मुस्लिम मतदाता निर्णायक साबित होते नहीं दिख रहे :चुनाव 2019

वाराणसी /गले कुछ महीने में होने वाले लोकसभा चुनावको लेकर बड़े परिवर्तन का एहसास अभी से होने लगा है। इस बदलाव के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। भारतीय लोकतंत्र में ऐसा पहली बार होता दिख रहा है जब मुस्लिम मतदाता निर्णायक साबित होते नहीं दिख रहे हैं।
2019 का चुनाव नजदीक है लेकिन अभी तक उत्तर प्रदेश का मुसलमान वोटर यह तय नहीं कर सका है कि उसके किसकी तरफ जाना है। दरअसल भाजपा को हराने के इतने विकल्प मिल गए हैं कि वह उलझन में है कि वो किस पाले में जाए। बात अगर उत्तर प्रदेश की सियासत की की जाए तो तकरीबन 19. 3 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। अब इस चुनाव में हर गैरभाजपा दल का एक ही नारा है भजपा हटाओ। ऐसे में मुसलमान वोटर यही नही तय कर पा रहा है कि वह किसके साथ खड़ा हो। इसे लेकर मुस्लिमों में काफी बेचैनी अभी से महसूस की जाने लगी है।
बता दें कि यूपी की सियासत में तकरीबन ढाई दशक की दुश्मनी को ताख पर रख कर सपा-बसपा ने गठबंधन बना लिया है। अब तक सूबे की सियासत में ये दोनों ही दल मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करती आ रही थीं। सपा मुखिया मुलायम सिंह तो राजनीति में मुल्ला मुलायम के नाम से प्रचिलत हो गए थे। तो मायावती की नजर भी हमेशा मुस्लिम वोटरों पर ही रही है। मुस्लिम वोटर भी कांग्रेस के यूपी की सियासत में हाशिये पर आने के बाद से इन्हीं दोनों में से किसी एक को चुनते आ रहे थे। लेकिन इन दोनों ही दलों पर इस बार के चुनाव को लेकर अगर गौर फरमाएं तो तस्वीर बदली हुई नजर आती है। यह गठबंधन भी हिंदू मतों के एकतरफा ध्रुवीकरण की डर से मुस्लिमों को ज्यादा तरजीह देने से कतराते दिख रहे हैं।
सपा-बसपा गठबंधन के अलावा भी यूपी में कुछ अन्य गठबंधन या पार्टियों ने जन्म लिया है जो मुस्लिम वोटरों के लिए उलझन का सबब बन रहे हैं। मसलन शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, ओवैसी की एमआईएम से गठबंधन करने को बेताब है। यहां यह भी बता दें कि कभी सपा की ताकत रहे शिवपाल की यूपी में जमीनी स्‍तर पर अच्छीखासी पैठ है। जहां तक ओवैसी का सवाल है तो मुसलमानों के बीच उनका अपना खासा वजूद है। ऐसे में लोकसभा चुनाव में ये भले ही मजबूत दावेदारी न पेश करते दिखें पर खेल बिगाड़ने का काम ये बखूबी करेंगे यह भी तय है। इन दोनों के अलावा आम आदमी पार्टी और अपना दल (कृष्णा पटेल) के बीच भी याराना मजबूत होता दिख रहा है। ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं का गुमराह होना तो लाजमी है।
अब जहां तक कांग्रेस की बात है तो मुसलमान वोटर उससे काफी अरसे से दूरी बना चुका था। मुसलमान वोटर भी यह मान कर चल रहा था कि आगामी चुनाव में कांग्रेस कम से कम यूपी में सपा-बसपा गठबंधन की सहायक की भूमिका में ही रहेगी। लेकिन प्रियंका गांधी की सक्रिय राजनीति में एंट्री के बाद सोच में थोड़ा बदलाव आया है। मुस्लिम वोटरों के लिए यही एक सुखद पहलू है और कांग्रेस के लिए भी, क्योंकि मुसलमान वैसे भी कांग्रेस का ही परंपरागत वोटबैंक रहा है और इस बार कांग्रेस उसे उसके पुराने घर में वापसी की पूरी कोशिश करेगी। लेकिन इसके लिए पार्टी को ऐसे उम्मीदवार देने होंगे जो बीजेपी को हराने की काबिलियत रखते हों। ऐसा न होने पर मुस्लिम मतों का बंटवारा तय है।
वैसे यूपी का मुसलमान डरा तो है। पिछले सालों में जो हालात बने हैं उससे वो खौफज़दा तो हैं। हाल के वर्षों में तमाम ऐसी वारदातें हुईं जिनसे यह वर्ग कही ज्यादा भयभीत है। यह दीगर है कि भाजपा तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं के साथ खड़ी दिखती है। सुप्रीम कोर्ट ने जब तीन तलाक को गैर-कानूनी करार दिया, तब इस पर कानून बनाने की जिम्‍मेदारी केंद्र सरकार पर डाली थी. मोदी सरकार ने इसे कानूनन अपराध बताते हुए संसद में बिल पेश किया और इस अपराध पर सजा का प्रावधान रखा। लोकसभा में तो यह बिल पास हो गया, लेकिन राज्‍य सभा में विपक्ष ने बहुमत के बल पर इसे पास नहीं होने दिया। बीजेपी को उम्‍मीद है कि मोदी सरकार के गंभीर प्रयासों को देखते हुए मुस्लिम महिलाएं कमल को चुनेंगी. क्‍योंकि उन्‍हें पता है कि तीन तलाक जैसे मुद्दे पर उनकी रहनुमाई करने का दम सिर्फ बीजेपी ही दिखा सकती है।
लेकिन ये भी तय है कि देश की राजनीति उस मुकाम पर पहुंच गई है जहां कांग्रेस, सपा, बसपा समेत तकरीबन सभी दलों ने मुसलमानों का नाम लेने से कन्नी काटना शुरू कर दिया है। बहरहाल, उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुसलमानों की भूमिका को नाकारा भी नहीं जा सकता। मुसलमान गुमराह जरूर है कि जाए तो कहां जाए। इसकी वजह ये भी है कि दलों ने अब तक मुसलमान का साथ तो लिया. मगर बदले में उनका भला कम ही किया। ऐसे में बीजेपी की मुसलमान रहित देश की राजनीति की रणनीति काफी हद तक सफल होती नजर आने लगी है। यह भारतीय लोकतंत्र में बड़ा बदलाव है।
खैर चुनावों में मुसलमानों का रोल कितना रहेगा इसका जवाब हमें आने वाला वक़्त देगा. मगर जो वर्तमान है और जिस तरह के सियासी समीकरणों का निर्माण हो रहा है. साफ पता चल रहा है कि 2019 में होने वाला चुनाव न सिर्फ मजेदार होगा बल्कि भाजपा और मुसलमान दोनों के लिए महत्वपूर्ण रहेगा।
READ Source रिपोर्ट :पत्रिका

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