रशांत की गिरफ्तारी उसके किसी पत्रकारीय कर्म के लिए नहीं हुई है, बल्कि मुख्यमंत्री पर प्रथम दृष्टया भ्रामक ख़बर को शरारतपूर्ण टिप्पणी के साथ प्रसारित करने के लिए हुई है. अप्रामाणिक वीडियोज़ को वेरिफिकेशन के बिना फॉरवर्ड करने के लिए दक्षिणपंथ समर्थकों की आलोचना की जाती है पर यही काम तो प्रशांत ने किया है. उन्होंने पत्रकार समुदाय के लिए कोई गर्व का क्षण मुहैया नहीं कराया है. गिरफ़्तारी का विरोध करना चाहिए पर यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए.
2. यह सुस्पष्ट है कि व्यंग्य, लेख या राजनीतिक कार्टून की श्रेणी में वह टिप्पणी नहीं आती. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के सार्वजनिक जीवन या जनहित से उसका कोई संबंध नहीं है. किसी महिला के संदेहास्पद दावों को आधार बनाकर मुख्यमंत्री पर एक निजी किस्म का ‘बिलो द बेल्ट’ हमला करना पत्रकारिता नहीं है.
3. इसे पत्रकारों की आवाज़ दबाने की कोशिश कहना भी exaggeration है, क्योंकि पत्रकारीय-कर्म के लिए गिरफ़्तारी हुई ही नहीं है.
4. पुलिस ने निश्चित ही उतावलापन दिखाते हुए उसे गिरफ्तार किया है और ट्रांज़िट रिमांड के बिना सादे कपड़ों में प्रदेश की सीमा लांघकर उसे ले गए हैं. यह नियमों का उल्लंघन मालूम होता है.
5. करुणा नंदी ने याद दिलाया है कि मानहानि कानून में कोर्ट के आदेश के बिना किसी को गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता. 66 ए एक विवादित कानून है और इस पर कुछ-एक अदालतों के निर्देश भी आ चुके हैं. 66 ए के तहत बिना वारंट के गिरफ्तारी हो सकती है या नहीं, मुझे यह जानकारी नहीं है.
6. यह गिरफ़्तारी उत्तर प्रदेश पुलिस की अजीबोगरीब प्राथमिकताएं दर्शाती हैं. ऊर्जा कहां लगानी चाहिए, कहां लगा रहे हैं. किसी ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि एक प्रशांत गिरफ्तार होगा तो हज़ारों प्रशांत पैदा हो जाएंगे. ऐसे हज़ारों प्रशांत किसकी ऊर्जा व्यर्थ करेंगे, यह भी पत्रकार समुदाय को सोचना चाहिए.
7. मार्टिन नीमोलर की कविता ‘पहले वे मेरे लिए आए’ यहां अप्रासंगिक तो नहीं है, पर यह उसका सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल भी नहीं है.
8. इस सबके बावजूद प्रशांत कनौजिया की गिरफ़्तारी पुलिसिया अतिवाद का ही नमूना मालूम होती है. उसका पत्रकार होना यहां महत्वपूर्ण नहीं है, उसकी एक नागरिक के तौर पर यह गिरफ्तारी ग़लत है और उसे रिहा किया जाना चाहिए sorce : lallan top

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